Ganesh Chaturthi 2022 Ganpati Avtaar: हर साल बड़े ही धूम धाम से गणपति उत्सव मनाया जाता है. इस साल 10 दिनों तक चलने वाला महापर्व गणेशोत्सव 31 अगस्त, दिन बुधवार से शुरू हो चुका है. जिसका समापन 9 सितंबर, दिन शुक्रवार को होगा. गणेश अंक में गणेश जी से जुड़ी कई कथाएं बताई गई हैं. इन कथाओं में मनुष्य के विकारों की ओर संकेत किया गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, गणेश जी ने जिस जिस राक्षस का वध किया है उसका संबंध कहीं न कहीं मनुष्य के किसी न किसी विकार से जरूर रहा है. इसलिए कहा जाता है कि गणेश जी की भक्ति से ही व्यक्ति अपने अंदर की हर बुराई को नष्ट कर सत्कर्म कर सकता है. ऐसे में आइए गणेश अंक ग्रंथ में दी गई जानकारी के आधार पर जानते हैं कि भगवान श्री गणेश ने किस रूप में किस राक्षस का वध किया था.
वक्रतुंड अवतार
मत्सरासुर नामक राक्षस जो शिव जी का परम भक्त था उसने अपने पुत्रों सुंदरप्रिय और विषयप्रिय के साथ मिलकर देवताओं को परास्त कर दिया था. दरअसल, ये राक्षस शिव भक्त था और उसने शिवजी की तपस्या करके वरदान पा लिया था कि उसे किसी से भय नहीं रहेगा. मत्सरासुर ने दैत्यगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से अपने पुत्रों के साथ मिलकर देवताओं को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. सारे देवता शिव जी की शरण में पहुंच गए. तब भगवान शिव ने उन्हें गणेश जी का आवाहन करने को कहा. जिसके बाद गणेश जी ने वक्रतुंड अवतार लेकर असुर के पुत्रों का विनाश कर दिया. वहीं, मत्सरासुर बाद में गणपति बप्पा का भक्त हो गया.
एकदंत अवतार
महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद नाम के राक्षस की रचना की. वह च्यवन का पुत्र कहलाया. मद ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली. शुक्राचार्य ने उसे हर तरह की विद्या में निपुण बनाया. शिक्षा पूर्ण होने पर उसने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया. सारे देवता उससे थर थर कांपने लगे. जिसके बाद सारे देवताओं ने मिलकर गणपति की आराधना की. तब भगवान गणेश एकदंत रूप में प्रकट हुए. उनके हाथ में पाश, परशु, अंकुश और एक खिला हुआ कमल था. एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया.
महोदर अवतार
जब कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को देवताओं के खिलाफ खड़ा किया. मोहासुर नामक इस राक्षस ने देवताओं को स्वर्ग से निकालकर देवलोक में अपना आधिपत्य जमा लिया. तब सभी देवताओं की सहायता करने के लिए गणेश जी ने महोदर रूप धारण किया. महोदर अर्थात बड़ा पेट. महोदर अवतार में गणेश जी जब मोहासुर के नगर में पहुंचे तो मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना इष्ट बना लिया.
लंबोदर अवतार
क्रोधासुर नाम के दैत्य ने ने सूर्यदेव की उपासना करके उनसे ब्रह्माण्ड विजय का वरदान ले लिया. क्रोधासुर के इस वरदान के कारण सारे देवता भयभीत हो गए. वहीं, क्रोधासुर भी देवताओं से युद्ध के लिए लालाहित था. तब गणपति ने लंबोदर रूप धरकर उसे रोक लिया. क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी अजेय योद्धा नहीं हो सकता. क्रोधासुर ने अपना विजयी अभियान रोक दिया और सब छोड़कर पाताल लोक में चला गया.
धूम्रवर्ण अवतार
एक बार सूर्यदेव को छींक आ गई और उनकी छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई. उसका नाम था अहम. वो शुक्राचार्य के समीप गया और उन्हें गुरु बना लिया. जिसके बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसका नाम बदल कर अहंतासुर कर दिया. उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए. वरदान प्राप्त करने के बाद उसने भी बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया. तब गणेश जी ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया. उनका रंग धुंए जैसा था और शरीर विकराल. उनके हाथ में भीषण पाश था. धूम्रवर्ण के रुप में गणेश जी ने अहंतासुर को हरा दिया और अपनी भक्ति प्रदान की.
विकट अवतार
भगवान विष्णु ने जलंधर नाम के राक्षस के विनाश के लिए उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया था. उससे एक दैत्य उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कामासुर. कामासुर ने शिव की आराधना करके त्रिलोक विजय का वरदान पा लिया. इसके बाद उसने अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए. तब सारे देवताओं ने भगवान गणेश का ध्यान किया और भगवान गणपति ने विकट रूप में अवतार लिया. विकट रूप में भगवान मोर पर विराजित होकर अवतरित हुए. उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया.
गजानन अवतार
धनराज कुबेर से लोभासुर का जन्म हुआ. वह शुक्राचार्य की शरण में गया और उसने शुक्राचार्य के आदेश पर शिवजी की उपासना शुरू की. शिव लोभासुर से प्रसन्न हो गए. उन्होंने उसे निर्भय होने का वरदान दिया. इसके बाद लोभासुर ने सारे लोकों पर कब्जा कर लिया. तब देवगुरु बृहस्पति ने सारे देवताओं को गणेश जी का स्मरण करने का उपाय सुझाया. गणेश जी ने गजानन रूप में दर्शन दिए और देवताओं को लोभासुर को पराजित करने का आश्वासन भी दिया. गणेशजी ने लोभासुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा. किन्तु शुक्राचार्य की सलाह पर लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली.
विघ्नराज अवतार
एक बार माता पार्वती अपनी सखियों के साथ बातचीत के दौरान जोर से हंस पड़ीं. उनकी हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई. माता पार्वती ने उसका नाम मम (ममता) रख दिया. वह माता पार्वती की आज्ञा लेने के बाद वन में तप के लिए चला गया. वहीं वो शंबरासुर से मिला. शंबरासुर ने उसे कई आसुरी शक्तियां सीखा दीं. उसने मम को गणेश की उपासना करने को कहा. मम ने गणपति को प्रसन्न कर ब्रह्माण्ड का राज मांग लिया. वरदान में ब्रह्मांड का राज मिलते ही शंबरासुर ने मम का विवाह अपनी पुत्री मोहिनी के साथ कर दिया. शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में सुना तो उसे दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया. शक्तियां आते ही ममासुर ने भी अत्याचार शुरू कर दिए और सारे देवताओं को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया. तब देवताओं ने गणेश की उपासना की. गणेश विघ्नेश्वर के रूप में अवतरित हुए और उन्होंने ममासुर का मान मर्दन कर देवताओं को छुड़वाया.