आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है. इस दिन मां कुष्मांडा देवी की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में नवरात्रि का खासा महत्व होता है. माना जाता है कि इन दिनों जो भी भक्त मां के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना करता हैं, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती हैं. वहीं मां कुष्मांडा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से यश, बल, स्वास्थ्य और आयु में वृद्धि होती है. इसके साथ मां कुष्मांडा अपने भक्तों के सारे कष्टों को दूर करते हुए उनके मन की सभी इच्छाएं पूरी करती हैं. देवी कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. मां ने अपने हाथों में धनुष, बाण, अमृत कलश, चक्र, गदा, कमल और कमंडल धारण किया हुआ है. वहीं एक और हाथ में मां के हाथों में सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला भी है. मां की सवारी सिंह है.
मान्यता है कि अपनी हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा हुआ. मां की आठ भुजाएं हैं इसलिए वो अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं. वहीं संस्कृत भाषा में मां कुष्मांडा को कुम्हड़ कहते हैं और इन्हें कुम्हड़ा विशेष रूप से प्रिय है. ज्योतिष में इनका संबंध बुध ग्रह से है.
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ऐसे करें मां कुष्मांडा की पूजा-
देवी कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. मां ने अपने हाथों में धनुष-बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल धारण किया हुआ है. वहीं एक और हाथ में मां के हाथों में सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला भी है. मां की सवारी सिंह है.
मां कुष्मांडा को उतनी हरी इलायची अर्पित करें, जितनी कि आपकी उम्र है. हर इलायची अर्पित करने के साथ "ॐ बुं बुधाय नमः" कहें. सारी इलायचियों को एकत्र करके हरे कपड़े में बांधकर रख लें. इन्हें अपने पास अगली नवरात्रि तक सुरक्षित रखें.
इन मंत्रों का करें जाप-
1. या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता.नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
2. सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्मा याम कुष्मांडा शुभदास्तु में...
3.ॐ कूष्माण्डायै नम:
4. वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्.सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
मां को लगाएं ये भोग
देवी के चौथे स्वरूप कुष्मांडा देवी को मालपुए का भोग लगाया जाता है. इसके बाद इस प्रसाद को किसी गरीब को दाना कर देना चाहिए. ऐसा करने से बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता अच्छी हो जाती है.
देवी कुष्माण्डा की कथा-
मां कुष्माण्डा को आदिशक्ति का चौथा रूप माना जाता है. इनमें सूर्य के समान तेज है. मां का निवास सूर्यमंडल के भीतर माना जाता है, जहां कोई भी निवास नहीं कर सकता. देवी कुष्माण्डा की पूजा अर्चना से सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है. मां की मुस्कान बताती है कि हमें हर परिस्थिति का हंसकर ही सामना करना चाहिए. देवी की हंसी और ब्राह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें कूष्माण्डा देवी कहा जाता है. जिस समय सृष्टि नहीं थी. चारों और अंधकार ही था तब मां कुष्मांडा ने अपनी हंसी से ही ब्राह्माण्ड की रचना की थी.