Ganesh Chaturthi 2023: शिव पुराण और लिंग पुराण के अनुसार, हनुमान जी और गणेश भगवान के बीच एक बार ऐसा भयंकर युद्ध छिड़ गया था जिसे शांत करवाने स्वयं महादेव को प्रकट होना पड़ा. ये युद्ध क्यों हुआ और इसे शांत करवाने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती को क्या करना पड़ा ये एक पौराणिक कथा है. गणेश चतुर्थी का त्योहार इस बार मंगलवार के दिन शुरु हो रहा है ऐसे में हमने सोचा क्यों ना आपको आज इस कहानी के बारे में बताएं. ये कहानी असुर महिषासुर के पुत्र गजासुर से शुरु होती है. महिषासुर का वध मां दूर्गा द्वारा हुआ था लेकिन अब आप ये सोच रहे होंगे कि फिर इसमें गणेश जी और हनुमान जी क्यों युद्ध करने लगे तो आइए पुराणों से पन्नों को पलटकर देखते हैं.
पुराणों के अनुसार, गजासुर नाम का एक असुर हुआ करता था जो महिषासुर का पुत्र था. ये तो सब जानते हैं कि माता दूर्गा ने महिषासुर का वध किया था लेकिन ये बात शायद आप ना जानते हैं कि जब महिषासुर का वध हुआ तब उसकी पत्नी गर्भवती थी और उनके गर्भ से गजासुर नामक असुर ने जन्म लिया. गजासुर जब बड़ा हुआ तब उसने अपनी माता से पिता की मृत्यु के बारे में पूछा. गजासुर की माता ने बताया की माता दूर्गा जो पार्वती का ही एक रूप हैं उन्होंने महिषासुर का वध कर तुम्हें अनाथ बनाया था.
जब गजासुर ने ली गणेश जी के वध की प्रतिज्ञा
माता की ये बात सुनते ही गजासुर इस तरह क्रोधित हुआ कि उसने गुस्से में प्रतिज्ञा ले डाली कि जिस तरह से उन्होंने मुझे अनाथ बनाया है उसी तरह से वो भी उनके पुत्र गणेश का वध कर उन्हें इस दुख का एहसास करवाएंगे.
गजासुर ने कई युगों तक ब्रह्मदेव की तपस्या की. अमरता का वरदान पाने के लिए ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया लेकिन जब ब्रह्मा जी ने उसे ये वरदान देने से मना कर दिया तब उसने कहा कि आप मुझे वरदान दें कि मेरा वध केवल उसी के हाथ से हो जिसने काम को जीत लिया हो. ब्रह्माजी ने उसे ये वरदान दे दिया और अंतर्धान हो गए.
गजासुर ने हनुमान जी को किया वचनबद्ध
गजासुर ने वरदान पाने के बाद सृष्टि पर उत्पात मचाना शुरु कर दिया. गजासुर ये जानता था कि गणेश को मारना इतना आसान नहीं है. उसने इस बारे में सोचा और एक दिन रामभक्त का स्वांग रच महाबली हनुमान की तपस्या शुरु कर दी. जब महाबली ने देखा कि उन्ही के समान एक रामभक्त उनकी तपस्या कर रहा है तो उन्होंने गजासुर को दर्शन दिए. गयासुर ने उनसे वरदान का वचन लेकर कहा कि शिवपुत्र गणेश श्रीराम की सदैव अवहेलना करता है. मैं चाहता हूँ कि आप उससे युद्ध कर उसे मृत्युदंड दें.
वचनबद्ध हनुमान जी श्रीगणेश से युद्ध करने चल पड़े. रास्ते में उनकी भेंट देवर्षि नारद से हुई. उन्होंने देवर्षि से पूछा कि क्या वास्तव में गणेश राम द्रोही हैं? देवर्षि स्वयं चाहते थे कि गजासुर का विनाश शीघ्र ही हो, यही सोच कर उन्होंने झूठ तो नहीं बोला पर बात बदल कर कहा कि गणेश तो सदैव शिव भक्ति में लीन रहते हैं, श्रीराम का समरण करते तो मैंने उन्हें कभी नहीं सुना. देवर्षि से ऐसा सुन कर हनुमान उसे सत्य मान कर कैलाश पहुंचे और श्रीगणेश को ललकारा.
देवर्षि सब जानते थे इसलिए वो माता पार्वती के पास पहुंचे और उन्हें बताया कि कैसे हनुमान आपके पुत्र गणेश से युद्ध करने कैलाश गए हैं. ये सुनकर माता पार्वती महादेव के साथ उस युद्ध को रोकने चल दी.
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इस सब पर पहले से ही गजासुर की नज़र थी उसने उनका मार्ग रोका और हंसते हुए कहा कि "हे देवी! जिस प्रकार तुम्हारे कारण मैं अपने पिता के लिए तड़पा हूँ, तुम भी आज अपने पुत्र के लिए तड़पोगी।" महादेव इस बात से क्रोधित होकर गजासुर का वध करने के लिए प्रकट हुए.
ऐसे हुआ हनुमान जी और श्रीगणेश का युद्ध
हनुमान जी अपने पंचमुखी स्वरुप के साथ श्रीगणेश से युद्ध करने लगे. दोनों अनजाने में एक दूसरे से इस तरह लड़ रहे थे कि कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था. श्रीगणेश ने अपना अमोघ अंकुश हनुमानजी पर चलाया तो पवनपुत्र ने अपनी अमोघ गदा को उसके प्रतिकार के लिए चलाया. कहते हैं कि जब दोनों दिव्यास्त्र टकराये तो पूरी सृष्टि हिल गयी. इतना ही नहीं इसके बाद श्रीगणेश ने अपनी सूंड से हनुमान जी को जकड़ किया और फिर पवनपुत्र हनुमान ने अपनी पूंछ से विघ्नहर्ता को जकड़ लिया. अब दोनों इस अवस्था में आ चुके थे कि कोई ना तो लड़ पा रहा था ना ही एक दूसरे से छूट पा रहा था.
गजासुर का वध- गजासुर को वरदान था कि जिसने काम को जीता होगा वही उसका वध कर पाएगा. वो जानता नहीं था कि केवल भगवान शिव ही हैं जिन्होंने काम को जीता है. ऐसे में शिव के हाथों गजासुर का वध होना नियती ही थी. काल के वश में आकर जब गजासुर महादेव से टकराया तो उसकी सारी शक्तियां मानों समाप्त हो गयी. उस असुर का अंत समय निकट आया देख कर महादेव ने तक्षण अपने त्रिशूल से गजासुर का मस्तक काट लिया. इस प्रकार उस अन्यायी असुर का अंत हुआ.
भगवान शिव माता पार्वती के साथ उस स्थान पर पहुंचे जहां गणेश जी और हनुमान जी युद्ध कर रहे थे. महादेव ने उन दोनों को मुक्त किया और समझा-बुझा कर उस युद्ध को रुकवाया.
तब माता पार्वती ने हनुमान जी को गजासुर के छल के विषय में बताया और ये भी बताया कि वो असुर महादेव के हाथों मारा जा चुका है। माता ने कहा कि राम और शंकर में कोई भेद नहीं हैं, दोनों एक ही हैं. जो दोनों को अलग समझता है उन्हें किसी की भी भक्ति प्राप्त नहीं होती.
इस तरह माता पार्वती और भगवान शिव की वजह से हनुमान जी और गणेश जी का युद्ध समाप्त हुआ और दोनों के बीच दोस्ती हुई. हिंदू धर्म (religion news in hindi) में हनुमान जी और गणेश भगवान की बहुत महत्त्वता है. ऐसे में इस पौराणिक कथा के बारे में आप भी जान लें बस हमारी यही कोशिश है.
ये पौराणिक कथा है जिसके बारे में अलग-अलग जगह पर कुछ अलग तथ्य मिलते हैं. क्या सही है इस बारे में न्यूज़ नेशन किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता.