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अमावस्या की रात कैसे हुआ था नरकासुर का वध, जानें सत्यभामा और नरकासुर की पौराणिक कथा

Mythological Story of Satyabhama and Narakasura: अमावस्या की रात से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. उन्हीं में से एक सत्यभामा और नरकासुर की कहानी है जिसे लोग सदियों से सुनते आ रहे हैं.

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Inna Khosla
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Mythological Story of Satyabhama and Narakasura

mythological story of Satyabhama and Narakasura( Photo Credit : News Nation)

Mythological Story of Satyabhama and Narakasura: अमावस्या का भारतीय संस्कृति और धर्म में विशेष धार्मिक महत्व है. अमावस्या का मतलब है "अमा" (अंधकार) और "वस्या" (रहना) यानी अंधकार में रहना. इस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता, और पूरी रात अंधकार छाया रहता है. आत्म चिंतन, पितरों के प्रति सम्मान, और धर्म-कर्म के कार्यों के लिए अमावस्या का अत्यंत धार्मिक महत्व है. माना जाता है कि अमावस्या के दिन पितर अपने वंशजों के पास आते हैं और उनकी पूजा-अर्चना से प्रसन्न होते हैं. अगर किसी के पितर उससे खुश हों जो उसे जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं आता. 

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भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, सत्यभामा और नरकासुर की कहानी अमावस्या के दिन से जुड़ी हुई है. इस कथा का मुख्य पात्र नरकासुर, एक शक्तिशाली और दुष्ट राक्षस था. उसे वरदान मिला था कि उसे कोई भी देवता या मानव नहीं मार सकेगा. इस वरदान के कारण वह अत्यंत अहंकारी और अत्याचारी बन गया. नरकासुर ने देवताओं और मनुष्यों को आतंकित करना शुरू कर दिया था. उसने 16,100 कन्याओं को बंदी बना लिया था और अपनी राजधानी प्रागज्योतिषपुर (आधुनिक असम) में उन्हें बंदीगृह में रखा था. नरकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर, देवताओं ने भगवान कृष्ण से सहायता की प्रार्थना की. 

भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करने का संकल्प लिया, लेकिन नरकासुर को मिले वरदान के कारण उन्हें एक योजना बनानी पड़ी. उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा को अपने साथ लिया. ऐसा कहा जाता है कि सत्यभामा, भूदेवी का अवतार थीं, और नरकासुर को भूदेवी के हाथों ही मारा जा सकता था. भगवान कृष्ण और सत्यभामा प्रागज्योतिषपुर पहुंचे और नरकासुर के साथ युद्ध किया. इस दौरान, भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर की सेना को समाप्त कर दिया. जब नरकासुर ने भगवान कृष्ण पर घातक वार किया, तो सत्यभामा ने उसे मार गिराया. इस प्रकार सत्यभामा ने नरकासुर का वध कर दिया, और सभी बंदी कन्याओं को मुक्त किया.

नरकासुर के वध जिन जिन हुआ उस दिन अमावस्या की रात थी. तब से इस दिन को विजय और प्रकाश के रूप में मनाया जाता है. नरकासुर के वध के बाद, मुक्त की गई कन्याओं ने भगवान कृष्ण का धन्यवाद किया और उन्हें अपने उद्धारकर्ता के रूप में पूजा. इस कथा का संदेश है कि अधर्म और अत्याचार का अंत निश्चित है, चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो. सत्य और न्याय की विजय होती है और अमावस्या के दिन इस कथा को याद किया जाता है ताकि लोग अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर हो सकें.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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