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Braj Holi Mathura Special Holi 2022: होली पर आखिर क्यों होता है मथुरा में अग्नि स्नान, जानें आग वाली होली का पूरा सच

सिर्फ गुलाल से नहीं बल्कि मथुरा में आग से भी होली खेली जाती है. होलिका दहन के दिन मथुरा में अग्नि स्नान होता है जो जितना डरा देने वाला है उतना ही चमत्कारिक भी है.

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Gaveshna Sharma
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होली पर आखिर क्यों होता है मथुरा में अग्नि स्नान, जानें पूरा सच

होली पर आखिर क्यों होता है मथुरा में अग्नि स्नान, जानें पूरा सच ( Photo Credit : Social Media)

ब्रज की होली (Braj Holi 2022) की बात ही कुछ और है. होली आने से 15 दिन पहले और जाने के 15 दिन बाद तक भी पूरे ब्रज मंडल में होली का गुलाल आसमान में उड़ता रहता है. लेकिन सिर्फ गुलाल से नहीं बल्कि मथुरा में आग से भी होली खेली जाती है. होलिका दहन के दिन मथुरा में अग्नि स्नान होता है जो जितना डरा देने वाला है उतना ही चमत्कारिक भी है. इस बार होली 18 मार्च को पड़ रही है वहीं होलिका दहन 17 मार्च का है. होली के हुड़दंग और लट्ठमार होली के चलते पूरे ब्रज की होली दुनिया भर में प्रसिद्ध है. लेकिन इसके अलावा, फालैन गांव की होली भी बेहद ख़ास मानी जाती है. 

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मथुरा के पास ही स्थित फालैन को भक्त प्रहलाद का गांव माना जाता है. यहां आज भी एक पंडा (पुजारी) होलिका दहन पर जलती हुई होली के बीच से निकलता है, लेकिन उसे आग जलाती नहीं है. फालैन के पंडा परिवार द्वारा यहां सदियों से ये परंपरा निभाई जा रही है. इसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं.  गांव में मेला लगता है. होलिका दहन के दौरान निभाई जाने वाली इस परंपरा के लिए पंडा परिवार का वो सदस्य जिसे जलती होली से निकलना होता है, वो एक महीने पहले से घर छोड़कर मंदिर में रहने लगता है. वहीं रहकर पूजा-पाठ, मंत्र जाप और उपवास करता है. इसके बाद ही होलिका दहन होता है. जलती होली किसी भी पंडे को नुकसान नहीं पहुंचाती, ये चमत्कार देखने के लिए देश-दुनिया से हजारों लोग फालैन गांव पहुंचते हैं. गांव में पंडा परिवार के 20-30 घर हैं. हर बार होली से पहले पंचायत में ये तय होता है कि इस साल जलती होली में से कौन निकलेगा. 

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इस बार होलिका दहन 17 मार्च यानी कि कल है. हर साल की तरह इस साल भी होलिका दहन कार्यक्रम भव्य पैमाने पर आयोजित किया जाएगा. कल फालैन गांव में इसी अग्नि होली का भव्य स्नान करते पंडे देखे जाएंगे. हैरानी की बात ये है कि पंडे किसी चंद लकड़ियों से जलाई गई होलिका को नहीं बल्कि एक विशाल काय दहकती होलिका को पार करते हैं. होलिका सजाने के लिए आसपास के 5-7 गांवों से लोग कंडे लेकर आते हैं. ऐसे में यहां हजारों कंडे एकट्ठा हो जाते हैं. सभी कंडों से करीब 25 फीट चौड़ी और 8-10 फीट ऊंची होलिका तैयार की जाती है. फाल्गुन पूर्णिमा पर गांव और आसपास के लोग होलिका पूजन करते हैं. रात में होलिका जलाई जाती है. इसके बाद शुभ मुहूर्त में पंडाजी जलती होली में से निकलते हैं. ये कारनामा कुछ ही देर का होता है. लेकिन बहुत चमत्कारिक होता है क्योंकि जलती होली से निकलने वाले पंडा का शरीर तो दूर की बात एक बाल तक भी नहीं जलता है. 

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यहां मान्यता प्रचलित है कि ये गांव दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद का है. पुराने समय में एक संत ने यहां तपस्या की थी. उस समय इस गांव के एक पंडा परिवार को स्वप्न आया कि एक पेड़ के नीचे मूर्ति दबी हुई है. इस सपने के बाद गांव के पंडा परिवार के सदस्यों ने संत के मार्गदर्शन में खुदाई की थी. इस खुदाई में भगवान नरसिंह और भक्त प्रहलाद की मूर्ति निकली. तब संत ने पंडा परिवार को ये आशीर्वाद दिया कि हर साल होली पर इस परिवार का जो भी सदस्य पूरी ईमानदारी और आस्था से भक्ति करेगा, उसे भक्त प्रहलाद की विशेष कृपा मिलेगी और वह जलती हुई होली से निकल सकेगा. ऐसा करने के बाद भी उसके शरीर पर आग की गर्मी का कोई असर नहीं होगा. यहां भक्त प्रहलाद का मंदिर है और यहीं एक कुंड भी है.

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