Who is Greater Dharma or Karma: कर्म और धर्म इन दोनों में श्रेष्ठ कौन है?आपने कह दिया कर्म हमने कह दिया धर्म लेकिन कहने से कुछ नहीं होता. हर चीज़ को सिद्ध करना होता है. कुछ लोग कर्म को सर्वोप्रिय मानते हैं तो कुछ धर्म को, दोनों की अपनी अहमियत है लेकिन 99% हिंदू ये नहीं जानते है कि अगर धर्म और कर्म में जंग हो जाए तो दोनों में जीत किसकी होती है. धर्म सबसे ऊपर है अगर आप ये मानते हैं तो इसका कारण भी देना होगा. लेकिन, आप अगर कर्म को सबसे ऊपर मानते हैं तो इसका कारण भी देना होगा. आइए शास्त्रों और ज्ञानियों, विद्वानों से समझने की कोशिश करते हैं की धर्म बड़ा है या कर्म.
क्या धर्म के बिना अंधा है कर्म?
धर्म और कर्म में श्रेष्ठ कौन है तो हम आपको बता दें कि धर्म श्रेष्ठ है लेकिन कैसे? इस धरती पर जो भी कर्म कर रहा है यहां तक की आंखों की पलक झपक रही है तो वह अपना कर्म हो रहा है, हम बोल रहे हैं यह भी कर्म है, आप बैठे बैठे सुन रहे हैं. यह भी कर्म है. आप मोबाइल चला रहे हैं, यह भी एक कर्म है, कुछ भी आप कर रहे हैं, वह क्या है, कर्म है, कोई शराब पी रहा है तो वह भी कर्म है और कोई दूध पी रहा है तो वह भी कर्म है, मां के पैर दबाना कर्म है और मां को गालियां देना भी कर्म है. किसी के साथ झगड़ा करना भी कर्म है और किसी की आरती उतारना भी कर्म है.
परन्तु, अब हमारा धर्म जो है, वह क्या कार्य करता है इसे समझते हैं. धर्म जो है वह यह बताएगा कि कौन सा कर्म करना है और कौन सा कर्म नहीं करना है. बिना धर्म के कर्म अंधा है, उसे दिखाई नहीं देता है कि क्या सही है और क्या गलत है, क्या पाप है और क्या पुण्य है? यह धर्म ही है जो हमें दिखाता है.
कर्म दो प्रकार के होते हैं एक अच्छा कर्म और एक बुरा कर्म. धर्म ही दृष्टि देता है कि कौन सा कर्म करना चाहिए और कौन सा कर्म नहीं करना चाहिए. जैसे दूध पीने का कर्म करना है लेकिन शराब पीने का कर्म नहीं करना है. मां के पांव दबाने का कर्म तो करना है लेकिन मां को गालियां देने का कर नहीं करना है. मेहनत करने का कर्म तो करना है लेकिन चोरी करने का कर्म नहीं करना है. अब कर्म हमें दो चीजें देता है, अच्छा कर्म हमें पुण्य देता है और बुरा कर्म हमें पाप देता है.
श्रेष्ठता की कसौटी पर कौन खरा उतरता है?
अब कोई व्यक्ति किसी प्राणी को मारकर और उसे पकाकर खा रहा है तो वह भी अपना कर्म तो कर रहा है लेकिन उसे धर्म का ज्ञान ना होने से उसका वह कर्म उसे पाप दे रहा है. इसीलिए व्यक्ति कर्म तो कर लेता है लेकिन उसे धर्म का ज्ञान ना होने से व्यक्ति वह कर्म भी करता है जो उसे नहीं करना चाहिए. व्यक्ति को वही कर्म करना चाहिए जो करने योग्य है, लेकिन उससे पहले उसे धर्म की कसौटी पर कस लेना चाहिए की यह कर्मयोग्य है या नहीं है? आपके पास छुरी या चाकू है तो इससे आप किसी प्राणी की गर्दन भी काट सकते है और किसी फल को भी काट सकते है. आपको कौन सा कर्म करना चाहिए, यह धर्म बताता है. इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को धर्म का ज्ञान होना अति आवश्यक है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
Source : News Nation Bureau