भारत को ऋषि मुनियों का देश कहा जाता है. ऐसे में हम आपको ऐसे दिव्य संत के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसकी कहानी सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे. हम बात करने वाले हैं. उत्तर प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध देवरहा बाबा की. कहा जाता है कि इनके आगे भारत सरकार को भी झुकना पड़ा था. ये ऐसे साधु थे जो पानी पे चलते थे, घंटों बिना सांस लिए रहते थे. आखिर कौन थे वो बाबा? वो कैसे 500 सालों से जिंदा थे? उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में जन्मे देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्ति को लेकर तरह तरह की बात कही सुनी जाती हैं. देवरहा बाबा जाने माने सिद्ध पुरुष और एक कर्मठ योगी थे. देवरहा बाबा की उम्र के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि बाबा करीब 500 सालों तक जिंदा थी. हालांकि यह स्पष्ट रूप से कोई नहीं जानता कि बाबा का जन्म कब हुआ. बाबा लोगों के मन की बातें बिना बताए जान लेते थे. देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने के लिए नेताओं से लेकर जाने माने उद्योगपति, फिल्मी सितारे और बड़े बड़े अधिकारी जाते थे.
देवरहा बाबा की चमत्कारी कहानियां
कहा जाता है कि देवरहा बाबा (Devraha Baba) कभी भी एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए किसी भी तरह की गाड़ी का इस्तेमाल नहीं किया करते थे और ना ही किसी सवारी में उन्हें कहीं जाते हुए देखा. भक्तों का तो ऐसा भी मानना है कि बाबा पानी पर चलते थे. वे हर साल माघ के मेले के समय प्रयाग आते थे. वहीं यमुना किनारे वृन्दावन में वह आधे घंटे तक पानी में ही बिना सांस लिए रह लेते थे.
देवरहा बाबा हमेशा एक ऊंची लकड़ी से तैयार मचान पर बैठकर लोगों को आशीर्वाद और प्रसाद दिया करते थे. अपने पास आने वाले सभी लोगों से बहुत प्यार से मिलते थे और उन्हे प्रसाद और आशीर्वाद देकर विदा करते थे. ऐसा माना जाता है कि मचान पर कोई प्रसाद नहीं रखा होता था. फिर भी बाबा लोगों के हाथों में प्रसाद देते थे. देवरहा बाबा ना सिर्फ मनुष्य के मन की बात जानते थे बल्कि वह जानवरों की भाषा और बोली को भी समझ जाते थे. वे जंगली जानवरों को अपने वश में कर लेते थे.
देश में आपातकाल के बाद इंदिरा गाँधी चुनाव हार गई. तब इंदिरा गाँधी देव राव बाबा से आशीर्वाद लेने के लिए गई. बाबा ने उन्हें हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया. वहाँ से लौटने के बाद इंद्रा जी ने कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा ही तय किया. इसी चिन्ह पर 1980 में इंदिरा गाँधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वे देश के प्रधानमंत्री बनी.
एक बार देवरहा बाबा से मिलने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को आना था. आला अफसरों ने हेलिपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने का निर्देश दिए. पता लगते ही बाबा ने एक बड़े अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा प्रधानमंत्री आ रहे हैं इसलिए ये जरूरी है. बाबा बोले तुम यहाँ प्रधानमंत्री को लेकर आओगे, प्रशंसा पाओगे, प्रधानमंत्री का नाम भी होगा लेकिन दंड तो बिचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा, वह इस बारे में पूछेगा तो क्या जवाब दूंगा? मैं नहीं. यह पेड़ नहीं काटा जाएगा. अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई पर बाबा ज़रा भी राजी नहीं हुए. उनका कहना था कि पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो साथी है, पेड़ नहीं कट सकता. बाबा ने तसल्ली दी और कहा कि घबराओ मत प्रधान मंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा. 2 घंटे बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय से रेडियो ग्राम आ गया की प्रोग्राम स्थगित हो गया है.
सन 1911 में जॉर्ज पंचम भारत आए और बाबा के आश्रम पहुंचे. उन्होंने बाबा के साथ क्या बात की, ये उनके शीशो ने कभी भी. जगजाहिर नहीं की. चार खंभों पर टिका मचाने उनका महल था जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे. देवरिया जिले में माइल गांव में वह साल में आठ महीने बिताते थे. बाबा के दर्शन के लिए माइल आश्रम पर 1911 में जॉर्ज पंचम दर्शन करने के लिए भारत आए.
देश के महान विभूति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, मदन मोहन मालवे इंदिरा गाँधी, अटल बिहारी वाजपेयी. मुलायम सिंह यादव, वीर बहादुर सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, जगन्नाथ मिश्र आदि नेता सहित प्रशासनिक अधिकारी बाबा का आशीर्वाद लेते थे. देवरहा बाबा पानी पर भी चलते थे. बाबा को किसी ने कहीं आतेजाते नहीं देखा था. सिद्धियों के चलते वह जहां चलते थे वहां मन की गति से पहुंच जाते थे. वह भक्तों को प्रसाद जरूर देते थे. बाबा जानवरों की भी भाषा समझते थे.
उन्होंने अपने जीवन में कभी अन्न नहीं खाया. दूध और शहद की फल्हार के रूप में लेते थे. देवरहा बाबा असल के आठ महीने अपने आश्रम में रहते थे जबकि बाकी समय काशी, प्रयाग, मथुरा और हिमालय में एकांतवास करती थी. उनकी उम्र का अंदाजा किसी को नहीं है. बाबा के भक्त उनके. 900 साल तक जिंदा रहने का दावा करते है.
अंतिम समय में बाबा वृन्दावन चले गए थे. 11 जून सन 1990 को बावा ने वही अंतिम समाधि ली थी. बताया जाता है की उनके समाधि लेने के कुछ घंटे पहले मौसम में अचानक अजीब तरह का परिवर्तन आ गया था.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau