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Jain Calendar 2024: आज से शुरू हुई कार्तिक अष्टाह्निका, जानें जैन धर्म में आठ दिनों का महत्व

Kartik Ashtahnikya: आज से कार्तिक अषअटाह्निका शुरू हो गया है. जैन धर्म में ये आठ दिन बेहद खास होते हैं. किस दिन का क्या महत्व है और इस पर्व में जैन समुदाय के लोग क्या करते हैं आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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Jain Calendar 2024 Kartik Ashtahnikya

Jain Calendar 2024 Kartik Ashtahnikya started

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Jain Calendar 2024: कार्तिक अष्टाह्निका का पर्व जैन धर्म में आत्मा की शुद्धि और मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होने का पर्व है. यह आठ दिनों का पर्व साधना, संयम और आत्मचिंतन के माध्यम से जैन अनुयायियों के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है. जैन धर्म के अनुयायी अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का संकल्प लेते हैं और शुद्ध जीवन जीने का प्रयास करते हैं. इसे कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिनों तक मनाया जाता है. अष्टाह्निका का शाब्दिक अर्थ होता है आठ दिनों का त्योहार. जैन साधक इन 8 दिनों में उपवास, प्रतिक्रमण, पूजन और ध्यान करते हैं. यह पर्व साधना के माध्यम से पापों से मुक्ति पाने और आत्मा की शुद्धि करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है.

आठ दिनों की पूजा और व्रत विधि

  • प्रथम दिन (अष्टमी) इस दिन साधक व्रत का संकल्प लेते हैं और संयम से जीवन जीने का प्रण करते हैं. श्रद्धालु मंदिर में जाकर विशेष पूजा करते हैं और भगवान की आराधना करते हैं.
  • दूसरे दिन प्रतिक्रमण का विशेष आयोजन होता है, जिसमें साधक पूरे दिन अपने द्वारा किए गए कर्मों के लिए प्रायश्चित करते हैं. इस दिन साधक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए संयमपूर्वक रहते हैं.
  • तीसरे और चौथे दिन ध्यान और जप के लिए समर्पित होता है. साधक आत्मचिंतन करते हैं और भगवान के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं.
  • पांचवें और छठे दिन में अष्टाह्निका के अंतर्गत कई सिद्धों और तीर्थंकरों की पूजा की जाती है. साधक भगवान महावीर और अन्य तीर्थंकरों का ध्यान करते हुए पूजा करते हैं.
  • सातवें दिन उपवास करने वाले साधक बिना जल और अन्न ग्रहण किए तपस्या करते हैं और संयम का पालन करते हैं.
  • अंतिम दिन (पूर्णिमा)साधक विशेष प्रकार की पूजा और आरती करते हैं. पूर्णिमा को सभी साधक मिलकर विशेष अनुष्ठान करते हैं और भगवान से आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्रार्थना करते हैं.

अष्टाह्निका में किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों की बात करें तो इस दौरान जैन साधक विशेष धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं और संतों के प्रवचन सुनते हैं. साधक इस पूरे पर्व में उपवास और तपस्या करते हैं, जिसमें अन्न-जल का त्याग कर संयमपूर्वक जीवन व्यतीत किया जाता है. ध्यान, योग और स्वाध्याय का यह समय होता है. साधक आत्मचिंतन कर अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर ध्यान केंद्रित करते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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