देशभर में बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है. बकरीद के दिन को कुर्बानी के दिन के रूप में भी याद किया जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, कुर्बानी का त्योहार बकरीद रमजान के दो महीने बाद आता हैं. इस्लाम धर्म में बकरीद के दिन आमतौर पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है. इस दिन बकरे को अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं. इस धार्मिक प्रक्रिया को फर्ज-ए-कुर्बान कहा जाता है. ईद-उल-अजहा का त्योहार बुधवार को मनाया जा रहा है. कोरोना वायरस महामारी के चलते सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए मस्जिदों में एक बार में 50 लोग ही नमाज अदा करेंगे. गले मिलकर मुबारकबाद के बजाए दूरसे मुबारकबाद की अपील की जा रही है.
ईद उल अजहा यानी बकरीद इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों का प्रमुख त्योहार है. यह रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद मनाया जाता है. बकरीद मनाने के पीछे कुछ तथ्य भी हैं. इसके अनुसार, हजरत इब्राहिम को अल्लाह का बंदा माना जाता हैं, जिनकी इबादत पैगम्बर के तौर पर की जाती है. जिन्हें इस्लाम मानने वाले हर अनुयायी अल्लाह का दर्जा प्राप्त है. एक बार खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब का इम्तिहान लेने के लिए आदेश दिया कि हजरत अपनी सबसे अजीज की कुर्बानी देंगे, तभी वे खुश होंगे. हजरत के लिए सबसे अजीज उनका बेटा हजरत इस्माइल था, जिसकी कुर्बानी के लिए वे तैयार हो गए.
बता दें कि मुसलमान ईद-उल-अजहा के मौके पर बकरे या तुंबे-भेड़ की कुर्बानी करते हैं. उपमहाद्वीप के अलावा ईद-उल-अजहा को कहीं भी बकरीद नहीं कहा जाता. ईद-उल-अजहा का यह नाम बकरों की कुर्बानी करने की वजह से पड़ गया. बकरा ईद (bakra eid) के अवसर पर सबसे पहले नमाज अदा की जाती है. इसके बाद बकरे या तुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और सगे संबंधियों को दिया जाता है. वहीं, तीसरे हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है.
HIGHLIGHTS
- देशभर में बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है
- बकरीद के दिन को कुर्बानी के दिन के रूप में भी याद किया जाता है
- इस मौके पर बकरे या तुंबे-भेड़ की कुर्बानी करते हैं