Maa Siddhidatri Puja Vidhi, Mantra, Katha: आज चैत्र मास की नवमी तिथि है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मां दुर्गा की नौवीं शक्ति देवी सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है. मां सिद्धिदात्री माता पार्वती का वो स्वरूप हैं जिनकी पूजा करने से रोग, भय और शोक से छुटकारा मिलता है. मां के इस रूप की पूजा से आंठों सिद्धियों की प्राप्ति होती है. इसके अतिरिक्त, माता के बीज मंत्र के निरंतर जाप से तामसिक एवं सात्विक दिव्य विद्याओं का शरीर में संचार होता है. नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ हवन करने की परंपरा है. ऐसे में चलिए जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि, मंत्र, कथा और भोग के बारे में. इसके साथ ही जानेंगे आज यानी कि नवमी के शुभ मुहूर्त के बारे में भी.
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मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
देवी भागवत पुराण के मुताबिक, मां सिद्धिदात्री भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी के समान कमल पर विराजमान हैं. मां के चार भुजाएं है जिनमें वह गदा, शंख, चक्र और कमल का फूल धारण किये हुए हैं.
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं.
- मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को सफेद रंग पसंद है.
- मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें.
- मां को रोली कुमकुम लगाएं.
- मां को मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें.
- माता सिद्धिदात्री को प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए.
- मां सिद्धिदात्री को मौसमी फल, चना, पूड़ी, खीर, नारियल और हलवा अतिप्रिय है. कहते हैं कि मां को इन चीजों का भोग लगाने से वह प्रसन्न होती हैं.
- माता सिद्धिदात्री का अधिक से अधिक ध्यान करें.
- अष्टमी के दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है. इस दिन कन्या पूजन भी करें.
- कन्या पूजन का विशेष फल प्राप्त करने हेतु आज के दिन हवन से ही व्रत का समापन करें.
- कन्या पूजन के साथ हवन करना अत्यधिक शुभ और मनोवांछित फलदायी है.
- इसके बाद मां सिद्धिदात्री का मंत्र जाप करें
- बीज मंत्र का जाप करते समय शुद्धता के सभी नियमों का पालन करें.
- फिर अंत में परिवार के सभी सदस्यों के साथ मां की आरती करें.
मां सिद्धिदात्री पूजा मंत्र
- ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊँ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल।
ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
- वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्। कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
- या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम॥
बीज मंत्र
- ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
मां सिद्धिदात्री की पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां सिद्धिदात्री भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें यश, बल और धन भी प्रदान करती हैं. शास्त्रों में मां सिद्धिदात्री को सिद्धि और मोक्ष की देवी माना जाता है. मां सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह 8 सिद्धियां हैं. शास्त्रों के अनुसार, समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य से लेकर देवी देवताओं तक माता ही सबको सिद्धियाँ प्रदान करती हैं.
मां सिद्धिदात्री का प्रिय भोग
दुर्गार्चन पद्धति के अनुसार आज नवमी तिथि को कांसे के पात्र में नारियल पानी और तांबे के पात्र में शहद डालकर देवी मां को चढ़ाना चाहिए. कालिका पुराण में कुम्हाड़ा या कद्दू की बलि का विधान है. गन्ने का रस भी देवी मां को चढ़ाया जा सकता है.