Jagannath Rath Yatra 2023 : ओडिशा में स्थित जगन्नाथ पुरी की गणना चार धामों में की जाती है. हिंदू धर्म में इस स्थान का बहुत खास महत्व है. क्योंकि यहां भगवान श्री कृष्ण साक्षात विराजते हैं. इसलिए जगन्नाथ पुरी को 'धरती का वैकुंठ' कहा जाता है. पुराणों में भी इस स्थान का वर्णन मिलता है. आपको बता दें, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन भगवान जगन्नाथ विशाल रथ पर अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ यात्रा पर निकलते हैं और नगर भ्रमण करते हुए गुंडिचा मंदिर में जाते हैं. यहां रथ यात्रा का उत्सव बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है.
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बेहद अद्भुत है तीनों भाई-बहन की मूर्तियां
सृष्टि के पालनहार भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ पुरी धाम में रहते हैं. यहां तीनों भाई-बहन की मूर्तियां विराजमान है. इन मूर्तियों को हर 12 साल बाद बदला जाता है. लेकिन खास बात यह है कि गर्भ गृह में स्थित भगवान की मूर्तियां अर्ध निर्मित है. इसके पीछे बेहद रोचक कथा काक वर्णन मिलता है.
जानें आखिर क्यों रह गई थी भगवान की मूर्तियां अधूरी
ऐसा कहा जाता है कि राजा इंद्रदयुम्न ने बूढ़े बढ़ई के रूप में भगवान विश्वकर्मा को मूर्ति निर्माण का काम सौंपा था. तब विश्वकर्मा जी ने राजा के सामने यह शर्त रखा था कि वह बंद कमरे में मूर्तियों का निर्माण करेंगे. साथ ही यह भी कहा था कि जब तक यह मूर्तियां नहीं बन जाएगी, तब तक कोई भी कमरे के अंदर नहीं आएगा, खुद राजा भी नहीं आएंगे. साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि जब तक मूर्तियां नहीं बन जाएंगी, तब तक कोई भी कमरे के अंदर नहीं आएगा. अगर कोई भी आया तो वह मूर्ति का निर्माण वहीं छोड़ देंगे. तब राजा ने उनके इस शर्त को स्वीकार किया और तब विश्वकर्मा मूर्तियों के निर्माण में जुट गए.
हमेशा राजा दरवाजे के बाहर खड़े होकर आवाज सुनते सुनिश्चित करते था कि मूर्तियों का काम चल रहा है. एक बार की बात है, अंदर से कोई आवाज नहीं आई, तब राजा को आभास हुआ कि बढ़ई कहीं काम छोड़कर चला तो नहीं गया. इस बात को देखने के लिए राजा ने कमरे का दरवाजा खोल दिया और उसी समय शर्त के हिसाब से विश्वकर्मा स्वर्गलोग के लिए चले गए. तब इस प्रकार भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गई. तबी से वह मूर्तियां आज भी उसी रूप में विराजमान हैं.
आज भी भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति में धड़कता है दिल
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्री कृष्ण अपना देह त्यागकर वैकुण्ठ चले गए, तब उनके शरीर का अंतिम संस्कार पंडवों ने पुरी में किया थ. तब भगवान श्री कृष्ण का पूरा शरीर पंचत्तव में विलीन हो गया. लेकिन उनका हृदय जीवित रहा. तब से आज तक उनके हृदय को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में सुरक्षित रखा गया है. ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में भगवान श्री कृष्ण का हृदय है.