हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के कुल्लू जिले में एक जगह है मणिकर्ण (manikaran). बेहद ही सुंदर और मनोरम जगह है ये. ये जगह हिंदुओं और सिखों का तीर्थस्थल है. क्या आप जानते हैं कि इसका नाम मणिकर्ण कैसे पड़ा. कहा जाता है कि इस जगह पर माता पार्वती के कर्णफूल यानी कान की बाली गिरी थी. जिसकी वजह से इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ा. इतना ही नहीं इस जगह से शेषनाग का भी संबंध है. जिसकी वजह से यहां का पानी खौलता रहता है. मणिकर्ण को लेकर जो पौराणिक कथा मिलती है चलिए वो बताते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती और शिवजी विहार करने यानी घूमने निकले थे. उसी विहार के दौरान माता पार्वती का कर्णफूल यानी कान की बाली गिर के खो गई. माता पार्वती के कर्णफूल ढूंढने के लिए बाबा भोले खुद निकले. कथा के अनुसार कर्णफूल पाताल लोक में जाकर शेषनाग के पास चला गई. तब शिवजी अत्यंत क्रोधित हुए. शेषनाग ने कर्णफूल वापस कर दिया था. मान्यता यह भी है कि शेषनाग जब कर्णफूल नहीं दे रहे थे तब उन्होंने फुंकार भरी थी. उसी से इस स्थान पर गर्म पानी के स्रोतों का निर्माण हुआ. मणिकर्ण जगह पर गर्म जल स्रोत है. यहां का पानी खौलता रहता है.
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मणिकर्ण मंदिर को लेकर एक और मान्यता है. मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी. यहां रघुनाथ मंदिर है. कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी. इसके अलावा इस स्थान पर स्थापित शिवजी के मंदिर में कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ आते रहते हैं.
मणिकर्ण में बहुत से मंदिर और एक गुरुद्वारा है. यह सिखों का धार्मिक स्थल है. गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी. यहां दोनों समय लंगर चलता है. यह बड़ी संख्या में सिख श्रद्धालु भी आते हैं.