30 नवंबर यानि कि सोमवार के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जाएगी. सिख धर्म में इस दिन का खास महत्व होता है. दरअसल, संवत् 1526 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था. इस खास दिन को गुरु पर्व या प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है. गुरु नानक जयंती के दिन सभी गुरुद्वारे को दीयों और लाइट की रोशनी से सजाया जाता है. इसके अलावा विशेष तौर पर लंगर की भी व्यवस्था की जाती है.
गुरु पर्व के दिन सुबह 5 बजे प्रभात फेरी निकाली जाती है. इसके बाद लोग गुरुद्वारों में कथा का पाठ सुनते हैं. इसके बाद निशान साहब और पंच प्यारों की झाकियां निकाली जाती है. इसे नगर कीर्तन के नाम से भी जाना जाता है.
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गुरु नानक देव को सिख धर्म का प्रथम गुरु माना जाता है और सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक देव ने ही की थी. माना जाता है कि गुरु नानक जी ने अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, धर्मसुधारक, देशभक्त और कवि के गुण समेटे हुए थे.
गुरुग्रंथ सिख सम्प्रदाय का सबसे प्रमुख धर्म ग्रंथ माना है। 1705 में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु तेगबहादुर जी के 116 शब्द जोड़कर इसको पूर्ण किया था। इसमें कुल 1430 पृष्ठ है.
गुरु नानक देव से जुड़ी कथा-
गुरु नानक देव का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ था. बताया जाता है कि गुरुनानक जी का जन्म जिस दिन हुआ था, उस दिन 12 नवंबर, मंगलवार था. बचपन से ही शांत प्रवृति के गुरु नानक देव आंखें बंद कर ध्यान और चिंतन में लगे रहते थे. इससे उनके माता-पिता चिंतित हो गए और पढ़ने के लिए उन्हें गुरुकुल भेज दिया गया. गुरुकुल में नानक देव के प्रश्नों से गुरु निरुत्तर हो गए. अंत में नानक देव के गुरु इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ईश्वर ने उन्हें ज्ञान देकर धरती पर भेजा है.
यह भी कहा जाता है कि गुरु नानक देव को एक मौलवी के पास भी ज्ञानार्जन के लिए भेजा गया था लेकिन वो भी नानक देव के प्रश्नों को हल नहीं कर पाए. शादी के कुछ दिनों बाद ही गुरु नानक देव घर-द्वार छोड़कर भ्रमण पर निकल गए थे. गुरु नानक देव ने भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य हिस्सों की यात्रा की और लोगों को उपदेश दिया. गुरु नानक देव ने पंजाब में कबीर की निर्गुण उपासना का प्रचार भी किया और इसी के चलते वो सिख संप्रदाय के गुरु बने. उसके बाद से ही गुरु नानक देव सिखों के पहले गुरु के रूप में प्रतिस्थापित हुए.
सिख धर्मावलंबियों के लिए गुरु पर्व का खास महत्व होता है. कहा जाता है कि सांसारिक कार्यों में गुरु नानक देव का मन नहीं लगता था और ईश्वर की भक्ति और सत्संग आदि में वे अधिक रमते थे. रब के प्रति समर्पण देख लोग उन्हें दिव्य पुरुष मानने लगे.
(Disclaimer : इस लेख में लिखे गए तथ्य विभिन्न संचार माध्यमों/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों पर आधारित है.)
Source : News Nation Bureau