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Father's Day 2022: सबसे पहले रामायण और महाभारत ने समझाया था पिता का महत्व, इन किस्सों ने खोल दिया था सारा सच

Father's Day 2022: सनातन धर्म में पिता का महत्व कई युगों पहले ही बता दिया जा चुका है. ऐसे आज हम आपको रामायण और महाभारत काल के कुछ किस्सों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें पिता के महत्व को लेकर एक अलग ही रहस्य वर्णित किया है.

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Gaveshna Sharma
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Fathers Day 2022

सबसे पहले रामायण और महाभारत ने समझाया था पिता का महत्व( Photo Credit : News Nation)

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Father's Day 2022: फादर्स डे हर साल जून के तीसरे सप्ताह में मनाया जाता है. इस महीने का तीसरा रविवार पिता को समर्पित किया गया है. इस बार फादर्स डे 19 जून को मनाया जाएगा. फादर्स डे मनाने की शुरुआत यूरोपियन देशों में लगभग 109 साल पहले हुई है, लेकिन सनातन धर्म में पिता का महत्व कई युगों पहले ही बता दिया जा चुका है. त्रेतायुग और द्वापर युग के हिंदू धर्मग्रंथों में भी पिता-पुत्र के संबंधों को लेकर कुछ किस्से बताए गए हैं जिनका महत्व आज फादर्स डे पर बहुत है. आज हम आपको रामायण और महाभारत काल के कुछ किस्सों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें पिता के महत्व को लेकर एक अलग ही रहस्य वर्णित किया है. 

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राजा शांतनु - पुत्र को दिया इच्छा मृत्यु का वरदान
महाभारत के अनुसार, भीष्म के पिता राजा शांतनु थे. जब राजा शांतनु निषाद कन्या सत्यवती पर मोहित हो गए तब वे विवाह का प्रस्ताव लेकर उसके पिता के पास गए. सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु वचन मांगा कि उसकी पुत्री से उत्पन्न संतान ही राजा बनेगी, तब उन्होंने मना कर दिया. जब ये बात भीष्म को पता चली तो वे सत्यवती के पिता के पास गए और वचन दिया कि वे आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे और सत्यवती की संतान की राजा बनेगी. इस तरह उन्होंने अपने पिता की इच्छा पूरी की. प्रसन्न होकर राजा शांतनु ने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया.

राजा दशरथ- पुत्र वियोग में निकले प्राण
अयोध्या के राजा दशरथ अपने सबसे बड़े पुत्र श्रीराम से बहुत प्रेम करते थे. वे श्रीराम को राजा बनाना चाहते थे, लेकिन अपने वचन के कारण उन्हें न चाहकर भी राम को वनवास पर भेजना पड़ा. वनवास पर जाने से पहले उन्होंने श्रीराम से ये भी कहा कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ. श्रीराम के वनवास जाने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग दिए.

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बाली- पुत्र को दिखाया सही रास्ता
रामायण के अनुसार, वानरराज बाली ने मरते समय अपने पुत्र अंगद को श्रीराम को सौंपा था, जबकि बाली की मृत्यु श्रीराम के हाथों ही हुई थी. बाली जानता था कि श्रीराम ही उसके पुत्र अंगद का उद्धार कर उसकी शक्ति का सदुपयोग कर सकते हैं. बाली की दूरदृष्टिता के कारण ही अंगद ने श्रीराम के साथ रहते हुए युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अगर बाली अंगद को श्रीराम को समर्पित नहीं करता ता संभव है वह अपनी शक्ति का सही उपयोग नहीं कर पाता.

अर्जुन- लिया पुत्र की मृत्यु का प्रतिशोध
अर्जुन भी अपने पुत्र अभिमन्यु से बहुत प्रेम करते थे. अभिमन्यु ने अर्जुन व श्रीकृष्ण से ही अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की थी. युद्ध में जब कौरवों ने अभिमन्यु का वध कर दिया, तब अर्जुन ने कसम खाई कि वह अगले दिन सूर्य ढलने से पहले जयद्रथ का वध कर देगा (क्योंकि जयद्रथ ने ही पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोक दिया था), नहीं तो स्वयं आत्मदाह कर लेगा. अपने वचन के अनुसार अर्जुन ने अगले दिन सूर्यास्थ होने से पहले जयद्रथ का वध कर अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु का बदला ले लिया था.

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