आज देशभर में गणगौर मनाया जा रहा है. हर सला चैत्र शुक्ल की तृतीया को पड़ने वाले इस त्योहार का काफी महत्व है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती है. अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर पाने के लिए ये व्रत रखती है.
ये त्योहार मुख्य रूप से राजस्थान में मनाया जाता है. इस दौरान महिलाएं और अविवाहित कन्याएं गण यानी शिव और गौर यानी पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं. ये त्योहार चैत्र कृष्ण पक्ष की तृतीया से शुरू होता है और चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक चलता है.
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कैसे होती है पूजा
गणगौर के 16 दिन महिलाएं दूब से गणगौर माता को दूध के छीटें देती हैं और श्रद्धा भाव से उनकी पूजा करती हैं. वहीं चैत्र शुक्ल की द्ववितीया को उन्हें पानी पिलाया जाता है और चैत्र शुक्ल की तृतीया को उनका विसर्जन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने पार्वती को सदा सुहागन रहने का वरदान दिया था और माता पार्वती ने सभी सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया था.
गणगौर कथा
एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए. वह चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे. उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी व अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई. पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया.
थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची. इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया. अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है.
इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा. किंतु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी. जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया.
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पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो. तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई. स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया.
भोग लगाया और प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया. उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा. भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए.
इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया. पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी. शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे. उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया.
Source : News Nation Bureau