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शिया और सुन्नी मुसलमानों में क्या अंतर है, जानें दो धड़ों में ये कैसे बटे

शिया और सुन्नी इस्लाम के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं जो पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकार को लेकर मतभेद रखते हैं। ये विवाद कब और कैसे शुरू हुआ आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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sunni shia divide( Photo Credit : News Nation)

इस्लामिक इतिहास पर नज़र डाली जाए तो उर्दू कैलेंडर के महीने की अट्ठारहवीं तारीख दोनों ही समुदाय को एक दूसरे में बांट देती हैं. चलिए बात करते हैं की आखिर क्या हुआ था इस दिन और कैसे मुसलमान इस दिन के बाद दो गुटों में बंट गए थे. पैगंबर मोहम्मद साहब अपनी ज़िन्दगी का आखिरी हज करके मक्का शहर से अपने शहर मदीने की ओर जा रहे थे. रास्ते में ही जिले के अठारवी तारीख यानी 19 मार्च 633 ईसवी पड़ी. इस दिन मोहम्मद साहब मक्का शहर से 200 किलोमीटर दूर नाम की जगह पर पहुंचे थे. इसी जगह पर सारे हाजी एहराम यानी हज करने वाले कपड़े भी पहनते थे. हज करने गए सारे हाजी इसी जगह तक आते थे और उसके बाद अपने अपने देशों के लिए रास्ते चुनते थे. इसी जगह से मिस्र, इराक, सीरिया, मदीना, ईरान और यमन के रास्ते अलग अलग होते हैं. कहा जाता है कि इसी जगह पर पैगंबर साहब को अल्लाह ने संदेश भेजा. ये संदेश कुरान में भी मौजूद है. 

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कुरान के पांचवे सूरा सूर्य मायदा की सड़सठवीं आयत में उस संदेश के बारे में लिखा है. या यू हर रसूलु बल्लिगमा उंजीला इलायका मेन रब्बेकऊवा इल्लम तफ अल्फमा बल्लेगतर साला तहु वल्लाहू यासीम उनका मनन्यास. इसका मतलब है की ए रसूल उस संदेश को पहुंचा दीजिए जो आपके पर्व दीगार की तरफ से आप पर नाज़िल हो चुका है. यानी आपको बताया जा चुका है अगर आपने ये सन्देश नहीं पहुंचाया तो गोया आपने रिसाल्ट का कोई काम ही नहीं अंजाम दिया. 

इस आयत के नाज़िल होने के बाद पैगंबर मोहम्मद साहब ने सभी हाजियों को तीन किलोमीटर दूर गदिर नामक मैदान पर रुकने के आदेश दे दिए. मोहम्मद साहब ने उन लोगों को भी वापस बुलवाया जो लोग आगे जा चूके थे और उन लोगों का भी इंतजार किया जो पीछे रह गए थे. तपती गर्मी और चढ़ती धूप के आलम में भी लोग मोहम्मद साहब का आदेश पाकर ठहरे रहे. इस दौरान सीढ़ीनुमा ऊंचा मंच भी बनाया गया, जिसे मेंबर कहा जाता है. हदिशों के मुताबिक इसी मंच यानी की मेंबर से पैगंबर मोहम्मद साहब ने अपने दामाद हजरत अली को गोद में उठाया और कहा जिसका मैं मोला हूँ उस उसके ये अली मौला है. यहां तक भी दोनों समुदाय एकमत है. दोनों ही समुदाय के लोग कहते हैं की हां ये घटना हुई थी लेकिन दोनों ही समुदाय के बीच मतभेदों की जड़ भी यहीं से पनपी. 

इस ऐलान में मौला शब्द का इस्तेमाल किया गया. मौला शब्द पर ही दोनों समुदाय एक दूसरे से भिड़ पड़ते हैं. मुसलमानों का एक धड़ा मानता है की मौला शब्द का मतलब उत्तराधिकारी है जबकि दूसरा धारा ऐसा नहीं मानता है. गदिर की घटना के बाद मोहम्मद साहब 3 दिन तक उसी मैदान पर रुके रहे. तमाम हाजी मोहम्मद साहब से मुलाकात करते रहे. उस वक्त कुछ लोग ये कह रहे थे कि मोहम्मद साहब को उनके उत्तराधिकारी के ऐलान करने के लिए मुबारकबाद दी जा रही है तो वही कुछ मुसलमानों का ये मानना है कि लोग मोहम्मद साहब को हज की मुबारकबाद दे रहे थे. 

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इस वक्त तक शिया और सुन्नी नाम के शब्दों की उपज हुई ही नहीं थी. यानी अभी तक मुसलमान धड़ों में नहीं बंटा था. पैगंबर मोहम्मद साहब अपने शहर पहुंचे और कुछ ही महीनों के बाद उनका निधन हो गया. निधन की तारीखों पर भी मुसलमान के दोनों तबके अलग अलग राय रखते हैं. मोहम्मद साहब के निधन के बाद मोहम्मद साहब की गद्दी पर उनका कौन वारिस बैठेगा? इसी को लेकर दोनों ही समुदाय अलग थलग पड़ गए. मुसलमानों के एक धड़े का मानना था कि मोहम्मद साहब ने एक गदिर के मैदान पर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था. इसलिए इस पद पर किसी और को नहीं बिठाया जा सकता. जबकि दूसरे धड़े के मुताबिक मोहम्मद साहब ने किसी को भी अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया था. इसलिए इस पद के लिए चुनाव किया जाना चाहिए. फिर उस वक्त के बुजुर्ग हजरत अब्बू बकर सिद्दीकी को इस पद के लिए चुना गया. यही से मुसलमानों के दो टुकड़े हो गए. 

मोहम्मद साहब के इंतकाल के बाद जिन लोगों ने हजरत अब्बू बकर सिद्दीकी को अपना नेता माना वो सुन्नी कहलाए. वही जिन लोगों ने हजरत अली को अपना नेता माना वो शिया कहलाए यानी कि अली के चाहने वाले शिया कहलाए. सुन्नी समुदाय ने हजरत अब्बू बकर के बाद हजरत उमर फारूक, हजरत उमर फारूक के बाद हजरत उस्मान गनी और हजरत उस्मान गनी के बाद हजरत अली को अपना खलीफा चुना. दुनिया मुसलमानों ने खलीफा की बजाय हजरत अली को अपना इमाम माना और हजरत अली के बाद 11 अन्य इमामों को मोहम्मद साहब का उत्तराधिकारी माना. खलीफा और इमाम का मतलब लगभग एक जैसा ही है. दोनों का ही मतलब उत्तराधिकारी है. यानी दोनों ही समुदायों के बीच असल लड़ाई मोहम्मद साहब के उत्तराधिकारी के पद को लेकर है.

हालांकि, दोनों ही समुदायों में काफी सारी भिन्नता है. जो दोनों को ही एक दूसरे से अलग करती है. इन दोनों समुदाय के लोगों की अजान से लेकर नमाज़ तक के तौर तरीके अलग अलग हैं. मुस्लिम आबादी में बहुसंख्य सुन्नी हैं और अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक इनकी संख्या 85-90 प्रतिशत के बीच है. इराक, ईरान, बहरीन, अज़रबैजान और कुछ आंकड़ों के मुताबिक यमन में शियाओं का बहुमत है. इसके अलावा अफगानिस्तान, भारत, कुवैत, लेबनान, पाकिस्तान, क़तर, सीरिया, तुर्की, सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब ऑफ़ अमीरात में इनकी अच्छी खासी संख्या है. इसके अलावा मुसलमान आगे देवबंदी, बरेलवी और अहले हदीस जैसे तमाम फिरकों में भी बटे हुए हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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Source : News Nation Bureau

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