25 दिसंबर को क्रिसमस है और हर कोई इस मौके अपने-अपने अंदाज में मनाने में जुट गया है। कोई इस दिन को सेलिब्रेट करने के लिये घर सजा रहा है, कोई क्रिसमस ट्री तैयार कर रहा, कोई केक काटने और पार्टी करने की तैयार कर रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं क्रिसमस मनाने की शुरुआत कैसे हुई। आज हम आपको बताने जा रहे हैं। क्रिसमस मनाने की शुरुआत कहां हुई।
विश्व के लगभग सौ देशों में मनाया जाता है क्रिसमस
विश्व के लगभग सौ देशों में क्रिसमस का त्यौहार बड़े उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। अमेरिका में 1870 से क्रिसमस के दिन को राजकीय अवकाश रखा जाता है। इस दिन को ईसाईयों के साथ सभी धर्मों के लोग बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। इस पर्व को प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाते हैं, जिन्होंने अपने चमत्कारों से दुनियाभर में इस धर्म की नीव रखी थी। इस दिन लोग क्रिसमस पेड़ सजाते हैं,उपहार बांटते हैं और साथ में भोजन इत्यादि करते हैं।
प्रभु ईसा मसीह के जन्म का वास्तविक दिन का इतिहास तो अब तक पता नहीं चल सका है, क्योंकि प्रभु ईसा मसीह के जन्म के तीन शताब्दियों तक उनका जन्मदिन नहीं मनाया जाता था। बाइबिल में भी कहीं पर भी प्रभु ईसा मसीह के जन्मदिन का वास्तविक दिन नहीं लिखा हुआ है। प्रभु यीशू केवल के जन्म पर उपस्थित गडरिये सर्दी और बसंत के बीच को ही उनका जन्मदिन मानते थे।
पहली बार 336 इसवीं को 25 दिसम्बर के दिन मनाया गया क्रिसमस
यीशू के जन्मदिन का आधिकारिक तौर पर रोमन कैलंडर के अनुसार पहली बार 336 इसवीं को 25 दिसम्बर के दिन मनाया गया, जिसके बाद से हर साल 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाया जाता है। रोमन कैलेंडर के अनुसार कई लोग 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाने लगे लेकिन कुछ लोग अब भी ईस्टर को एक मुख्य त्यौहार के रूप में मनाते थे। 1870 से ब्रिटेन ने भी राजकीय अवकाश शुरू कर दिया गया।
यीशू का जन्म और इतिहास
बाइबिल के अनुसार, येशु के जन्म से पहले ये भविष्यवाणी हो गयी थी कि धरती पर एक ईश्वर का पुत्र जन्म लेगा, जो दुनिया का उद्धार करेगा। यीशू का जन्म एक गौशाला में हुआ था, जिसकी पहली खबर गडरियो को मिली थी और उसी समय एक तारे ने ईश्वर के जन्म की भविष्यवाणी को सत्य किया। 30 वर्ष की आयु तक उन्होंने कई जगहों पर घूमकर लोगों की सेवा की। उनके अदृभुत चमत्कारों हर कोई मुरीद था। यीशू को उनकी मृत्यु का भी पूर्वाभास हो गया था और उन्होंने अपने अनुयायियो को ये सब बात बताई थी। उन्होंने क्रूस पर झूलते हुए भी उनको मारने वाली लोगों के लिए ईश्वर से प्राथना मांगी थी कि प्रभु इन्हें क्षमा कर देना, ये नादान हैं।
सांता क्लॉज़ का भी विशेष महत्व
वहीं इस दिन सांता क्लॉज़ का भी विशेष महत्व होता है, इसकी परंपरा क्रिसमस के साथ काफी बाद में जुड़ी। मध्ययुग में संत निकोलस (जन्म 340 ई.) का जन्म दिवस 6 दिसंबर को मनाया जाता था और यह मान्यता थी कि इस रात को संत निकोलस बच्चों के लिए तरह-तरह के उपहार लेकर आते हैं। यही संत निकोलस अमेरिकी बच्चों के लिए 'सांता क्लॉज़' बन गए और वहां से यह नाम संपूर्ण विश्व में लोकप्रिय हो गया।
Source : News Nation Bureau