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Goverdhan Puja 2019: जानिए क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पर्व, और क्या हैं इससे जुड़ी मान्यताएं

मान्यताओं के अनुसार इस दिन भारी बारिश से ब्रज को बचाने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था. भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन इंद्र के घमंड को चूर किया था

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Aditi Sharma
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Goverdhan Puja 2019: जानिए क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पर्व, और क्या हैं इससे जुड़ी मान्यताएं

गोवर्धन( Photo Credit : फाइल फोटो)

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दिवाली के एक दिन बाद मनाई जाने वाले गोवर्धन पर्व का विशेष महत्व है. यह त्योहार हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है. इस साल ये त्योहार 28 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. दरअसल मान्यताओं के अनुसार इस दिन भारी बारिश से ब्रज को बचाने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था. भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन इंद्र के घमंड को चूर किया था. इसलिए आज के दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है. इसके अलावा आज के दिन गाय की पूजा करने का भी विधान है. मान्यता है आज के दिन गाय और गोवर्धन की पूजा करने से लोगों के घरों में सुख समृद्धि आती है.

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ये है पूजा का शुभ मुहूर्त


गोवर्द्धन पूजा / अन्‍नकूट की तिथि: 28 अक्‍टूबर 2019

प्रतिपदा तिथि: 28 अक्‍टूबर सुबह 09.08 से 29 अक्टूबर सुबह 06.13 तक

गोवर्द्धन पूजा सांयकाल मुहूर्त: 28 अक्‍टूबर दोपहर 03.23 से शाम 05.36 तक

कुल अवधि: 02 घंटे 12 मिनट

क्या है गोवर्धन पर्व का महत्व

कथा

देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था. इन्द्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची. प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा कि सभी बृजवासी अच्छे पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे हैं.  श्री कृष्ण ने जब यशोदा मां से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ये तैयारियां देवराज इन्द्र की पूजा के लिए हो रही हैं क्योंकि वो वर्षा करते हैं तभी अन्न की पैदावार होती है और उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है. इस पर श्रीकृष्ण ने सब को समझाया कि फिर इस लिहाज से तो सबको गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं. और देवराज इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते और पूजा न करने से क्रोधित भी हो जाते हैं. इसलिए हमें ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए. लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की. देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी. प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है. तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया. इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए जिसके बाद उन्होंने वर्षा और तेज कर दी. इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें.

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इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता. आखिरकार वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया. ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं।.ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा. आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें. इसके बाद देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया. इस घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी. बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं. गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है और उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है. गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है.

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