Govatsa Dwadashi 2022: हिंदू पंचाग के अनुसार, जन्माष्टमी के ठीक 4 दिन बाद गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है. भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को इस पर्व का महोत्सव सभी गौशालाओं में धूम धाम से मनाया जाता है. इस दिन गाय-बछड़े की विधि विधान से पूजा की जाती है. इस पर्व को लोक भाषा में बछ बारस या ओक द्वादशी भी कहते हैं. इस पर्व पर महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है. माना जाता है कि गोवत्स द्वादशी के दिन व्रत रखने से संतान को दीघार्यु और हर विपत्ति से रक्षा प्राप्त होती है. गोवत्स द्वादशी का पर्व संतान के जीवन में प्रसन्नता आने का सूचक होता है. भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन गाय-बछड़े की पूजा और व्रत करने वाला सभी सुखों को भोगते हुए अंत में गौ के शरीर पर जितने भी रौएं हैं, उतने वर्षों तक श्री कृष्ण और राधा रानी के धाम गोलोक में वास करता है.
गोवत्स द्वादशी 2022 पूजा विधि (Govatsa Dwadashi 2022 Puja Vidhi)
- गोवत्स द्वादशी के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं सवेरे स्नान करके साफ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें.
- इसके बाद गाय और उसके बछड़े को स्नान करवाकर दोनों को नए वस्त्र ओढ़ाएं.
- गाय और बछड़े को फूलों की माला पहनकर उनके माथे पर तिलक लगाएं.
- गऊ माता को हरा चारा, अंकुरित मूंग, मौठ, चने व मीठी रोटी एवं गुड़ आदि श्रद्धा से खिलाएं.
- गाय की पूजा कर, गाय को स्पर्श करते हुए क्षमा याचना कर परिक्रमा करें.
- अगर घर के आस-पास गाय व बछड़ा नहीं मिले तो शुद्ध गीली मिट्टी के गाय-बछड़े बनाकर उनकी पूजा का सकते हैं.
- इस दिन महिलाओं को चाकू से कटा हुआ न तो बनाना चाहिए और न ही खाना चाहिए.
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गोवत्स द्वादशी 2022 गौ माता पूजन महत्व (Govatsa Dwadashi 2022 Significance Of Gau Mata Pujan)
- गौ माता को पृथ्वी का प्रतीक माना जाता है. गौ माता में सभी देवी देवताओं का वास है और यह श्री कृष्ण को भी अतिप्रिय हैं. इसके अतिरिक्त, सभी वेद भी गौओं में प्रतिष्ठित है. गाय से प्राप्त सभी घटकों में जैसे दूध, घी, गोबर अथवा गौमूत्र में सभी देवताओं के तत्व संग्रहित रहते हैं. ऐसी मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ खुश करना है तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं.
- गौ माता को बस एक ग्रास खिला दो, तो वह सभी देवी-देवताओं तक अपने आप ही पहुंच जाता है. भविष्य पुराण के अनुसार, गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं. यही कारण है कि गौ माता की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण और फलदायी है.
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गोवत्स द्वादशी 2022 कथा (Govatsa Dwadashi 2022 Katha)
- प्राचीन काल के समय में एक बार राजा ने जनहित के लिए एक तालाब बनवाया. चारों ओर से उसकी दीवार पक्की करा दी गई परन्तु तालाब में पानी नही भरा. तब राजा ने ज्योतिषी से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि अगर आप अपने नाती की बलि देकर और यज्ञ करें तो तालाब पानी से भर जायेगा. राजा ने हृदयं पर पाषाण रख यज्ञ में अपने नाती की बलि दी और तालाब वर्षा होने पर पानी से भर गया. जिसके बाद राजा ने तालाब का पूजन किया.
- लेकिन उस दिन रजा के क्षेत्र में बहुत बड़ा अपराध हुआ. जहां एक ओर तालाब भरने की खुशी में पूरा साम्राज्य झूम रहा था. वहीं, भव्य भोज की तैयारी में लगी एक नौकरानी ने राजा द्वारा पाले गए गाय के बछड़े को काटकर साग बना दिया. लौटने पर जब राजा रानी ने नौकरानी से बछड़े के बारे में पूछा तो उसने राजा को सत्य बताया.
- नौकारानी की बात सुन राजा अत्यंत क्रोधित हो गया. राजा ने उस बछड़े के मांस की हांडी को जमीन में गाड दिया. शाम को जब उस बछड़े की मां वापस आयी तो उस जगह को अपने सींगो से खोदने लगी. जहाँ पर बछड़े के मांस की हांडी गाढ़ी गई थी. जब सींग हांडी में लगा तो गाय ने उसे बाहर निकाला. उस हांडी में से गाय का बछडा एवं राजा का नाती जीवित निकले. उस दिन से अपने बच्चों की सलामती के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई.