दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस नामक त्योहार मनानाने की परंपरा है. धनतेरस के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना माना जाता है. यह त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है. इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि एवं धन व समृद्धि की देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है.धनतेरस के संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार, कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर किए जा रहे समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से निकले नवरत्नों में से एक धन्वंतरि ऋषि भी थे, जो जनकल्याण की भावना से अमृत कलश सहित अवतरित हुए थे.
धन्वंतरि ऋषि ने समुद्र से निकलकर देवताओं को अमृतपान कराया और उन्हें अमर कर दिया. यही वजह है कि धन्वंतरि को 'आरोग्य का देवता' माना जाता है और आरोग्य और दीघार्यु प्राप्त करने के लिए ही लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं.
इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के पूजन का भी विधान है और उनके लिए भी एक दीपक जलाया जाता है, जो 'यम दीपक' कहलाता है. यमराज के पूजन के संबंध में एक कथा प्रचलित है.
एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया कि क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें कभी किसी प्राणी पर दया भी आई? यह प्रश्न सुनकर सभी यमदूतों ने कहा, 'महाराज, हम सब तो आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा का पालन करना ही हमारा धर्म है. अत: दया और मोह-माया से हमारा कुछ लेना-देना नहीं है.'
ये भी पढ़ें: धनतेरस पर Gold खरीदने वालों को नहीं होता है नुकसान, जानें क्यों
यमराज ने उनसे जब निर्भय होकर सच-सच बताने को कहा, तब यमदूतों ने बताया कि उनके साथ एक बार वास्तव में ऐसी एक घटना घट चुकी है. यमराज ने विस्तार से उस घटना के बारे में बताने को कहा तो यमदूतों ने बताया कि एक दिन हंस नाम का एक राजा शिकार के लिए निकला और घने जंगलों में अपने साथियों से बिछुड़कर दूसरे राज्य की सीमा में पहुंच गया.
उस राज्य के राजा हेमा ने राजा हंस का राजकीय सत्कार किया और उसी दिन हेमा की पत्नी ने एक अतिसुंदर पुत्र को जन्म दिया, लेकिन ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि विवाह के मात्र चार दिन बाद ही इस बालक की मृत्यु हो जाएगी. यह दुखद रहस्य जानकर हेमा ने अपने नवजात पुत्र को यमुना के तट पर एक गुफा में भिजवा दिया और वहीं पर उसके लालन-पालन की शाही व्यवस्था कर दी गई और बालक पर किसी युवती की छाया भी नहीं पड़ने दी, लेकिन विधि का विधान तो अडिग था.
एक दिन राजा हंस की पुत्री घूमते-घूमते यमुना तट पर निकल आई और राजकुमार की उस पर नजर पड़ गई। उसे देखते ही राजकुमार उस पर मोहित हो गया. राजकुमारी की भी यही दशा थी. अत: दोनों ने उसी समय गंधर्व विवाह कर लिया, लेकिन विधि के विधान के अनुसार चार दिन बाद राजकुमार की मृत्यु हो गई.
यमदूतों ने यमराज को बताया कि उन्होंने ऐसी सुंदर जोड़ी अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं देखी थी. वे दोनों कामदेव और रति के समान सुंदर थे, इसीलिए राजकुमार के प्राण हरने के बाद नवविवाहिता राजकुमारी का करुण विलाप सुनकर उनका कलेजा कांप उठा.
और पढ़ें: इस मुहूर्त में करें भगवान धनवंतरी की पूजा, सुधरेगी सेहत, बरसेगा धन
पूरा वृत्तांत सुनने के बाद यमराज ने यमदूतों से कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धन्वंतरि ऋषि का पूजन करने और यमराज के लिए दीप दान करने से इस प्रकार की अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है.
मान्यता है कि उसके बाद से ही इस दिन धन्वंतरि ऋषि और यमराज का पूजन किए जाने की प्रथा आरंभ हुई. धनतेरस के दिन घर के टूटे-फूटे बर्तनों के बदले तांबे, पीतल या चांदी के नए बर्तन और आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है. कुछ लोग नई झाड़ू खरीदकर उसका पूजन करना भी इस दिन शुभ मानते हैं.
Source : IANS