श्रीकृष्ण को किसने दिया था मृत्यु का श्राप, जानें उन्होंने कैसे भोगी पिछले जन्म की सजा

भगवान विष्णु के आठवें अवतार बनकर अवतरित हुए भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्राणों का त्याग कैसे किए और द्वापरयुग के बाद कैसे कलियुग की शुरुआत हुई आइए जानते हैं.

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Inna Khosla
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Lord Krishna Story( Photo Credit : News Nation)

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श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के खास मौके पर हम आपको उनके आदि से अंत तक की सारी कहानी बता रहे हैं. ये तो सब जानते हैं कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को उनका जन्म हुआ था लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने कैसे अपने प्राण त्यागे, उनका अंतिम क्षण क्या है उन्होंने धरती से जाते हुए उनका वध करने वाले शिकारी से क्या कहा. आज जन्माष्टमी के खास मौके पर हम आपको श्रीकृष्ण के जन्म की ये कहानी बताते हैं जिसका संबंध उनके पिछले जन्म से लेकर द्वापर युग के श्राप तक से जुड़ा है. इसी के बाद कैसे कलियुग की शुरुआत हुई ये कहानी इस बारे में है. 

महाभारत की कहानी तो सब जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब महाभारत खत्म हुआ तब कैसे भगवान श्रीकृष्ण श्रापित हुए. कृष्ण भगवान ने अर्जुन को उपदेश दिए उन्होंने ऐसा जाल बुना कि महाभारत में पांडवों की जीत हुई और कौरवों की हार हुई. इस युद्ध में दुर्योधन मारा गया. बेटे की मौत का गम मना रहे धृतराष्ट्र और माता गांधारी के पास जब श्रीकृष्ण पांडवों के साथ शौक करने और माफी मांगने पहुंचे तो गांधारी उन पर बहुत गुस्सा हुई. 

जब गांधारी ने श्रीकृष्ण को किया शर्मिंदा

गांधारी भगवान विष्णु की भक्त थी वो जानती थी कि भगवान श्रीकृष्ण उन्हीं के अवतार है. वो चाहते तो कुरुक्षेत्र में होने वाला युद्ध टल सकता है या बिना हानि के शांत हो सकता था. लेकिन दुर्योधन की मौत के शोक में डूबी उसकी मां गांधारी का दिल इस समय इतनी पीड़ा में था कि वो श्रीकृष्ण से कहने लगी - 'आप द्वारकाधीश हैं, जिनकी पूजा मैंने खुद विष्णु अवतार मानकर की. क्या आप अपने किए पर जरा भी शर्मिंदा हैं? आप चाहते तो दिव्य शक्तियों से युद्ध टाल सकते सकते थे. बेटे की मौत पर आंसू बहाने वाली एक मां का दुख तुम खुद अपनी मां देवकी से जाकर पूछो, जिसने अपने सात बच्चों को अपनी आंखों के आगे मरते देखा है.' 

भगवान श्रीकृष्ण को दिया मृत्यु का श्राप 

उन्होंने कहा, 'अगर भगवान विष्णु के प्रति मेरी आस्था सच्ची रही है तो 36 साल बाद तुम जीवित नहीं रहोगे. द्वारका तो तबाह होगा ही, यादव वंश का हर इंसान एक  दूसरे के खून का प्यासा हो जाएगा.' गांधारी ने कृष्ण को श्राप तो दे दिया लेकिन बेटे की मौत ने उसे पूरी तरह से तोड़ दिया था. वो श्राप देते ही भगवान कृष्ण के पैरों में गिरकर रोने लगी.

भगवान श्रीकृष्ण को मिली थी पिछले जन्म के कर्मों की सजा

गांधारी के श्राप के कारण अगले 36 सालों में द्वारका नगरी में सब खराब होने लगा. लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए नशे की लत में लग गए. यादवों का वंश खत्म होने लगा. ये सब देखकर श्रीकृष्ण जगंल चले गए और एक दिन योग ध्यान में एक पेड़ के नीचे बैठे थे. जंगल में एक शिकारी घूम रहा था जो हिरण का शिकार करने आया था. भगवान श्रीकृष्ण का पांव उसे हिरण की तरह दिखने लगा उसने तीर चलाया जो भगवान के पैर पर लगा. शिकारी को जब ये पता चला वो दौड़ा आया और उसने भगवान से माफी मांगी लेकिन... 

भगवान श्रीकृष्ण ने शिकारी से कहा- त्रेता युग में लोग मुझे राम के नाम से जानते थे. एक बार सुग्रीव के भाई बाली का राम ने छिपकर वध किया था. जिस तरह आज तुमने मेरे पैर में छिपकर तीर  मारा है. दरअसल ये मेरे पिछले जन्मों की सजा है. तुम इस जन्म में शिकारी हो लेकिन उस जन्म में तुम बाली थे. 

भगवान श्रीकृष्ण ने शिकारी को ये बताते हुए अपना शरीर त्याग दिया और स्वलोक चले गए. उनके धरती से जाने के बाद कलियुग की शुरुआत हुई. 

Source : News Nation Bureau

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