Hariyali Teej Ki Kahani: हरियाली तीज और व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया, माता पार्वती बाल्यावस्था से ही भगवान शिव की पूजा अर्चना करती थी, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए गंगा के तट पर 12 वर्षों तक घोर तप किया था, इतनी अवधि उन्होंने अन्न ना खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबाकर व्यतीत किए, माघ की विकराल शीतलता में निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया, वैशाख की जला देने वाली गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया, श्रावण की मूसलाधार में अपनी बेटी को तपस्या करते देखकर राजा बड़े दुखी होते थे.
एक दिन देवी पार्वती की तपस्या को देखकर नारद जी महाराज हिमालय के महल में पधारे नारायण नारायण प्रणाम देवर्षि नारद आपका स्वागत है कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं गिरिराज मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं. आपकी कन्या पार्वती ने बड़ा कठोर तप किया है इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं, इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं, देवर्षि नारद, आपने तो यह प्रस्ताव सुनाकर मेरी समस्त चिंताएं ही दूर कर दी, अगर स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है, वे तो साक्षात ब्रह्म है, हे महर्षि, यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी सुपुत्री सब सुखों को प्राप्त करें, पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे.
पर्वतराज हिमालय की स्वीकृति पाकर नारद जी विष्णु जी के पास गए और उनसे विवाह के निश्चित होने का समाचार सुनाया, मगर इस विवाह के संबंध की बात जब पार्वती के कानों में पड़ी तो उनके दुख का ठिकाना ना रहा, क्या हुआ पार्वती, विष्णु भगवान से विवाह के बारे में सुनकर तुम दुखी क्यों हो गई? सखी, मैंने सच्चे हृदय से भगवान भोलेनाथ का वर्णन किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णु जी से निश्चित कर दिया, मैं विचित्र धर्म संकट में हूं, अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है, नहीं पार्वती, ऐसी अशुभ बातें मुख से नहीं निकालते, संकट के समय हमें धैर्य से काम लेना चाहिए, नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवन पर्यंत उसी से निर्वाह करें, सच्ची आस्था और एक निष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है, मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी ना पाए, वहीं तुम साधना में लीन हो जाना, मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे. अब अपनी सखी की बात सुनकर देवी पार्वती ने ऐसा ही किया, अपनी पुत्री को घर पर ना पाकर पर्वतराज हिमालय बहुत चिंतित हो गए,
मेरी पुत्री ना जाने कहां चली गई है, मैं विष्णु जी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं, यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर ना हुई तो बड़ा अपमान होगा, मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा, मुझे पार्वती को खोजना ही होगा,
पर्वतराज हिमालय ने पार्वती की खोज करनी शुरू कर दी, इधर पार्वती अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में भगवान शिव की आराधना में लीन थी भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था उस दिन माता पार्वती ने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया रात भर वो भगवान शिव की स्तुति करती रही ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय देवी पार्वती की घोर तपस्या के प्रभाव से भगवान शिव का आसन डोलने लगा उनकी समाधि टूट गई और वह देवी पार्वती के समक्ष प्रकट हुए.
देवी पार्वती, मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वर मांगो. प्रभु, मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं, यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए.
देवी पार्वती, क्या तुम मेरे साथ खुश रह पाओगी? मैंने बचपन से ही आपको अपना पति मान लिया था. मैं जानती हूं आपको पति रूप में पाकर आपकी अर्धांगमी बनकर मुझे सर्व सुखों की और सौभाग्य की प्राप्ति होगी. कृपया करके मुझे अपने पत्नी के रूप में स्वीकार कर लीजिए प्रभु देवी पार्वती के प्रेम और विश्वास की तपस्या की जीत होती है और भगवान शिव उन्हें वर मनोवांछित देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं उसी समय अपने दरबारियों सहित गिरिराज वाले देवी पार्वती को खोजते खोजते वहां पहुंचते हैं,
पुत्री, तुम्हारी ऐसी कठोर तपस्या का क्या कारण है, तुम्हारी ऐसी दशा को देखकर मुझे अत्यधिक दुख और पीड़ा हो रही है, चलो पुत्री, महल वापस चलो, मुझसे तुम्हारी ये दशा देखी नहीं जा रही. पिता श्री, मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है, मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी, आज मैं अपनी तपस्या की कसोटी पर खरी उतर चुकी हूं, आप क्योंकि विष्णु जी से मेरा विवाह करने का? ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई, अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर महल वापस जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णु जी से ना करके महादेव जी से करेंगे, देवी पार्वती के दृढ़ निश्चय को देखकर पर्वतराज हिमालय मान गए और देवी पार्वती को घर ले गए, कुछ समय के पश्चात समस्त विधि विधान से भगवान भोलेनाथ और देवी पार्वती का विवाह संपूर्ण हुआ.
भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को देवी पार्वती ने महादेव की आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फल स्वरूप उनका विवाह हो सका, उस दिन से हरियाली तीज का व्रत प्रारंभ हो गया, कहा जाता है जो कोई सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी कन्याए इस व्रत को करती हैं, भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती उन्हें मनोवांछित फल देते हैं, इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को हरियाली तीज व्रत पूरी निष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau