क्या आपको मालूम है रामायण से जुड़े ये 10 रहस्य, जानकर हो जाएंगे हैरान

इसमें भगवान राम और देवी सीता के जन्म एवं जीवनयात्रा का वर्णन है.

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yogesh bhadauriya
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ramayan serial( Photo Credit : News state)

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हिन्दू धर्म में रामायण का एक खास स्थान है. मनुष्य जाति के जीवन और उनके कर्मों का विशेष प्रकार से रामायण में विवरण दिया गया है. रामायण की रचना “ऋषि वाल्मीकि” द्वारा की गई थी. कहा जाता है कि रामायण (Ramayana) की घटना 4थी और 5वीं शताब्दी ई.पू. की है. हम में से अधिकांश लोगों को रामायण की कहानी पता है, लेकिन इस महाकाव्य से जुड़े कुछ ऐसे भी रहस्य हैं जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है. तो आज हम आपके सामने रामायण से जुड़े ऐसे ही 10 रहस्यों को उजागर कर रहे हैं.

राम और उनके भाइयों के अलावा राजा दशरथ एक पुत्री के भी पिता थे

श्रीराम के माता-पिता एवं भाइयों के बारे में तो प्रायः सभी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि राम की एक बहन भी थीं, जिनका नाम “शांता” था. वे आयु में चारों भाईयों से काफी बड़ी थीं. उनकी माता कौशल्या थीं. ऐसी मान्यता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आए. उनको कोई संतान नहीं थी. बातचीत के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कहा, मैं अपनी बेटी शांता आपको संतान के रूप में दूंगा. यह सुनकर रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हुए. उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाए.

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एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री से बातें कर रहे थे, उसी समय द्वार पर एक ब्राह्मण आए और उन्होंने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में राज दरबार की ओर से मदद प्रदान करें. राजा को यह सुनाई नहीं दिया और वे पुत्री के साथ बातचीत करते रहे. द्वार पर आए नागरिक की याचना न सुनने से ब्राह्मण को दुख हुआ और वे राजा रोमपद का राज्य छोड़कर चले गए. वह ब्राह्मण इन्द्र के भक्त थे. अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इन्द्र देव राजा रोमपद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने उनके राज्य में पर्याप्त वर्षा नहीं की. इससे खेतों में खड़ी फसलें मुरझाने लगी.

इस संकट की घड़ी में राजा रोमपद ऋष्यशृंग ऋषि के पास गए और उनसे उपाय पूछा. ऋषि ने बताया कि वे इन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करें. ऋषि ने यज्ञ किया और खेत-खलिहान पानी से भर गए. इसके बाद ऋष्यशृंग ऋषि का विवाह शांता से हो गया और वे सुखपूर्वक रहने लगे. बाद में ऋष्यशृंग ने ही दशरथ की पुत्र कामना के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था. जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाया था, वह अयोध्या से लगभग 39 कि.मी. पूर्व में था और वहाँ आज भी उनका आश्रम है और उनकी तथा उनकी पत्नी की समाधियाँ हैं.

1. राम विष्णु के अवतार हैं लेकिन उनके अन्य भाई किसके अवतार थे

राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है लेकिन आपको पता है कि उनके अन्य भाई किसके अवतार थे? लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है जो क्षीरसागर में भगवान विष्णु का आसन है. जबकि भरत और शत्रुघ्न को क्रमशः भगवान विष्णु द्वारा हाथों में धारण किए गए सुदर्शन-चक्र और शंख-शैल का अवतार माना जाता है.

2. सीता स्वयंवर में प्रयुक्त भगवान शिव के धनुष का नाम.

हम में से अधिकांश लोगों को पता है कि राम का सीता से विवाह एक स्वयंवर के माध्यम से हुआ था. उस स्वंयवर के लिए भगवान शिव के धनुष का इस्तेमाल किया गया था, जिस पर सभी राजकुमारों को प्रत्यंचा चढ़ाना था. लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि भगवान शिव के उस धनुष का नाम “पिनाक” था.

3. लक्ष्मण को “गुदाकेश” के नाम से भी जाना जाता है

ऐसा माना जाता है कि वनवास के 14 वर्षों के दौरान अपने भाई और भाभी की रक्षा करने के उद्देश्य से लक्ष्मण कभी सोते नहीं थे. इसके कारण उन्हें “गुदाकेश” के नाम से भी जाना जाता है. वनवास की पहली रात को जब राम और सीता सो रहे थे तो निद्रा देवी लक्ष्मण के सामने प्रकट हुईं. उस समय लक्ष्मण ने निद्रा देवी से अनुरोध किया कि उन्हें ऐसा वरदान दें कि वनवास के 14 वर्षों के दौरान उन्हें नींद ना आए और वह अपने प्रिय भाई और भाभी की रक्षा कर सके. निद्रा देवी इस बात पर प्रसन्न होकर बोली कि अगर कोई तुम्हारे बदले 14 वर्षों तक सोए तो तुम्हें यह वरदान प्राप्त हो सकता है. इसके बाद लक्ष्मण की सलाह पर निद्रा देवी लक्ष्मण की पत्नी और सीता की बहन “उर्मिला” के पास पहुंची. उर्मिला ने लक्ष्मण के बदले सोना स्वीकार कर लिया और पूरे 14 वर्षों तक सोती रही.

4. उस जंगल का नाम जहाँ राम, लक्ष्मण और सीता वनवास के दौरान रूके थे

रामायण महाकाव्य की कहानी के बारे में हम सभी जानते हैं कि राम और सीता, लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के लिए वनवास गए थे और राक्षसों के राजा रावण को हराकर वापस अपने राज्य लौटे थे. हम में से अधिकांश लोगों को पता है कि राम, लक्ष्मण और सीता ने कई साल वन में बिताए थे, लेकिन कुछ ही लोगों को उस वन के नाम की जानकारी होगी. उस वन का नाम दंडकारण्य था जिसमें राम, सीता और लक्ष्मण ने अपना वनवास बिताया था. यह वन लगभग 35,600 वर्ग मील में फैला हुआ था जिसमें वर्तमान छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्से शामिल थे. उस समय यह वन सबसे भयंकर राक्षसों का घर माना जाता था. इसलिए इसका नाम दंडकारण्य था जहाँ “दंड” का अर्थ “सजा देना” और “अरण्य” का अर्थ “वन” है।

5. लक्ष्मण रेखा प्रकरण का वर्णन वाल्मीकि रामायण में नहीं है

पूरे रामायण की कहानी में सबसे पेचीदा प्रकरण लक्ष्मण रेखा प्रकरण है, जिसमें लक्ष्मण वन में अपनी झोपड़ी के चारों ओर एक रेखा खींचते हैं. जब सीता के अनुरोध पर राम हिरण को पकड़ने और मारने की कोशिश करते हैं, तो वह हिरण राक्षस मारीच का रूप ले लेता है. मरने के समय में मारीच राम की आवाज में लक्ष्मण और सीता के लिए रोता है. यह सुनकर सीता लक्ष्मण से आग्रह करती है कि वह अपने भाई की मदद के लिए जाए क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि उनके भाई किसी मुसीबत में फंस गए हैं.

पहले तो लक्ष्मण सीता को अकेले जंगल में छोड़कर जाने को राजी नहीं हुए लेकिन बार-बार सीता द्वारा अनुरोध करने पर वह तैयार हो गए. इसके बाद लक्ष्मण ने झोपड़ी के चारों ओर एक रेखा खींची और सीता से अनुरोध किया कि वह रेखा के अन्दर ही रहे और यदि कोई बाहरी व्यक्ति इस रेखा को पार करने की कोशिश करेगा तो वह जल कर भस्म हो जाएगा. इस प्रकरण के संबंध में अज्ञात तथ्य यह है कि इस कहानी का वर्णन ना तो “वाल्मीकि रामायण” में है और ना ही “रामचरितमानस” में है. लेकिन रामचरितमानस के लंका कांड में इस बात का उल्लेख रावण की पत्नी मंदोदरी द्वारा किया गया है.

6. रावण एक उत्कृष्ट वीणा वादक था

रावण सभी राक्षसों का राजा था. बचपन में वह सभी लोगों से डरता था क्योंकि उसके दस सिर थे. भगवान शिव के प्रति उसकी दृढ़ आस्था थी. इस बात की पुख्ता जानकारी है कि रावण एक बहुत बड़ा विद्वान था और उसने वेदों का अध्ययन किया था. लेकिन क्या आपको पता है कि रावण के ध्वज में प्रतीक के रूप में वीणा होने का कारण क्या था? चूंकि रावण एक उत्कृष्ट वीणा वादक था जिसके कारण उसके ध्वज में प्रतीक के रूप में वीणा अंकित था. हालांकि रावण इस कला को ज्यादा तवज्जो नहीं देता था लेकिन उसे यह यंत्र बजाना पसन्द था.

7. इन्द्र के ईर्ष्यालु होने के कारण “कुम्भकर्ण” को सोने का वरदान प्राप्त हुआ था .

रामायण में एक दिलचस्प कहानी हमेशा सोने वाले “कुम्भकर्ण” की है. कुम्भकर्ण, रावण का छोटा भाई था, जिसका शरीर बहुत ही विकराल था. इसके अलावा वह पेटू (बहुत अधिक खाने वाला) भी था. रामायण में वर्णित है कि कुम्भकर्ण लगातार छह महीनों तक सोता रहता था और फिर सिर्फ एक दिन खाने के लिए उठता था और पुनः छह महीनों तक सोता रहता था.

लेकिन क्या आपको पता है कि कुम्भकर्ण को सोने की आदत कैसे लगी थी. एक बार एक यज्ञ की समाप्ति पर प्रजापति ब्रह्मा कुन्भकर्ण के सामने प्रकट हुए और उन्होंने कुम्भकर्ण से वरदान मांगने को कहा. इन्द्र को इस बात से डर लगा कि कहीं कुम्भकर्ण वरदान में इन्द्रासन न मांग ले, अतः उन्होंने देवी सरस्वती से अनुरोध किया कि वह कुम्भकर्ण की जिह्वा पर बैठ जाएं जिससे वह “इन्द्रासन” के बदले “निद्रासन” मांग ले. इस प्रकार इन्द्र की ईर्ष्या की वजह से कुम्भकर्ण को सोने का वरदान प्राप्त हुआ था.

8. नासा के अनुसार “रामायण” की कहानी और “आदम का पुल” एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं 

रामायण की कहानी के अंतिम चरण में वर्णित है कि राम और लक्ष्मण ने वानर सेना की मदद से लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए एक पुल का निर्माण किया था. ऐसा माना जाता है कि यह कहानी लगभग 1,750,000 साल पहले की है. हाल ही में नासा ने पाक जलडमरूमध्य में श्रीलंका और भारत को जोड़ने वाले एक मानव निर्मित प्राचीन पुल की खोज की है और शोधकर्ताओं और पुरातत्वविदों के अनुसार इस पुल के निर्माण की अवधि रामायण महाकाव्य में वर्णित पुल के निर्माणकाल से मिलती है. नासा के उपग्रहों द्वारा खोजे गए इस पुल को “आदम का पुल” कहा जाता है और इसकी लम्बाई लगभग 30 किलोमीटर है.

9. नासा के अनुसार “रामायण” की कहानी और “आदम का पुल” एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं 

रामायण की कहानी के अंतिम चरण में वर्णित है कि राम और लक्ष्मण ने वानर सेना की मदद से लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए एक पुल का निर्माण किया था. ऐसा माना जाता है कि यह कहानी लगभग 1,750,000 साल पहले की है. हाल ही में नासा ने पाक जलडमरूमध्य में श्रीलंका और भारत को जोड़ने वाले एक मानव निर्मित प्राचीन पुल की खोज की है और शोधकर्ताओं और पुरातत्वविदों के अनुसार इस पुल के निर्माण की अवधि रामायण महाकाव्य में वर्णित पुल के निर्माणकाल से मिलती है. नासा के उपग्रहों द्वारा खोजे गए इस पुल को “आदम का पुल” कहा जाता है और इसकी लम्बाई लगभग 30 किलोमीटर है.

10. रावण को पता था कि वह राम के हाथों मारा जाएगा

रामायण की पूरी कहानी पढ़ने के बाद हमें पता चलता है कि रावण एक क्रूर और सबसे विकराल राक्षस था, जिससे सभी लोग घृणा करते थे. जब रावण के भाइयों ने सीता के अपहरण की वजह से राम के हमले के बारे में सुना तो अपने भाई को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी थी. यह सुनकर रावण ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया और राम के हाथों मरकर मोक्ष पाने की इच्छा प्रकट की. उसके कहा कि "अगर राम और लक्ष्मण दो सामान्य इंसान हैं, तो सीता मेरे पास ही रहेगी क्योंकि मैं आसानी से उन दोनों को परास्त कर दूंगा और यदि वे देवता हैं तो मैं उन दोनों के हाथों मरकर मोक्ष प्राप्त करूंगा.

क्या है कोरोना और रामयण का कनेक्शन

बता दें भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया है. ऐसे में घरों में बंद लोग लगातार सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर से टीवी पर रामायण (Ramayan) जैसे सुपरहिट धार्मिक सीरियल को एक बार फिर चलाने की मांग कर रहे थे.

इसके बाद कोरोना के कहर के बीच घरों में बैठे लोगों की मांग का खास ख्याल रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इस पर अपनी हरी झंडी दिखा दी है और उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा कि "जनता की मांग पर कल शनिवार 28 मार्च से 'रामायण' का प्रसारण पुनः दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर शुरू होगा. पहला एपिसोड सुबह 9.00 बजे और दूसरा एपिसोड रात 9.00 बजे होगा."

Source : News State

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