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Sanatan Dharma: सनातन धर्म में दूसरे धर्म में विवाह करना स्वीकार्य है या अस्वीकार्य

Sanatan Dharma: क्या आप जानते हैं कि सनातन धर्म में किसी दूसरे धर्म के लड़के या लड़की से विवाह के बारे में क्या लिखा गया है. इसे स्वीकार किया जाता है या नहीं आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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in sanatan dharma is it acceptable or unacceptable to marry another religion

Sanatan Dharma( Photo Credit : News Nation)

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Sanatan Dharma: सनातन धर्म में दूसरे धर्म में विवाह को लेकर कोई स्पष्ट और सर्वमान्य नियम नहीं है. कुछ विद्वान इसे धर्म परिवर्तन मानते हुए अस्वीकार करते हैं. वे धार्मिक और सांस्कृतिक समानता पर बल देते हैं. यह एक जटिल विषय है जिस पर सदियों से बहस होती रही है और विभिन्न मत, विचारधाराएं और दृष्टिकोण मौजूद हैं. हिंदू धर्मग्रंथों में अंतर्जातीय विवाह (एक ही जाति के व्यक्तियों के बीच विवाह) को प्रोत्साहित किया गया है, लेकिन अंतरधार्मिक विवाह (विभिन्न धर्मों के व्यक्तियों के बीच विवाह) को स्पष्ट रूप से नहीं मना किया गया है. कुछ हिंदू विद्वानों का मानना है कि अंतरधार्मिक विवाह धर्म परिवर्तन का एक रूप है, जो अस्वीकार्य है.  वे तर्क देते हैं कि विवाह केवल धार्मिक समानता के आधार पर ही नहीं, सांस्कृतिक समानता के आधार पर भी होना चाहिए.

धार्मिक ग्रंथ में क्या लिखा है ?

मनुस्मृति, जो हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, अंतरधार्मिक विवाह का विरोध करता है. इसमें कहा गया है कि एक हिंदू महिला को किसी अन्य धर्म के पुरुष से विवाह नहीं करना चाहिए. समय के साथ, कई हिंदू संप्रदायों ने अंतरधार्मिक विवाह को स्वीकार करना शुरू कर दिया है. आर्य समाज और राधाकृष्ण मिशन जैसे कुछ संप्रदाय अंतरधार्मिक विवाह का समर्थन करते हैं. लेकिन सनातन धर्म में इसे लेकर कई विचार हैं. धार्मिक ग्रंथ मनुस्मृति में दिए कुछ श्लोक अंतरधर्म विवाह को निषिद्ध करते हैं.  

मनुस्मृति 3.14 में कहा गया है कि "एक विद्वान व्यक्ति को कभी भी शूद्र स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे उसके वंश की गिरावट होती है.

अन्य श्लोक अंतरधर्म विवाह की अनुमति देते हैं, लेकिन कुछ शर्तों के साथ. मनुस्मृति 9.122 में कहा गया है कि "यदि एक क्षत्रिय पुरुष एक शूद्र स्त्री से विवाह करता है, तो उसकी संतान क्षत्रिय नहीं रहेगी, बल्कि वैश्य होगी.

अंतरजातीय विवाह के परिणाम के बारे में मनु 10.4 में लिखा है कि "अंतर्जातीय विवाह से उत्पन्न संतानें जातिहीन और हीन मानी जाती हैं."

अन्य विद्वानों का मानना है कि प्रेम और सम्मान पर आधारित कोई भी विवाह स्वीकार्य है, चाहे धर्म कुछ भी हो.  वे तर्क देते हैं कि धर्म व्यक्तिगत विश्वास का मामला है और इसे विवाह जैसे व्यक्तिगत निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. सनातन धर्म में दूसरे धर्म में विवाह करना सही है या नहीं, यह व्यक्ति पर निर्भर करता है.  कोई सही या गलत उत्तर नहीं है.  यह महत्वपूर्ण है कि विवाह दोनों साथी की सहमति से हो और वे एक दूसरे के धर्म और विश्वासों का सम्मान करें. भारत में विवाह एक नागरिक अधिकार है और यह किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म के आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

Source : News Nation Bureau

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