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Falgun Amavasya 2024 Stotra: फाल्गुन अमावस्या पर पितृ स्तोत्र और कवच का पाठ करना है बेहद लाभकारी

पितृ स्तोत्र और कवच का पाठ (Pitra Stotra and Kavach Benefits) करना बेहद लाभकारी होती है। तो आइए यहां करते हैं.

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Sushma Pandey
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Falgun Amavasya 2024 Stotra

Falgun Amavasya 2024 Stotra( Photo Credit : NEWS NATION)

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Falgun Amavasya 2024 Stotra: सनातन धर्म में अमावस्या तिथि को बेहद ही पवित्र माना जाता है. अमावस्या तिथि के दिन भगवान विष्णु और पितरों की पूजा की जाती है. यूं तो साल में कुल 12 अमावस्या पड़ती है जिनमें से एक फाल्गुन माह की अमावस्या (Falgun Amavasya 2024) है. फाल्गुन अमावस्या के दिन स्नान-दान और श्राद्ध कर्म करने का विशेष महत्व होता है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन स्नान-दान और श्राद्ध कर्म करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. साथ ही पितृ दोष समाप्त होता है. इसके अलावा इस दिन आपको पितृ स्तोत्र और कवच का पाठ (Pitra Stotra and Kavach Path) जरूर करना चाहिए. ऐसा करना बेहद लाभकारी माना जाता है. 

।।पितृ स्तोत्र का पाठ।।  (Pitra Stotra)

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

।।पितृ कवच का पाठ।। (Pitra Kavach Path) 

कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

यो नो अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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Source : News Nation Bureau

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