बिन पटाखों की कैसी दिवाली, अगर आप भी सोचते हैं ऐसा तो पढ़ लें यह खबर

ऐसा क्‍या है पटाखों में जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देनी पड़ी. उनका धुआं या उनकी आवाज या फिर पटाखों से निकलने वाली रोशनी. इन सारे सवालों के जवाब के लिए पढ़ें यह खबर..

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Drigraj Madheshia
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प्रतीकात्मक फोटो

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर( Photo Credit : फाइल)

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बिन पटाखों (Crackers) की कैसी दिवाली (Diwali) . 10 साल पहले तक बच्‍चों से लकर बूढ़ों तक, सबकी यही सोच थी. लेकिन समय के साथ यह सोच बदली है. पटाखों (Crackers)  के नुकसान से हर कोई वाकिफ है और जागरूकता का आलम ये है कि बच्‍चे भी अब इससे दूरी बनाने लगे हैं. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट भी पटाखों के लिए गाइड लाइन जारी कर चुका है. ऐसा क्‍या है पटाखों में जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देनी पड़ी. उनका धुआं या उनकी आवाज या फिर पटाखों से निकलने वाली रोशनी. इन सारे सवालों के जवाब के लिए पढ़ें यह खबर..

वैसे तो रोशनी का त्‍योहार दिवाली लक्ष्मी-गणेश और भगवान कुबेर की पूजा के साथ शुरू होता है, लेकिन चार दिन पहले से ही गली मोहल्‍लों में इसकी गूंज सुनाई देने लगती है. पटाखों की तेज आवाज जहां बड़े लोगों को आकर्षित करती है तो बच्‍चों को चरखी, फुलझड़ी, अनार और राकेट. इन पटाखों के फटने के बाद जब आसमान में रंगबिरंगी रोशनी बिखेरते हैं तो खुशी तो होती ही है. लेकिन इस खुशी को पाने के लिए हम बहुत बड़ी कीमत चुका रहे होते हैं.

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दरअसल इन पटाखों (Crackers) में रोशनी प्राप्त करने के लिए खास तरह के रसायनों का प्रयोग किया जाता है. अलग-अलग रसायनों के हिसाब से ही पटाखों के रंगों की रोशनी अलग-अलग होती है. जैसे हरे रंग के लिए बेरियम नाइट्रेट, लाल रंग के लिए सीजियम नाइट्रेट और पीले रंग के लिए सोडियम नाइट्रेट का इस्‍तेमाल किया जाता है.

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बेरियम नाइट्रेट का इस्तेमाल ज्यादातर आतिशबाजी एवं अनार में किया जाता है. वहीं सीजियम नाइट्रेट का इस्तेमाल ज्यादातर अनार और रॉकेट में किया जाता है और सोडियम नाइट्रेट का इस्तेमाल अमूमन हर पटाखे में होता है, लेकिन चकरी में इसका इस्तेमाल सबसे अधिक होता है.

क्‍या होता है नुकसान

  • पटाखे को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इनमें रेडियोएक्टिव और जहरीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है. ये पदार्थ जहां एक ओर हवा को प्रदूषित करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे कैंसर की आशंका भी रहती है.
  • धूल के कणों पर कॉपर, जिंक, सोडियम, लैड, मैग्निशियम, कैडमियम, सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जमा हो जाते हैं.
  • इसमें कॉपर से सांस की समस्याएं, कैडमियम-खून की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम करता है, जिससे व्यक्ति एनिमिया का शिकार हो सकता है.
  • जिंक की वजह से उल्टी व बुखार व लेड से तंत्रिका प्रणाली को नुकसान पहुंचता है. मैग्निशियम व सोडियम भी सेहत के लिए हानिकारक है.

पटाखों का धुंआ कितना खतरनाक

  • पटाखों के धुएं में मौजूद लेड के कारण से स्ट्रोक व हार्टअटैक का खतरा भी बढ़ जाता है.
  • धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है.
  • दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है.
  • पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है
  • पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है

कौन सा पटाखा हवा में घोलता है कितना पीएम 2.5

  • सांप वाला पटाखा- यह 3 मिनट के अंदर 64,849 यूजी/क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 छोड़ता है.
  • चटाई बम(1000 लड़ी वाली)- 6 मिनट के अंदर 47, 789 यूजी/क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 छोड़ता है.
  • पुलपुल- ये 3 मिनट में 34,068 यूजी/क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 छोड़ता है.
  • फुलझड़ी- 2 मिनट में 10,898 यूजी/क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 छोड़ता है.
  • चकरी- 5 मिनट में 10,475 यूजी/क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 छोड़ता है.
  • अनार बम- 3 मिनट में 5,640 यूजी/क्यूबिक मीटर पीएम 2.5 छोड़ता है.

पटाखों की आवाज से नुकसान

  • शोर तनाव, अवसाद, उच्च रक्तपचाप, सुनने में परेशानी, टिन्नीटस, नींद में परेशानी .
  • टिन्नीटस के कारण व्यक्ति की याददाश्त जा सकती है, वह अवसाद/ डिप्रेशन का शिकार हो सकता है.
  • शोर में रहने से रक्तचाप पांच से दस गुना बढ़ जाता है और तनाव बढ़ता है.
  • पटाखों का शोर उच्च रक्तचाप और कोरोनरी आर्टरी रोगों का कारण बन सकते हैं.

Source : न्‍यूज स्‍टेट ब्‍यूरो

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