इस साल चैत्र नवरात्रि (chaitra navratri 2022) 2 अप्रैल से शुरू है. जिसमें तीसरा दिन (chaitra navratri 2022 day 3) मां चंद्रघंटा को समर्पित होता है. इस दिन मां चंद्रघण्टा के पूजन का विधान है. मां चंद्रघण्टा (maa chandraghanta) अपने मस्तक पर भगवान शिव के अद्ध चंद्र को सुशोभित करने के कारण इन्हें चंद्रघण्टा कहा जाता है. इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है. इस देवी के दस हाथ हैं, जिनमें वो खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं. सिंह पर सवार (chaitra Navratri 2022 puja) इस देवी दैत्यों के नाश और भक्तों को अभयदान प्रदान करती हैं. इनके घंटे की भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं. मां चंद्रघण्टा के पूजन से अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है. तो, चलिए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजन विधि और व्रत कथा क्या है.
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मां चंद्रघंटा की पूजन विधि
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. ये नवदुर्गा का तीसरा रूप हैं. इस दिन सुबह-सुबह स्नान करके मां चंद्रघंटा की पूजा करते समय लकड़ी की चौकी पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. फिर गंगाजल या गोमूत्र से शुद्धिकरण (Maa Chandraghanta Puja Vidhi) करें. इसके बाद चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी का घड़ा रख दें. इस पर नारियल रख दें. फिर पूजा का संकल्प लें. फिर वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा के साथ सभी देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें.
उसके बाद मां चंद्रघण्टा को धूप, दीप, रोली, चंदन, अक्षत अर्पित करें. मां को लाल रंग के पुष्प और लाल सेब चढ़ाना चाहिए. मां चंद्रघण्टा को दूध या दूध की खीर का भोग लगाना चाहिए. इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करके मां चंद्रघण्टा के मंत्रों का जाप करना चाहिए. पूजन (maa chandraghanta story) का अंत मां की आरती गाकर किया जाता है. मां के पूजन में घण्टा जरूर बजाएं, ऐसा करने से आपके घर की सभी नकारात्मक और आसुरी शक्तियों का नाश होता है.
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मां चंद्रघंटा की व्रत कथा
अब, हमने पूजा विधि तो बता दी. लेकिन, जरा ये भी जान लें कि इस दिन की व्रत कथा क्या है. पौराणिक कथा के अनुसार, दानवों के आतंक को खत्म करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का स्वरूप लिया था. महिषासुर नाम के राक्षस ने देवराज इंद्र का सिंहासन (maa chandraghanta vrat katha) हड़प लिया था. वह स्वर्गलोक पर राज करना चाहता था. उसकी यह इच्छा जानकार देवता बेहद ही चितिंत हो गए थे. देवताओं ने इस परेशानी के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मदद मांगी. यह सुनकर त्रिदेव क्रोधिक हो गए. इस क्रोध के चलते तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई उससे एक देवी का जन्म हुआ.
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भगवान शंकर ने इन्हें अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया. फिर इसी प्रकार से दूसरे सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिया. वहीं, इंद्र ने मां को अपना एक घंटा दिया था. इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची. तो, वहां मां का ये रूप देख महिषासुर को आभास हुआ कि उसका काल नजदीchक है. महिषासुर ने माता रानी पर हमला बोल दिया. जिसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया. इसी तरह से मां ने देवताओं की (maa chandraghanta katha) रक्षा की.