How Did The Kinnars Originate: एक समय की बात है. देवर से नारद नारायण नारायण नाम का करते हुए वैकुंठ लोक पधारते हैं. नारद जी को देखकर भगवान श्री हरि विष्णु कहते हैं हे देवर्ष पधारो वैकुंठ में तुम्हारा स्वागत है. आज अचानक ही वैकुंठ में आने का क्या प्रयोजन है? अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण समाचार लेकर आए होंगे. नारद जी कहते हैं हे प्रभु मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए, आप तो सब कुछ जानते हैं फिर भी अनजान बन रहे हैं. इस ब्रह्मांड के कण-कण में आप ही का वास है. मेरे भीतर भी आपका ही वास है. आप भली भांति जानते हैं कि मैं आपके पास किस प्रयोजन से आया हूं. भगवान विष्णु कहते हैं. हे नारद मैं अवश्य जानता हूं. तुम्हारे मन में क्या चल रहा है और आज तुम मानव जाति के कल्याण के उद्देश्य से ही यहां पर आए हो, इसलिए तुम्हारे मन में जो भी शंका है, निसंकोच होकर पूछ लो.
नारद जी कहते हैं हे प्रभु, यदि आप आज्ञा दें तो आपसे मैं एक प्रश्न पूछने के लिए आया हूं. हे प्रभु ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना करते समय स्त्री और पुरूष का निर्माण किया था और दोनों को ही एक दूसरे के पूरक बनाया है. किंतु हे प्रभु किन्नरों की उत्पत्ति कैसे हुई? जो पूर्ण रूप से न पुरुष है और न ही स्त्री है? भगवान विष्णु कहते हैं, हे देवरशी आज तुमने उचित ही प्रश्न किया है. तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर महाराज सुद्युम्न की कथा में छिपा हुआ है. देवाशी कहते हैं हे प्रभु महाराज सुद्युम्न कौन थे और उन्हें किस कारण से स्त्री का शरीर प्राप्त हुआ था? कृपया आप मुझे महाराज सुद्युम्न का इतिहास विस्तार से सुनाइये
पूर्व काल की बात है पृथ्वी लोक पर महाराज सुद्युम्न नाम के एक राजा राज्य किया करते थे. वे बड़े ही पराक्रमी धर्म परायण सत्य, धर्म का पालन करने वाले शूरवीर और जितेंद्र थे. उन्होंने अपने कर्मों से कुल का गौरव बढ़ाया था. महाराज सुद्युम्न दान शूर और विद्वान थे. उनके राज्य की प्रजा उनसे अत्यंत संतुष्ट रहा करती थी. 1 दिन महाराज सुद्युम्न घोड़े पर सवार होकर शिकार करने के लिए जंगल में चले गए. उनके साथ सिपाही और कुछ मंत्री भी थे. महाराज ने अपने कानों में कमनीय कुण्डल पहने थे, उनके पास आज गर्व नाम का धनुष था और बाणों से भरा हुआ तरकस धारण करके वे जंगल में भ्रमण करने लगे. उसी जंगल के पास एक कुमार नाम का जंगल था. जो बहुत ही सुंदर दिखाई पड़ रहा था, वह वन दिखने में तो अत्यंत सुंदर किंतु भयभीत करने वाला था. उस वन में भगवान शिव की माया फैली हुई थी. जिस कारण से वह वन पृथ्वी पर स्वर्ग की तरह प्रतीत हो रहा था. अनेक जंगली पशुओं की ध्वनि दूर-दूर से सुनाई पड़ रही थी. जिसे सुनकर राजा का मन सुख की अनुभूति कर रहा था. कोयल पक्षियों की मधुर ध्वनि कानों में पड़ने से महाराज सुद्युम्न अत्यंत प्रसन्न हो रहे थे.
जैसे ही महाराज सुद्युम्न ने कुमार नाम के उस जंगल में प्रवेश किया, उसी क्षण उनका शरीर स्त्री रूप में बदल गया. महाराज का घोड़ा भी घोड़ी के रूप में बदल गया. उनके साथ आए हुए सभी सिपाही और मंत्री भी स्त्री बन गए. अचानक हुए इस विचित्र बदलाव को देख कर महाराज और सभी सिपाही आश्चर्यचकित हो हो गए और चिंता में पड़ गए. वे मन ही मन सोचने लगे यह क्या हो गया? महाराज सुद्युम्न अपने स्त्री रूपी शरीर को देखकर बहुत दुखी होकर लज्जित हो गए और अपने सिपाहियों से कहने लगे यह हमारे साथ क्या अनिष्ट हो गया है? हम सभी अचानक से पुरुष से स्त्री कैसे बन गए? अब हम क्या करें, स्त्री का शरीर लेकर हम घर कैसे जाए और कैसे मैं राज्य का संचालन करूंगा? हमारी प्रजा हमें देखकर क्या कहेगी
नारद भगवान विष्णु से कहने लगे हे प्रभु आपने यह बड़े आश्चर्य की बात कही है देवताओं के समान तेजस्वी राजा सुद्युम्न को स्त्री का शरीर कैसे प्राप्त हो गया? इसका क्या कारण है? कृपया बताइए. उस रमणीय वन में राजा ने ऐसा कौन सा कार्य किया जिससे उन्हें स्त्री का शरीर प्राप्त हुआ? कृपा करके विस्तार से बताइए. तब भगवान विष्णु कहने लगे हे इसके पीछे भगवान शिव की ही माया है. भगवान शिव की माया से ही महाराज सुद्युम्न को और उनके सिपाहियों को स्त्री का शरीर प्राप्त हुआ है. इसलिए अब तुम इसे ध्यान से सुनो.
एक समय की बात है. भगवान शिव और देवी पार्वती इसी वन में एकांत में विहार कर रहे थे, तभी सनकाधिक ऋषिगण अपने तेज़ से दसों दिशाओं को प्रकाशित करते हुए भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए उस वन में आ गए. सनकाधिक मुनियों को किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है. वे बिना आज्ञा लिए किसी भी स्थान पर कभी भी आ जा सकते हैं. फिर जब वे चारों मुनि भगवान शंकर के दर्शन के लिए उस वन में आ गए तो उन्होंने देखा की देवी पार्वती और भगवान शिव एकांत में विहार कर रहे थे. संकाधित मुनियों को अचानक से उस स्थान पर आता हुआ देखकर देवी पार्वती अत्यंत लज्जित हो गई. देवी पार्वती तुरंत भगवान शिव से दूर होकर खड़ी हो गई. जब उन चारों मुनियों ने देवी पार्वती और शिवजी को एकांत में विहार करते हुए देखा तो वे तुरंत ही वहां से लौटकर नर नारायण के आश्रम की ओर चले गए.
जब भगवान शिव ने पार्वती को लज्जित होकर दूर खड़ा हुआ देखा तो वे कहने लगे हे प्रिय, तुम इस प्रकार से लज्जित क्यों हो रही हो? वे चारों तो हमारे पुत्र के समान हैं, उनसे तुम्हें लज्जित नहीं होना चाहिए. देवी पार्वती कहने लगी हे प्रभु स्त्री को अपने पुत्र के सामने भी कभी पति के साथ विहार नहीं करना चाहिए. उसे सदैव ही मर्यादा में ही रहना चाहिए. आपने तो कहा था इस स्थान पर कोई नहीं आएगा. फिर हमारे एकांत में विघ्न निर्माण करने के लिए ये चारों मुनि कहां से आ गए. आप तुरंत ही कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे कोई भी इस वन में ना आए, नहीं तो मैं इस स्थान से चली जाऊंगी. तब भगवान शिव ने कहा हे प्रिय. ठीक है, तुम्हारे इस दुख को दूर करने के लिए मैं अभी उपाय करता हूं, हे प्रिय, आज से ही इस वन में कोई भी पुरुष भूल से भी आ जाएगा तो वह स्त्री हो जाएगा.
हे देवऋषि उस दिन से जो भी उस वन में जाता है वह स्त्री बन जाता है. जो लोग यह जानते हैं कि उस वन में शिवजी की माया फैली हुई है, वे भूल से भी उस वन में नहीं जाते हैं. किन्तु महाराज सुद्युम्न इस बात को नहीं जानते थे और वे अज्ञानवश अपने सिपाहियों के साथ उस वन में चले गए और शिव जी की माया के प्रभाव में आकर उनका पुरुषत्व नष्ट हो गया और वे सभी स्त्री बन गए. स्त्री का शरीर प्राप्त होने के बाद महाराज लज्जावश घर नहीं गए और उसी वन में इधर उधर भटकने लगे.
स्त्रीत्व प्राप्त होने के कारण उनका नाम इला पड़ गया. इस प्रकार से महाराज सुदिमन इलाके रूप में वन में अपनी सखियों के साथ इधर उधर भटकने लगे. 1 दिन वे सभी वन में सुंदर जलाशय के पास खेल रहे थे. उसी समय चंद्रमा के पुत्र बुद्ध उसी स्थान से गुजर रहे थे. अनेक स्त्रियों के साथ भ्रमण करती हुई उस युवती इला को देख कर चंद्रमा के पुत्र बुद्ध पर मोहित हो गए. उस इलाके सुंदर तथा मनमोहक रूप को देखकर बुद्धजी मंत्रमुग्ध हो गए और उसी क्षण उनके मन में उसे पाने की इच्छा प्रकट हो गई जब इला ने भी बुद्ध जी का सुंदर रूप देखा तो वे भी बुद्ध जी पर मोहित हो गई और उन्हें अपना पति बनाने के लिए व्याकुल हो उठी. इस प्रकार से इला और बुद्ध दोनों ने एक दूसरे को देखकर अपना प्रेम प्रकट किया. परस्पर अनुराग के कारण उन दोनों ने विवाह कर लिया और कुछ दिनों में उन दोनों के बीच संयोग हुआ. फिर बुद्ध ने इलाके गर्भ से एक संतान को उत्पन्न किया जिसका नाम पुरूरवा रखा गया जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट हुआ.
पुत्र को जन्म देने के बाद भी वह इला उसी वन में रहने लगी. फिर 1 दिन इला अपने पहले के पुरुष रूप को याद करके चिंता करने लगी. तभी उसने मुनि श्रेष्ठ वशिष्ठ जी का स्मरण किया. इलाके द्वारा स्मरण करते ही मुनिवर वशिष्ठ जी उस स्थान पर प्रकट हुए. मुनि वशिष्ठ जी इला से कहने लगे हे देवी आप किस कारण से दुखी हैं? यदि कोई गोपनीय बात ना हो तो तुम मुझे तुम्हारे दुख का कारण बताओ. तब वह इला वशिष्ठ जी से कहने लगी, हे मुनिवर इस वन में आने से पहले मैं एक पुरुष थी. मेरा नाम सुद्युम्न था किन्तु इस वन में आते ही मेरा शरीर स्त्री का बन गया है, ऐसा किस कारण से हुआ? कृपया मुझे बताइए तब मुनि वशिष्ठ जी कहने लगे हे देवी शायद तुम नहीं जानती होगी. इस वन में भगवान शिव की माया फैली हुई है. उन्होंने इस वन को ऐसा श्राप दिया है की जो भी पुरुष इस वन में आएगा वह स्त्री बन जाएगा. उन्हें भगवान शंकर की माया के कारण तुम्हें स्त्री का शरीर प्राप्त हुआ है. फिर वह इला कहने लगी है मुनिवर कृपा करके मुझे मेरा पूर्ववत शरीर प्रदान कीजिए. मेरी प्रजा मेरे बगैर दुखी है. मैं ऐसी हालत में अपने राज्य में नहीं लौट सकती. मुनि वशिष्ठ जी से महाराज सुद्युम्न की ऐसी अवस्था देखी नहीं गई.
महाराज बड़े शूरवीर और पराक्रमी थे. किन्तु शिव जी की माया के कारण उन्हें स्त्री का रूप प्राप्त हुआ था. वशिष्ठ जी कहने लगे, हेवतस तुम चिंता मत करो, मैं भगवान शिव से प्रार्थना करके तुम्हारी सहायता करूंगा. तब वशिष्ठ जी ने उसी स्थान पर समस्त लोको का कल्याण करने वाले भगवान शंकर की आराधना करना आरंभ किया. भगवान शंकर वशिष्ठ जी की आराधना से अत्यंत प्रसन्न हुए और साक्षात उन्हें दर्शन देकर कहने लगे, हे मुनिवर मैं आपकी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं, आपको जो भी मनोवांछित वर चाहिए उसे मांग लो. तब वशिष्ठ जी भगवान शंकर से कहने लगे हे प्रभु आपके दर्शन से मेरा व्रत सफल हुआ. हे भोलेनाथ. मेरी बस यही कामना है कि आप मेरे शिष्य महाराज सुद्युम्न को पुनः पुरुष बना दीजिए. फिर शिवजी ने कहा हे मुनिवर मेरी ही माया के कारण सुद्युम्न को स्त्री का शरीर प्राप्त हुआ है, इसलिए मैं ही इसे पुरुष का शरीर प्रदान करता हूँ. किन्तु राजा सुद्युम्न एक मास के लिए पुरुष बने रहेंगे. और एक मास के लिए वे स्त्री बने रहेंगे. इतना कहकर भगवान शिव उस स्थान से अंतर ध्यान हो गए. इस प्रकार से वशिष्ठ जी की कृपा से और भगवान शिव के आशीर्वाद से महाराज सुद्युम्न को एक मास के लिए पुरुष का शरीर प्राप्त हुआ और वे अपने राज्य में लौट गए और सुखपूर्वक राज्य करने लगे. जब महाराज पुरुष के रूप में होते तो वे अपने नगर में जाकर राज्य किया करते थे और जब वे एक मास के लिए स्त्री के रूप में होते तो वे वन में आकर ही रहने लगते थे. महाराज के ऐसे विचित्र व्यवहार से उनकी प्रजा त्रस्त हो गयी और वे पहले की तरह महाराज सुद्युम्न का सम्मान भी नहीं करने लगे. इधर महाराज के स्त्री रूप में रहते हुए बुद्ध से उन्हें जो पुत्र प्राप्त हुआ था, जिसका नाम पुरूर्वा था, वह जवान हो गया.
तब महाराज सुधिमन ने उसे अपना राज्य सौंप दिया और वे सदा के लिए वन में रहने के लिए चले गए. वन में जाकर महाराज सुद्युम्न अपने स्त्री शरीर इलाके रूप में तपस्या करने लगे. फिर उन्होंने देवरषी नारद जी से नवकार मंत्र की दीक्षा ली और देवी पार्वती की उपासना करने लगे. अनेक वर्षों तक उस वन में रहकर उन्होंने उस मंत्र का किया और देवी को प्रसन्न कर लिया. तदनन्तर भक्तों का उद्धार करने वाली जगत जननी भगवती पार्वती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिया. उस समय देवी सिंह पर आरुढ़ होकर उनके सामने खड़ी हो गई. देवी को अपने सामने खड़ा हुआ देखकर एलाने उन्हें नमस्कार किया और उनकी स्तुति करने लगी. हे जगत जननी मैं आपके चरण कमल की वंदना कर रही हूँ. कृपा करके मुझे इस शरीर से मुक्ति प्रदान कीजिए. तब देवी ने उस पर प्रसन्न होकर कहा, हे इला, आज तुम्हें स्त्री शरीर से मुक्ति मिल जाएगी और तुम परम पद को प्राप्त कर लोगी. देवी के इतना कहते ही इला ने अपने शरीर का त्याग किया और परम पद को प्राप्त कर लिया. महाराज सुद्युम्न के परम धाम को जाने पर महाराज पुरूवा राज्य करने लगे. हे दे वर्ष अब सुनो किन्नरों की उत्पत्ति का रहस्य महाराज सुदिमन अपने सिपाहियों के साथ उस वन में आए थे. उनके जो सिपाही थे वे सभी किन्नर बनकर सुमेरु पर्वत के पास जाकर निवास करने लगे. उन्हीं से किन्नर प्रजाति की उत्पत्ति हुई तो दोस्तों इस प्रकार से भगवान विष्णु ने नारद जी को किन्नरों की उत्पत्ति का रहस्य बताया है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source :News Nation Bureau