पुत्र की लंबी उम्र की मनोकामना के साथ जितिया या जीवितपुत्रिका व्रत आज यानी रविवार को पूरे उत्तर भारत में मनाया जा रहा है. जितिया व्रत पुत्रवती महिलाएं करती हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस व्रत की शुरुआत 21 सितंबर यानी सप्तमी की शाम से हुई जो कि नवमी तिथि 23 सितंबर को सुबह पारण तक चलेगा.
जीवितपुत्रिका व्रत कथा-1
गन्धर्वराज जीमूतवाहन युवावस्था में ही राजपाट छोड़कर जंगल में पिता की सेवा करने चले गए थे. एक दिन जंगल में उन्हें नागमाता मिलीं. रो रहीं नागमाता से जीमूतवाहन ने उनके रोने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है. नागवंश की रक्षा करने के लिए उन लोगों ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा.
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अब इस समझौते के तहत आज मेरे पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है. जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह खुद गरुड़ के सामने जाएंगे. गरुड़ जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला. जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया
जीवितपुत्रिका व्रत कथा-2
जितिया के बारे में एक और कथा प्रचलित है. जब महाभारत के युद्ध में पांडवों ने छल से अश्वथामा के पिता द्रोणाचार्य को मार दिया था. अश्वथामा गुस्से में एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुसकर पांडवों के पांच बच्चों को मार डाला. असल में अश्वथामा को लगा था कि वो पांच बच्चे पांडव हैं, लेकिन वो पांचों द्रौपदी के बच्चे थे. अश्वथामा की इस गलती के वजह से अर्जुन ने उसे पकड़ लिया और उसकी मणि छीन ली.
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अश्वथामा ने बदले में अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया. बच्चा गर्भ में ही मर जाता लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरे संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया. गर्भ में मरकर दोबारा जीवित होने की वजह से ही उत्तरा के पुत्र का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और तभी से इसे व्रत के रूप में मनाया जाता है.
उपवास की शुरुआत मछली खाने से
हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान आमतौर पर मांसाहार करना वर्जित माना जाता है. लेकिन बिहार के कई क्षेत्रों में जितिया व्रत के उपवास की शुरूआत मछली खाने से होती है. इस मान्यता के पीछे चील और सियार से जुड़ी जितिया व्रत की एक पौराणिक कथा है.