हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है .पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. पितृ पक्ष में सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस कार्य को बहुत ही विधि- विधान से किया जाता है .पितरों का श्राद्ध करने से पितर आपको आशीर्वाद प्रदान करते हैं .अक्सर आप लोगों ने देखा होगा कि लोग अपने पितरों की श्राद्ध की तिथि किसी कारण वश भूल जाते हैं या बहुत लोगों को पता नहीं होता की कौन सी तिथि में कौन सा श्राद्ध करना चहिए या कौन सा पक्ष चल रहा है, ये सारी बातें लोगों को अक्सर याद नहीं रहती , ऐसे में वो ये जानने की कोशिश करते हैं कि श्राद्ध की तिथि कैसे निकाले, तो चलिए हम आपको बताते हैं श्राद्ध की तिथि कैसे निकाले.
अगर आप श्राद्ध की तिथि निकालना चाहते हैं तो आपको बस इतना ही करना है कि सबसे पहले मोबाइल फ़ोन या लैपटॉप पर गूगल खोलें फिर उसमे जिसकी भी तिथि निकालनी है उसकी मृत्यु की पूरी तारीख लिखे जैसे ( 10 नवंबर 2016 ) की तिथि ,फिर इसके बाद सर्च करें, गूगल आपको बता देगा की आपके पूर्वज की तिथि कौन सी है फिर उसी तिथि के दौरान आप श्राद्ध कर सकते है. अब अगर बात करे कुछ महत्वपूर्ण तिथियों की तो लोग अक्सर इस बात के कन्फूशन में रहते है की कौन सी तिथि में कौन सा श्राद्ध करना चाहिए , हमें अक्सर महत्वपूर्ण तिथियाँ याद नहीं रहती तो चलिए आपको ये भी बता दें की पृत पक्ष का महत्व क्या होता है और इसकी महत्वपूर्ण तिथियाँ क्या है.
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जिस समय हिंदी पंचांग का आश्विन मास कक्रिष्ण पक्ष पितरों को समर्पित होता है उस समय को पृत पक्ष कहते है. शास्त्रों के अनुसार जिस व्यक्ति की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को होती है, उसका श्राद्ध पितृपक्ष की उसी तिथि को ही किया जाता है. किसी दुर्घटना का शिकार हुए परिजनों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जा सकता है. ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण तिथियां है जो आपको याद रखने में आसानी होगी जैसे -
1- मृत्यु प्राप्त लोगों का श्राद्ध केवल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा अथवा आश्विन कृष्ण अमावस्या को किया जाता है. इसे प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं.
2- यदि किसी को कोई पुत्र नहीं है तो प्रतिपदा में उनके धेवते अपने नाना-नानी का श्राद्ध कर सकते हैं
3 - सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, इसके अलावा माता की मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध भी नवमी को कर सकते हैं .
4 - संन्सास लेने वाले लोगों का श्राद्ध एकादशी को करने की परंपरा हैं
5 - द्वादशी तिथि भी संन्यासियों के श्राद्ध की तिथिमानी जाती हैं
6 - त्रयोदशी तिथि में बच्चों का श्राद्ध किया जाता हैं
7 - अकाल मृत्यु, जल में डूबने से मौत, किसी के द्वारा कत्ल किया गया हो या फिर आत्महत्या हो, ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता हैं.
8 - सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है, इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता हैं.
श्राद्ध के समय हमें भूलकर भी ये काम नहीं करने चाहिए - इन ख़ास बातों का खास रखे ध्यान -
श्राद्ध के दिनों में घर में कलेष नहीं करना चाहिए , स्त्रियों का अपमान करने से पितृ नाराज हो जाते हैं . मांसाहार, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन आदि करने से बचे. नास्तिकता और साधुओं का अपमान न करें,उनका सम्मान करें शराब पीना, मांगलिक कार्य करना, झूठ बोलना श्राद्ध में नहीं करना चाहिए और हो सके तो श्राद्ध में आप दान धरम भी कर सकते है ,दान धरम करने से पितृ खुश होते है.
Source : News Nation Bureau