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Jagannath Rath Yatra 2023: जानें पुरी में कैसे शुरू हुई भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, पढ़ें ये रोचक बातें

आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ और उनके सरोहर भाई-बहन के अपनी मौसी के घर नौ दिनों के प्रवास का वार्षिक उत्सव मनाया जाता है.

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Aarya Pandey
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Jagannath Rath Yatra 2023

Jagannath Rath Yatra 2023( Photo Credit : social media )

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Jagannath Rath Yatra 2023 : आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ और उनके सरोहर भाई-बहन के अपनी मौसी के घर नौ दिनों के प्रवास का वार्षिक उत्सव मनाया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस त्योहार की शुरुआत पहली बार कब और कैसे हुई थी. वहीं इसपर इतिहासकारों का कहना है कि अनंगभिमदेव तृतीय ने पहली बार खुद को भगवान जगन्नाथ का सेवक कहा था, वह भगवान जगन्नाथ के आदेश से उत्कल देश पर शासन कर रहे थे. ऐसा माना जाता है कि अनंगभीमदेव ने पुरी में रथ यात्रा की शुरुआत की थी. 

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जानें रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई थी?
रथ यात्रा की शुरुआत के बारे में कई उल्लेख किया गया है. वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि रथ यात्रा भगवान बुद्ध के दर्शन अहिंसा को लोकप्रिय बनाने के लिए रथों के उपयोग के बैद्ध अनुष्ठान से प्रेरित थी. वहीं चीनी यात्री फाह्यान, ने पांचवी शताब्दी में ओडिशा का दौरा किया था, उन्होंने भगवान बुद्ध के रथों को सार्वजनिक सड़क के साथ खींचे जाने की परंपरा के बारेमें लिखा है. या प्रथा अभी भी नेपाल में प्रचलित है, जहां यह माना जाता है कि देवी और देवता भगवान बुद्ध के विभिन्न अवतार हैं. वहीं अलग मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा की प्रेरणा भगवान श्री कृष्ण परंपरा से ली गई थी. भगवान कृष्ण के गोपालमंत्र में भगवान जगन्नाथ की पूजा की जा रही है. 

भगवान श्री कृष्ण प्रकरण की कथा रथ यात्रा से जुड़ी मानी जाती है
भगवान श्री कृष्ण प्रकरण की एक कथा रथ यात्रा से जुड़ी मानी जाती है. भगवान कृष्ण और बलराम के मामा राजा कंस ने उन्हें मारने के इरादे से उन्हें मथुरा आमंत्रित किया था.  अक्रूर उन्हें लेने के लिए रथ लेकर भी आये थे. वे रथ पर बैठकर मथुरा के लिए रवाना हुए. वहां मथुरा के लोगों को भगवान कृष्ण के दर्शन करने का अवसर तब मिला जब दोनों भाई-बहन राजा कंस को हराने के बाद रथ में बैठकर मथुरा के चारों ओर घूमे थे. द्वारका के भकतों ने उस दिन मनाया था, जब भगवान कृष्ण और बलराम ने शहर की सुंदरता दिखाने के लिए अपनी बहन सुभद्रा को रथ में साथ बैठाकर लाए थे. वहीं अन्य लोककथा यह है कि देवस्नान पूर्णिमा के दिन, भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों को मंदिर परिसर में स्नान वेदी पर लाया जाता है. वेदी पर वे पवित्र जल के 108 घड़े से स्नान करते हैं.  वहीं इसके बाद वे 15 दिनों तर गंभीर रूप से बीमार हो जाते है और फिर ठीक होने पर वे अपनी मौसी के घर जाना चाहते हैं. इस तरह से रथ यात्रा प्रारंभ की गई. 

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