सावन...बारिश...हरियाली और प्यार इसकी का नाम हरियाली तीज का त्योहार. प्रेम का प्रतिक यह त्योहार इस बार 3 अगस्त को है. माता पार्वती और भगवान शिव की आराधना वाले इस त्योहार को विशेषतौर पर सुहागिन महिलाएं करती हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन पार्वती की तपस्या से खुश होकर भगवान भोले ने उनसे विवाह करके पत्नी रूप में स्वीकार किया था.
सुहागिन महिलाएं हरियाली तीज के मौके पर मेहंदी लगाती हैं. पूरे दिन व्रत रखती हैं...सोलह श्रृंगार करके वो भगवान शिव और पार्वती माता को पूजते हैं और सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद मांगते हैं. चलिए हम आपको बताते हैं हरियाली तीज की पौराणिक कथा और उसके महत्व के बारे में.
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हरियाली तीज के दिन जो महिलाएं कथा सुनती है वो इस तरह है. एकबार शिवजी ने माता पार्वती को उनके पिछले जन्म का स्मरण कराने के लिए तीज की कथा सुनाई थी. एक समय की बात थी जब पार्वती अपने पुराने जन्म के बारे में याद नहीं कर पा रही थी तब शिवजी उनसे कहते हैं...हे पार्वती तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या किया था. अन्न-जल त्याग कर पत्ते खाए, सर्दी-गर्मी और बरसात में तमाम तरह के कष्ट सहन किए थे. तुम्हारा ये हाल देखकर तुम्हारे पिता दुःखी थे. तब नारदजी तुम्हारे घर पधारे और कहा- मुझे विष्णुजी ने भेजा है. वह आपकी कन्या से प्रसन्न हैं और उन्होंने उससे विवाह का प्रस्ताव भेजा है.
तब पार्वती के पिता पर्वतराज खुशी-खुशी विष्णुजी से तुम्हारा विवाह करने को तैयार हो गए. नारदजी ने विष्णुजी को यह शुभ संदेश सुना दिया लेकिन जब तुम्हें पता चला तो तुम बहुत दुखी हुईं क्योंकि तुम मुझे मन से अपना पति मान चुकी थीं. तुमने अपने मन की बात सहेली को बताई और फिर तुम्हारी सखी ने तुम्हें एक एक घने वन में छिपा दिया वहां तुमने फिर तप किया. तुम्हारे गायब होने के बाद तुम्हारे पिता ने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक कर दिया पर तुम न मिली. तुम गुफा में रेत से शिवलिंग बनाकर मेरी आराधना में लीन थीं.
प्रसन्न होकर मैंने मनोकामना पूरी करने का वचन दिया. तुम्हारे पिता खोजते हुए गुफा तक पहुंचे. फिर तुमने बताया कि अधिकांश जीवन शिवजी को पतिरूप में पाने के लिए तप में बिताया है.
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आज तप सफल रहा, शिवजी ने मेरा वरण कर लिया. मैं आपके साथ एक ही शर्त पर घर चलूंगी यदि आप मेरा विवाह शिवजी से करने को राजी हों. पर्वतराज मान गए. बाद में विधि-विधान के साथ हमारा विवाह हुआ. हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका.
इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनोवांछित फल देता हूं. उसे तुम जैसा अचल सुहाग का वरदान प्राप्त हो. तब से हिंदू धर्म की हर कुंवारी कन्या अच्छे वर की कामना हेतु यह व्रत रखती है वहीं विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए माता पार्वती और शिव जी का व्रत रखती हैं.
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सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहीं कज्जली तीज तो कहीं हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है. भविष्य पुराण में देवी पार्वती बताती हैं कि तृतीया तिथि का व्रत उन्होंने बनाया है जिससे स्त्रियों को सुहाग और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
इस कथा को सुनने के बाद महिलाएं लोकगीत गाती हैं. इसके बाद अगले दिन स्नान करने और मां पार्वती और शिव का पूजन करने के बाद भोजन ग्रहण करते हैं.