Jagannath Puri Rath Yatra 2024: पुरी में अक्षय तृतीया का दिन भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र जी के रथ निर्माण की शुरुआत का प्रतीक है. यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसका पौराणिक महत्व भी है. एक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में अक्षय तृतीया के दिन ही अपनी बहन सुभद्रा और बलराम जी के साथ रथयात्रा में भाग लिया था. इसी घटना को याद करते हुए, इस दिन से रथ निर्माण शुरू किया जाता है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ का रथ हर साल पुराना हो जाता है.
अक्षय तृतीया से नए रथ का निर्माण शुरू कर भगवान को नया रथ प्रदान किया जाता है.
यह चक्र का प्रतीक है, जो जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करता है. अक्षय तृतीया को हिन्दू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन किए गए कार्य शुभ फलदायी होते हैं. इसलिए, इसी दिन से रथ निर्माण का शुभारंभ होता है.
रथयात्रा का पौराणिक इतिहास
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ द्वारका में निवास करते हुए एक दिन रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण का विचार किया. इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होंने विश्वकर्मा से तीन भव्य रथों का निर्माण करवाया. एक अन्य कथा के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ को रथ यात्रा का उपहार दिया था. कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में राजा अनंगभिमदेव को आदेश दिया था कि वे रथ यात्रा का आयोजन करें.
रथ निर्माण प्रक्रिया
लकड़ी का चयन रथ निर्माण के लिए विशेष प्रकार की लकड़ी का चयन किया जाता है, जिसे दारुब्रह्म कहा जाता है. यह लकड़ी कटक के जंगलों से प्राप्त होती है.
विधि-विधान रथ निर्माण एक पवित्र प्रक्रिया है. इसमें कुशल कारीगरों द्वारा विधि-विधानों का पालन किया जाता है.
रथों की भव्यता भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे बड़ा और भव्य होता है. इसे नंदीघोष कहा जाता है. देवी सुभद्रा का रथ दर्पवर्धनी और बलभद्र जी का रथ बलदेव नाम का होता है.
रथ यात्रा रथ निर्माण के 45 दिन बाद रथ यात्रा का आयोजन होता है. यह यात्रा लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है.
रथ यात्रा हजारों वर्षों से चली आ रही एक जीवंत परंपरा है जो भारत की समृद्ध संस्कृति और विरासत का प्रतीक है. पुरी में अक्षय तृतीया से रथ निर्माण का शुभारंभ धार्मिक आस्था, कला और शिल्प कौशल का अद्भुत संगम है. यह त्यौहार भक्तों को भगवान जगन्नाथ के प्रति समर्पण और श्रद्धा का अवसर प्रदान करता है. पुरी में अक्षय तृतीया से रथ निर्माण की परंपरा भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र जी के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है. यह पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक विधियों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण उत्सव है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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Source : News Nation Bureau