आज यानि कि बुधवार को चैत्र नवरात्रि का नौंवा दिन है. इस दिन मां सिद्धिरात्रि की पूजा की जाती है. देवी के नौंवे स्वरूप की अराधना करने से सभी प्रकार कि सिद्धियों की प्राप्ती होती है. देवी सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की उपासना से अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी सभी 8 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है. इस दिन माता सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की पूजा करने से भक्त के लिए सृष्टि में कुछ भी मुश्किल नहीं रह जाता है और उसमें ब्रह्माण्ड विजय करने की शक्ति आ जाती है.
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मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर विराजमान हैं और इनका वाहन सिंह है. देवी के दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र है. उनके दाहिनी तरफ के ऊपर वाले हाथ में गदा है. बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख धारण किए हुए है और ऊपर वाले हाथ में कमल का फूल है.
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि (Maa Siddhidatri Ki Puja Vidhi )
नवमी के दिन मां का पूजन करके उन्हें विदाई दी जाती है. सबसे पहले शुद्ध होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद एक चौकी पर मां की प्रतिमा स्थापित करें. मां को फूल, माला, फल, नैवेध आदि चढ़ाएं. मंत्र का जाप करें और मां की आरती उतारें. इस दिन छोटी- छोटी नौ कन्याओं को घर बुलाकर उनका भी पूजन करें और उन्हें उपहार अवश्य दें.
इन मंत्रों का करें जाप
1.सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी.
2.या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां सिद्धिदात्री को लगाएं ये भोग भोग
मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) को आंवले का भोग लगाया जाता है. कोई भी अनहोनी से बचने के लिए इस दिन मां के भोग में अनार को शामिल किया जाता हैं.
माता सिद्धिदात्री से जुड़ी पौराणिक कथा
देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था. मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की कृपा से देवाधिदेव महादेव का आधा शरीर देवी का हुआ था. भगवान शंकर के इस स्वरूप को 'अर्द्धनारीश्वर' स्वरूप प्राप्त हुआ था.
नवरात्र में आठ दिनों तक भक्तिभाव से उपासना के बाद नौवें व अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की उपासना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं. देवी सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) की उपासना से केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव की प्राप्ति होती है. अगर कुंडली में केतु नीच का हो या केतु की चंद्रमा से युति हो या केतु मिथुन अथवा कन्या राशि में हो षष्ट भाव में स्थित होकर नीच का एवं पीड़ित हो, उन्हें देवी सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) सर्वश्रेष्ठ फल देती हैं.