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Shri Ramcharitmanas: श्री रामचरित मानस खंड 1 के प्रसिद्ध श्लोक, पढ़कर मिलेगी शांति

इस श्लोक में सारांश है कि मनुष्य का जीवन सांसारिक सत्यों के साथ जुड़ा होता है, और रघुकुल के श्रेष्ठ जीवन के आदर्शों का अनुसरण करने से व्यक्ति जीवन में योग्य और उत्कृष्ट बनता है.

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Vikash Gupta
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Shri Ramcharitmanas ( Photo Credit : News Nation)

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Shri Ramcharitmanas: "श्रीरामचरित मानस" गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण हिन्दू एपिक है जो श्रीराम की महिमा और जीवन को कविता के रूप में व्यक्त करता है. यह कृति अष्टादशक (18) खंडों में बांटी गई है और हर खंड को "काण्ड" कहा जाता है. रामचरित मानस का पहला खंड 'बाल काण्ड' है, जिसमें भगवान श्रीराम के बचपन का वर्णन है. यहां कुछ श्लोक इस खंड से लिए गए हैं जिसे पढ़ने से आपके मन को शांति मिलेगी. 

श्रीरामचरित मानस - बाल काण्ड, श्लोक 1:

मनुज जनम मृत्यु तजी चिता।
रघुकुल श्रेष्ठ जगजीवन विभूषिता।।1।।

"मनुज जनम मृत्यु तजी चिता।": मनुष्य का जन्म होता है और मृत्यु उसकी निश्चितता है. यह श्लोक मृत्यु का स्वीकृति करने की बात कर रहा है, जिसमें जीवन की अनिश्चितता और अनिवार्यता का उद्घाटन है.

"रघुकुल श्रेष्ठ जगजीवन विभूषिता।": रघुकुल (राम के वंशज) का श्रेष्ठ वंश जगत् को जीवन में उत्कृष्ट बना देता है. यह श्लोक रघुकुल की महिमा और राम के परायण जीवन की गुणवत्ता का वर्णन कर रहा है.

इस श्लोक में सारांश है कि मनुष्य का जीवन सांसारिक सत्यों के साथ जुड़ा होता है, और रघुकुल के श्रेष्ठ जीवन के आदर्शों का अनुसरण करने से व्यक्ति जीवन में योग्य और उत्कृष्ट बनता है.

श्रीरामचरित मानस - बाल काण्ड, श्लोक 2:

तात राजु दशरथ सब अवधि देवहित भाग्यशाली।
सुमति भगवान प्रभु कृपालु सुखदाता सुखकारी।।2।।

"तात राजु दशरथ सब अवधि देवहित भाग्यशाली।": इस श्लोक में कहा गया है कि राजा दशरथ सभी समय देवताओं के हित में निरंतर रहते थे और उन्हें भाग्यशाली माना जाता था। यह उनकी धार्मिकता और न्यायप्रियता को बताता है.

"सुमति भगवान प्रभु कृपालु सुखदाता सुखकारी।।2।।": यहां कहा जा रहा है कि राजा दशरथ ने सुमति (अच्छे मनश्चित्त) के साथ भगवान राम का ध्यान किया और भगवान की कृपा प्राप्त की। उन्हें सुखदाता और सुखकारी माना जाता है, जिससे सुख और आनंद का स्रोत होता है.

इस श्लोक में राजा दशरथ की धार्मिकता, भगवान के प्रति श्रद्धा, और न्यायप्रियता का उदाहरण है, जिससे उन्हें भाग्यशाली माना जाता है.

श्रीरामचरित मानस - बाल काण्ड, श्लोक 3:

विषय जन संग कर कृपानिधाना।
रामकथा बहु भांति विविध बुध जननी।।3।।

"विषय जन संग कर कृपानिधाना।": यहां यह कहा जा रहा है कि मनुष्य को अपने विषयों और इंद्रियों के संग से दूर रहकर आत्मा को ध्यान में लगाना चाहिए। कृपानिधाना यहां दया और करुणा का अद्भुत स्रोत होता है जो स्वयं राम की कथा में समाहित है.

"रामकथा बहु भांति विविध बुध जननी।।3।।": यहां श्लोक कह रहा है कि रामकथा, भगवान राम की कहानी, विभिन्न प्रकारों में बुद्धिमान लोगों के लिए एक अद्वितीय स्रोत है। यह सभी को धार्मिक और मार्गदर्शन की दिशा में आगे बढ़ने का उत्साह प्रदान करता है.

इस श्लोक में बताया जा रहा है कि व्यक्ति को अपने इंद्रियों की भोगने की प्रवृत्ति से हटकर, आत्मा के ध्यान में लगने का प्रयास करना चाहिए और रामकथा को सुनकर आत्मा को शुद्धि और शांति की प्राप्ति करनी चाहिए.

श्रीरामचरित मानस - बाल काण्ड, श्लोक 4:

मातु सम अनृत न कोउ बचना।
मनभरि बचन कवि कहावौ।।4।।

"मातु सम अनृत न कोउ बचना।": यहां कहा जा रहा है कि माता की तुलना में कोई भी असत्य बोलने का प्रयास नहीं करना चाहिए। माता जैसी पवित्रता और सत्य कोई भी कहाने वाला बना नहीं सकता है.

"मनभरि बचन कवि कहावौ।।4।।": इसके बाद श्लोक कह रहा है कि कवि (कविता कार) को भी अपने वचनों को मन से भरकर उच्च स्तर पर रखना चाहिए. कविता में सत्य और सौंदर्य की भावना को बनाए रखना चाहिए.

इस श्लोक में यह बताया जा रहा है कि सत्य और सच्चाई को सदैव बनाए रखना चाहिए, चाहे आप किसी भी क्षेत्र में हों, वह कविता या जीवन के किसी भी पहलुओं में।

श्रीरामचरित मानस - बाल काण्ड, श्लोक 5:

गोसाइन नीति बचन राखा।
राम कथा कहन सिरु जिउ भाखा।।5।।

"गोसाइन नीति बचन राखा।": यहां कह रहा है कि गोसाइन (भगवान के पूज्य भक्त) को नीति और आचरण में सत्य और धर्म की पालना करनी चाहिए.

"राम कथा कहन सिरु जिउ भाखा।।5।।": इसके बाद कहा जा रहा है कि राम कथा कहना, भगवान राम की कहानी सुनाना, यह किसी भी भक्त के लिए उसकी जीवनशैली का हिस्सा होना चाहिए, जिसे वह जीवन भर में अपनाए.

इस श्लोक में यह बताया जा रहा है कि भगवान के भक्तों को सत्य, नीति, और राम कथा को अपने जीवन में अपनाना चाहिए ताकि वे धार्मिक और आदर्श जीवन बिता सकें.

श्रीरामचरित मानस - बाल काण्ड, श्लोक 6:

कृपानिधान श्रुति बेद पुराना।
भक्ति बिनोद भगवान।।6।।

"कृपानिधान श्रुति बेद पुराना।": यहां कह रहा है कि भगवान की कृपा से ही श्रुति, वेद, और पुराण मिलते हैं। इससे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है.

"भक्ति बिनोद भगवान।।6।।": इसके बाद श्लोक कह रहा है कि भक्ति के बिना भगवान का अनुभव नहीं हो सकता। भक्ति से ही भगवान का परमानंद होता है.

इस श्लोक में यह बताया जा रहा है कि भगवान की कृपा के बिना, श्रुति, वेद, और पुराण तक प्राप्त नहीं हो सकते हैं, और भगवान का अनुभव भक्ति के माध्यम से ही हो सकता है.

इन श्लोकों में गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरित मानस के बाल काण्ड की उदारता, राजा दशरथ, माता कौसल्या, और भगवान श्रीराम की महिमा का वर्णन किया है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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