आज 'रामायण' के रचयिता महर्षि वाल्मीकी की जयंती मनाई जा रही है. वैदिक काल के प्रसिद्ध महर्षि वाल्मीकि रामायण महाकाव्य के रचयिता के रूप में विश्व विख्यात हैं. उन्हें न सिर्फ संस्कृत बल्कि समस्त भाषाओं का ज्ञान था. वाल्मीकि को हर भाषा के महानतम कवियों में शुमार किया जाता था. हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को वाल्मीकि जी का जन्मदिवस मानाया जाता है.
महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण लिखी थी, जिसे आगे चलकर गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा. वहीं महर्षि वाल्मीकि ऐसे विद्वान हैं, जिन पर सभी देवी-देवताओं ने अपनी कृपा बरसाई थी.
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पौराणिक मान्यता के मुताबिक, वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ था. महर्षि भृगु वाल्मीकि के भाई थे. पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि बनने से पहले वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था. वह लूटपाट करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे. एक बार उन्होंने नारद मुनि को लूटने की कोशिश की. इस पर नारद ने उनसे पूछा कि क्या उनका परिवार इस पाप का फल भोगने में साझीदार होगा. जब रत्नाकर ने परिवारवालों से पूछा गया तो सभी ने एक सुर में मना कर दिया. इसके बाद वाल्मीकि वापस लौटकर नारद के चरणों में गिर गए. फिर नारद ने उन्हें राम का नाम जपने की सलाह दी. यही रत्नाकर आगे चलकर महर्षि वाल्मीकि के रूप में प्रसिद्ध हुए.
महर्षि ने कठोर तपस्या की थी, इस वजह से उनका नाम वाल्मीकि पड़ा. एक बार तो वह ध्यान में इतना मग्न हो गए कि उनके शरीर के चारों तरफ दीमकों ने अपना घर बना लिया था. जब उनकी साधना पूरी हुई, तब वह उससे बाहर निकले. दीमकों के घर को 'वाल्मीकि' कहा जाता है. इस वजह से भी महर्षि को वाल्मीकि कहा जाने लगा. ये भी कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकी की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ज्ञान का वरदान दिया. ब्रह्मा की प्रेरणा से ही उन्होंने आगे चलकर रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की.
Source : News Nation Bureau