Ganesh Visarjan Katha: सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय और विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है. माना जाता है कि गणेश जी की नियमित पूजा से सभी दुख-संकट दूर हो जाते हैं और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की पूजा से की जाए, तो वह कार्य निर्विघ्न संपन्न होता है. इसलिए, गणेश जी को बुद्धि और विवेक के दाता के रूप में भी जाना जाता है. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन गणेश जी का जन्म हुआ था. इस दिन से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है, जो अनंत चतुर्दशी तक चलता है.
गणेश उत्सव का महत्व
गणेश उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. लोग अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना कर, दस दिनों तक विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं. यह माना जाता है कि भगवान गणेश इन दस दिनों में अपने भक्तों के घर में रहकर उनके सभी दुख-दर्द दूर कर उन्हें सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. भक्तों द्वारा गणेश जी की प्रिय वस्तुओं का भोग लगाकर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. दस दिनों की पूजा के बाद, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति का जल में विसर्जन किया जाता है.
गणेश विसर्जन का कारण और पौराणिक कथा
गणेश विसर्जन के पीछे एक महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है. कथा के अनुसार, महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत ग्रंथ की रचना के लिए भगवान गणेश को लेखक के रूप में चुना. वेद व्यास जी कथा सुनाते थे और गणेश जी उसे लिखते थे. वेद व्यास जी लगातार दस दिनों तक आंखें बंद करके कथा सुनाते रहे और गणेश जी उसे लगातार लिखते रहे. इस दौरान गणेश जी के शरीर का तापमान अत्यधिक बढ़ गया. तब वेद व्यास जी ने गणेश जी को ठंडा करने के लिए तालाब में स्नान कराया. तभी से गणेश विसर्जन की परंपरा की शुरुआत हुई.
इस प्रकार, गणेश विसर्जन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भगवान गणेश के आशीर्वाद प्राप्त करने और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का महत्वपूर्ण पर्व है. विसर्जन की इस परंपरा से यह संदेश मिलता है कि भगवान गणेश के आशीर्वाद से जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)