आज जगद्गुरु आदि शंकराचार्य की जयंती है जिन्होंने केवल मात्र 2 वर्ष की उम्र में ही वेद और उपनिषद का ज्ञान प्राप्त कर लिया था और 7 वर्ष की उम्र में ही संन्यासी बनने का निश्चय कर लिया था. कई वर्षो बाद जन्में शंकराचार्य को उनकी मां ने न केवल शिक्षा दी बल्कि जगद्गुरु बनने का मार्ग भी प्रशस्त किया. शंकराचार्य अपनी माता से बहुत प्रेम करते थे उनके इस प्रेम को देखकर एक नदी ने भी अपना रुख मोड़ लिया था. इतना ही नहीं शंकराचार्य ने एक संन्यासी होते हुए भी अपनी माता का अंतिम संस्कार करके अपने मातृ ऋृण को चुकाया. शंकराचार्य के बारे में ऐसी ही कई बाते प्रचलित है. अगर आप इन्हें नहीं जानते तो हम आपको आज इन सब के बारे में बताएंगे. तो आइए जानते है आदि शंकराचार्य से जुड़े अन्य तथ्य..
आदिगुरु शंकराचार्य के जन्म से जुड़ी कथा
आदि गुरू शंकराचार्य का जन्म केरल में हुआ था. उनके पिता का नाम शिवगुरु नामपुद्रि और माता का नाम विशिष्टा देवी था . जिन्हें भगवान शिव की कृपा से एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम शंकराचार्य रखा गया .इस बारे में शास्त्रों में एक कथा भी प्रचलित है. नामपुद्रि और विशिष्टा ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर अराधाना कि जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया लेकिन इसके साथ एक शर्त और भी रखी कि अगर यह पुत्र सर्वज्ञ होगा तो इसकी आयु पूर्ण नहीं होगी और अगर पूर्ण आयु पुत्र की इच्छा है तो वह सर्वज्ञ नहीं होगा .
जिसके बाद दोनों दंपत्ति ने सर्वज्ञ पुत्र की इच्छा व्यक्त की. इसके बाद भगवान शिव ने स्वंय ही उनके यहां पुत्र बनकर जन्म लेनें का वरदान दिया . इस प्रकार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को जिस पुत्र ने नामपुद्रि और विशिष्टा के यहां जन्म लिया उसका नाम शंकर रखा गया.
शंकराचार्य ने बचपन में ही प्राप्त कर लिया वेद और उपनिषदों का ज्ञान
आदि शंकराचार्य के पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था. उनकी माता ने उनको शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुल भेजा . गुरुकुल में गुरुजन ने जब उनके ज्ञान के बारें में जाना तो वह भी इस पर विश्वास नहीं कर पाए क्योकिं शंकराचार्य को पहले से ही सभी धर्मग्रंथ ,वेद , पुराण उपनिषद का ज्ञान था .
मां के लिए मोड़ दी नदी की दिशा
आदि गुरु अपनी माता से अत्याधिक प्रेम करते थे. शंकराचार्य जी की माता को स्नान करने के लिए पूर्णा नदी तक जाना पड़ता था. जो उनके गांव से काफी दूर थी. लेकिन अपनी मां के प्रति प्रेम, सम्मान और सेवा को देखकर नदी ने अपना सारा वेग उनके गांव कालड़ी की ओर मोड़ दिया था.
शंकराचार्य ने किया मां को दिए वचन का पालन
शंकराचार्य ने अपनी माता को वचन दिया था कि वह अंतिम समया में उनके साथ ही रहेंगे.जब शंकराचार्य को उनकी मां के अंतिम समय का आभास हुआ . तब वह अपने गांव पहुंच गए. जिस समय वह गांव पहुंचे तब उनकी माता का अंतिम समय चल रहा था . शंकराचार्य को देखकर उनकी मां ने अंतिम सांस ली. इसके बाद जब उनकी माता का दाह संस्कार का समय आया तो सब ने शंकराचार्य का यह कहकर विरोध किया कि वह तो एक संन्यासी हैं . वह किसी की भी अंतिम क्रिया को नहीं कर सकते . जिस पर शंकराचार्य ने कहा कि जिस समय उन्होंने अपनी मां को वचन दिया था. उस समय वह संन्यासी नहीं थे. सभी के विरोध करने पर भी शंकराचार्य ने अपनी माता का अंतिम संस्कार किया. लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया. शंकराचार्य ने अपने घर के सामने ही अपनी मां की चिता सजाई और अंतिम क्रिया की. जिसके बाद से ही केरल के कालड़ी में घर के सामने चिता जलाने की परंपरा शुरु हो गई.
Source : News Nation Bureau