Dwarka Nagri : भागवत पुराण के अनुसार, श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद, उनके समर्थन के बिना द्वारका नगरी में असंतोष और विघ्न उत्पन्न हो गए. श्री कृष्ण के अस्तित्व के अभाव में, लोगों के द्वारका से प्रारंभ हुए विवाद और संघर्ष बढ़ गए. यह विवाद और आतंक के कारण, द्वारका नगरी में दंगे, घातक युद्ध और भयानक संघर्ष हुए. इस दुर्दशा में, समुद्र ने अपने जलों में द्वारका को डूबा दिया और उसे समुद्र के अंत में ले जाया. द्वारका के स्थान को अब तक गहरे पानी में दबा हुआ माना जाता है. इसके बाद, द्वारका का उदय हो गया और उसकी स्थिति स्मृति में रह गई है, जो श्री कृष्ण के आद्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक है. श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद, द्वारका नगरी में भयानक और भयंकर घटनाएं हुईं. उनके अस्तित्व के अभाव में, नगरी में विवादों, संघर्षों, और असन्तोष की भावना बढ़ गई. द्वारका नगरी में शासन के नेतृत्व का अभाव होने के कारण, राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता की स्थिति पैदा हुई.
श्रीकृष्ण के प्रेरणादायक और समर्थ नेतृत्व के अभाव में, नगरी में विवाद और धर्मान्तरण की भावना फैल गई. इसके परिणामस्वरूप, लोगों के बीच आपसी असहमति, अपराध, और संघर्ष बढ़ गए. नगरी में सामाजिक और आर्थिक संकट आ गए और उसकी सामाजिक संरचना में अस्थिरता आई. इसके अलावा, श्रीकृष्ण के अभाव में, द्वारका नगरी का भविष्य अनिश्चित हो गया और उसका समूचा माहौल दुखद और उदासीन हो गया. इस रूप में, श्रीकृष्ण की मृत्यु ने द्वारका नगरी को अथाह शोक और संघर्ष की दिशा में धकेल दिया. लेकिन आइए जानते हैं कि उनके आशीर्वाद का द्वारका नगरी पर क्या प्रभाव पड़ा.
द्वारका नगरी पर भगवान श्रीकृष्ण का प्रभाव
धर्म और न्याय का प्रचार: भगवान श्रीकृष्ण के प्रेरणादायक उपदेशों ने द्वारका नगरी में धर्म और न्याय का प्रचार किया और लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.
समर्थ और न्यायसंगत शासन: श्रीकृष्ण के समर्थ और न्यायसंगत शासन के कारण, द्वारका नगरी में सुशासन और साम्राज्यिक स्थिरता बनी रही.
आध्यात्मिक और धार्मिक अध्ययन केंद्र: द्वारका नगरी श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक और धार्मिक उपदेशों का महत्वपूर्ण अध्ययन केंद्र बन गई थी.
सुरक्षा और संरक्षण: श्रीकृष्ण की उपस्थिति से, द्वारका नगरी में सुरक्षा और संरक्षण की व्यवस्था मजबूत हुई.
कला और साहित्य का प्रशिक्षण: उनकी दिव्य वाणी ने कला और साहित्य का प्रशिक्षण दिया, जिससे द्वारका नगरी की सांस्कृतिक और कलात्मक विकास हुआ.
सम्पदा और समृद्धि: श्रीकृष्ण के उदार और धर्मप्रिय शासन के कारण, द्वारका नगरी में सम्पदा और समृद्धि की व्यापक स्थिति बनी रही.
भक्ति और उत्कृष्टता की प्रोत्साहना: श्रीकृष्ण के आदर्शों और उदाहरणों से प्रेरित होकर, द्वारका नगरी में भक्ति और उत्कृष्टता की प्रोत्साहना हुई.
विकास और उत्थान: उनके उपदेशों और नेतृत्व के प्रेरणादायक प्रभाव के कारण, द्वारका नगरी में विभिन्न क्षेत्रों में विकास और उत्थान हुआ.
समाज में समरसता: उनके समर्थ शासन के कारण, द्वारका नगरी में समाज में समरसता और एकता की भावना फैली.
आत्मनिर्भरता: श्रीकृष्ण के प्रेरणादायक उपदेशों के कारण, द्वारका नगरी में लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना विकसित हुई.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau