Guru Gobind Singh Jayanti 2021: देशभर में आज मनाया जा रहा है गुरु पर्व, जानें इसका महत्व

आज यानि कि बुधवार को गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) जयंती मनाई जा रही है, देशभर में इसे प्रकाश पर्व और गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सिख धर्म को मानने वाले गुरुद्वारा में विशेष प्रार्थना और गुरबानी का पाठ करते हैं.

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Vineeta Mandal
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Guru Gobind Singh Jayanti 2021( Photo Credit : फोटो-ANI)

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आज यानि कि बुधवार को गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) जयंती मनाई जा रही है, देशभर में इसे प्रकाश पर्व और गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सिख धर्म को मानने वाले गुरुद्वारा में विशेष प्रार्थना और गुरबानी का पाठ करते हैं. इसके साथ प्रभात फेरी भी निकालते हैं. वहीं देशभर के गुरुद्वारा में गुरु गोबिंद सिंह जयंती के मौके पर बड़े पैमाने पर शबद कीर्तन का आयोजन किया जाता है. 

बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10वें गुरु थे. उनका जन्म साल 1699 में पटना साहिब में हुआ था. उन्होंने ही खालसा पंत की स्थापना की थी.  गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था. सिखों के लिए 5 चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था. 

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गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में 22 दिसंबर 1666 को हुआ था. जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में धर्म उपदेश को गये थे. उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था. पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये थे, वहीं पर अब तखत श्री पटना साहिब स्थित है.

गुरु गोबिंद सिंह जी ने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा का निर्माण किया.  सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है, उसी को खालसा कहते हैं. बताया जाता है कि एक बार सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबसे पूछा कि कौन अपने सिर का बलिदान देगा? इस पर एक स्वंयसेवक ने हामी भरी, जिसे गुरु गोबिंद सिंह तंबू में ले गए और वापस एक खून भरी तलवार के साथ लौटे. इसके बाद उन्होंने फिर वही सवाल पूछा और फिर दूसरा व्यक्ति राजी हो गया. इसी तरह पांचवा स्वंयसेवकर जब उनके साथ तंबू में गया तो थोड़ी देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया.

पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया. उन्होंने पांच ककारों का महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा.  इन पांचो के बिना खालसा वेश पूर्ण नहीं माना जाता है. इसी के बाद सिख धर्म में इन्हें धारण करना अनिवार्य होता है.

गुरु गोबिंद सिंह ने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया. किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया. उनका मानना था कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए. उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी. गुरु गोबिद सिंह के जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है.फ

Source : News Nation Bureau

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