Ekdant Sankashti Chaturthi Vrat Katha: हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले या फिर मांगलिक कार्यों सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. वहीं, सनातन धर्म में चतुर्थी तिथि गणपति बप्पा की पूजा के लिए समर्पित है. इन्हीं चतुर्थी तिथि में से एक है ज्येष्ठ माह की. ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर गणेश जी की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही इस दिन आपको पूजा के बाद ये कथा जरूर पढ़नी चाहिए. इससे जातकों की सभी बाधाएं दूर होती हैं. आइए पढ़ते हैं एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा.
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Ekdant Sankashti Chaturthi Vrat Katha)
भगवान शिव और पार्वती कैलाश पर्वत पर निवास करते थे. उनके दो पुत्र थे, गणेश और कार्तिकेय. एक दिन, माता पार्वती ने गणेश और कार्तिकेय को द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया. जब भगवान विष्णु कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो कार्तिकेय ने उन्हें अंदर जाने दिया, लेकिन गणेश ने उन्हें रोक दिया. भगवान विष्णु ने गणेश को समझाने का प्रयास किया, लेकिन गणेश नहीं माने. इससे क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से गणेश जी का सिर काट दिया. जब माता पार्वती को यह पता चला, तो वे अत्यंत दुःखी हुईं. भगवान शिव ने अपने पुत्र को जीवित करने के लिए ब्रह्मा जी को बुलाया. ब्रह्मा जी ने पहले जीव को देखा जो उधर से गुजर रहा था और उसका सिर गणेश के धड़ पर रख दिया. वह जीव एक हाथी था. इस प्रकार, भगवान गणेश का सिर हाथी का सिर बन गया.
भगवान शिव ने गणेश को असीम बुद्धि और शक्ति प्रदान की और उन्हें सभी देवताओं में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया. तब से, संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और उनसे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का नैतिक शिक्षा यह है कि हमें क्रोध और अहंकार से बचना चाहिए. हमें सदैव विनम्र और दयालु रहना चाहिए. भगवान गणेश की पूजा से हमारी बुद्धि और समृद्धि में वृद्धि होती है और सभी संकट दूर होते हैं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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Source : News Nation Bureau