आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) की अर्थनीति, कूटनीति और राजनीति विश्वविख्यात है, जो हर एक को प्रेरणा देने वाली है. चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और सलाहकार आचार्य चाणक्य के बुद्धिमत्ता और नीतियों से ही नंद वंश को नष्ट कर मौर्य वंश की स्थापना की थी. आचार्य चाणक्य ने ही चंद्रगुप्त को अपनी नीतियों के बल पर एक साधारण बालक से शासक के रूप में स्थापित किया. अर्थशास्त्र के कुशाग्र होने के कारण इन्हें कौटिल्य कहा जाता था. आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के जरिए जीवन से जुड़ी समस्याओं का समाधान बताया है.
अपने ग्रंथ चाणक्य नीति में आचार्य ने अपने अनुभवों के आधार पर लोगों को जीवन को आसान बनाने का मार्ग दिखाया है. यदि आचार्य की बातों का लोग अनुसरण कर लें तो तमाम समस्याओं से आसानी से निपट सकते हैं. चाणक्य नीति के 13वें अध्याय के 15वें श्लोक में उन्होंने एक ऐसे अवगुण का जिक्र किया है जो व्यक्ति की सारी मेहनत पर पानी फेर सकता है. आइए जानते हैं इसके बारे में.
अनवस्थितकायस्य न जने न वने सुखम्,
जनो दहति संसर्गाद् वनं संगविवर्जनात…
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी भी कार्य में सफलता के लिए मन को काबू करना बहुत जरूरी है. जिसका मन स्थिर नहीं होता, उस व्यक्ति को न तो लोगों के बीच में सुख मिलता है और न ही वन में. ऐसे व्यक्ति को लोगों के बीच ईर्ष्या जलाती है और वन में अकेलापन.
जीवन में किसी भी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए मन की चचंलता को दूर करना बहुत जरूरी है, क्योंकि जिसका मन चंचल है, वो व्यक्ति चाहे कितनी ही मेहनत कर लें, लेकिन जल्दी सफल नहीं हो पाता. ऐसे व्यक्ति का चित्त कहीं भी नहीं ठहरता. बार बार भटकने की वजह से वो कहीं भी खुद को एकाग्र नहीं कर पाता. जब व्यक्ति फेल होता है तो दूसरों को तरक्की करते हुए देखकर जलता है और कुंठित रहता है. ऐसे में उसे न तो सबसे बीच खुशी मिलती है और न ही अकेलेपन में.
वास्तव में सफल होना है तो चंचल मन को काबू करना जरूरी है. जिसका मन वश में होता है, वो कुछ भी हासिल कर सकता है. गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने मन को वश में रखने का महत्व समझाते हुए कहा है, मन के जीते जीत है, मन के हारे हार.
Source : News Nation Bureau