Who Was The First Eunuch: किन्नरों की गिनती ना तो नर में और ना ही नारी में होती है. ऐसा माना जाता है कि कुंडली में बुद्ध, शनि, शुक्र और केतू के अशुभ योगों के कारण व्यक्ति किन्नर पैदा होता है. किन्नरों को आपने अपने आसपास देखा होगा लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि सृष्टि का सबसे पहला किन्नर कौन था? इस बात का जिक्र शिव पुराण में किया गया है कि सृष्टि के आरंभ में भगवान ब्रह्मा ने अपनी योग शक्ति से पुरुषों को उत्पन्न किया. योग द्वारा इंसानों और जीवों को उत्पन्न करने में काफी समय लग रहा था. ऐसे में ब्रह्मा जी के निवेदन पर भगवान भोलेनाथ ने अपने शरीर के आधे अंग से एक स्त्री को उत्पन्न किया और शिव जी का अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए. भगवान के इस रूप में शंकर जी ना तो पूर्ण रूप से पुरुष थे और ना ही पूर्ण स्त्री अर्ध नारीश्वर रूप में जहां सृष्टि में स्त्री रूप का जन्म हुआ. वही किन्नर की भी परिकल्पना हुई इसलिए भगवान भोलेनाथ ही किन्नरों को सृष्टि में लाने वाले माने जाते हैं.
किन्नरों की प्रचलित कथाएं (Kinnar Katha)
सबसे अधिक प्रचलित कथा भगवान राम के वनगमन से संबंधित हैं. हुआ ये कि जब भारत प्रभुराम से मिलने चित्रकूट जा रहे थे, तब सभी अयोध्या वासी भी उनके साथ चित्रकूट आए थे. अयोध्या के लोगों के विनय को अस्वीकार करते हुए भगवान राम ने सभी स्त्री पुरुष को वापस नगर लौट जाने के लिए कहा, परन्तु उनके संबोधन में किन्नरों का नाम नहीं था. किन्तु किन्नर 14 वर्ष तक प्रभु रामचंद्रन के आने की प्रतीक्षा करते रहे.
किन्नर का आशीर्वाद क्यों माना जाता है वरदान? (Kinnar ka Ashirwad)
भगवान राम जब वापस लौटे तो वो उन्हें मिले. उनकी निश्चल और निस्वार्थ भावना से प्रसन्न होकर तब भगवान राम ने उन्हें वरदान दिया कि तुम जिन्हें आशीर्वाद दे दोगे उनका कभी भी अनिष्ट नहीं होगा.
किन्नरों से जुड़ी दिलचस्प बातें (Fact About Kinnar)
किन्नरों के कुछ वर्ग भी होते हैं. उन्हें चार वर्गों में बांटा गया है बुचरा, नीलिमा, मनसा और हंसा.
सम्पूर्ण किन्नर समुदाय को संरचना की दृष्टि से सात घरानों में बांटा जाता है. हर घराने के प्रधान को नायक कहा जाता है. यह सभी नायक ही अपने गुरु का चुनाव करते हैं. महाभारत के शिखंडी को भी इसी समाज का प्रतिनिधि माना जाता है.
कैसे होती है किन्नरों की शादी ? (Kinnar Marriage)
इसके साथ ही आप यह भी जान लीजिए कि भारत के इस राज्य में किन्नरों का उत्सव मनाया जाता है. विल्लुपुरम जिले के कूवगम गांव में अरावन देवता का सबसे प्राचीन और मुख्य मंदिर है. कूवगम गांव में हर साल तमिल नए साल की पहली पूर्णिमा को 18 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव की शुरुआत होती है. इसमें देश भर और विदेशों से किन्नर आते हैं. पहले 16 दिनों तक काफी नाच गाना होता है और हर्षोल्लास के साथ शादी की तैयारी करते हैं. सत्रहवें दिन पंडित जी द्वारा खास पूजा होती है, जिसके बाद अरावन देवता के सामने मंदिर के पुजारी ईश्वर की तरफ से किन्नरों के गले में मंगलसूत्र पहनाते हैं. वह सभी देवता अरावन की मूर्ति से शादी रचाते हैं और अंतिम दिन यानी अट्ठारहवें दिन सारे कुगम गांवों में अरावन की मूर्ति को घुमाया जाता है और फिर उसे तोड़ दिया जाता है. उसके बाद दुल्हन बने हिजड़े अपना मंगलसूत्र तोड़ देते हैं. साथ ही चेहरे पर कई सारे श्रृंगार को भी बिगाड़ देते हैं, फिर सफेद कपड़े पहन लेते हैं और बहुत रोते हैं. जिसके साथ ही इस उत्सव का समापन हो जाता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau