वैदिक काल से ही भारत में भगवान भास्कर यानी सूर्य की पूजा का प्रचलन है. सूर्य उपासना का पर्व छठ पूजा (Chhath Puja) भी एक ऐसा पर्व है जिसमें डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. बिहार और पूर्वांचल में इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है. झारखंड में भी इसका जबरदस्त क्रेज है. बिहार से निकल कर छठ की छटा न केवल दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में बिखर रही है बल्कि सात समंदर पार विदेशों में भी इसे पूरे जोश खरोश से मनाया जाता है.
वैसे छठ मैया का कोई तस्वीर नहीं है बावजूद इसके छठ पूजा (Chhath Puja) को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. इन्हीं कहानियों में एक महाभारत काल से जुड़ी है. कहा जाता है कि झारखंड की राजधानी रांची में एक गांव है, जहां द्रौपदी ने छठ पूजा (Chhath Puja) की थी.
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मान्यता के मुताबिक रांची के नगड़ी गांव में द्रौपदी ने छठ पूजा (Chhath Puja) की थी. इस गांव में छठव्रती न तो नदी में अर्घ्य देती हैं और ना ही तालाब में. नगड़ी में एक सोते के पास छठ पूजा (Chhath Puja) की जाती है. कहा जाता है इसी सोते के पास द्रौपदी भी सूर्योपासना किया करती थी और सूर्य को अर्घ्य देती थी. दरअसल वनवास के समय झारखंड के इस इलाके में पांडवों ने कुछ वक्त बिताया था.
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इस क्षेत्र में प्रचलित कहांनियों की मानें तो जब पांडव वनवास के समय जंगलों में भटक रहे थे, तो अचानक उन्हें प्यास लगी. दूर-दूर तक उन्हें पानी नहीं मिला. तब द्रौपदी ने अर्जुन को ज़मीन में तीर मारकर पानी निकालने को कहा. अर्जुन ने धरती में तीर मार कर वहां पानी निकाला. द्रोपदी इसी जल के सोते के पास सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी उपासना करती थीं. सूर्य देव की आराधना कि वजह से ही पांडवों पर हमेशा उनका आशीर्वाद बना रहा.