पुत्र के दीर्घायु, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) करती हैं. अश्विन मास (Ashwin maas) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika Vrat) व्रत किया जाता है. जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया या जितिया व्रत भी कहते हैं. हरितालिका तीज की तरह यह व्रत भी निर्जला रखना पड़ता है. इस बार कल यानी गुरुवार, 10 सितंबर को जितिया व्रत (Jitiya Vrat) पड़ रहा है. जानें इस व्रत की पूजन विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में.
जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त 10 सितंबर को दोपहर 2:05 बजे से अगले दिन 11 सितंबर को 4:34 बजे तक रहेगा. व्रत का परायण 11 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक किया जा सकेगा.
जिस तरह छठ पर्व में नहाय-खाय की परंपरा होती है, उसी तरह जितिया व्रत में नहाय-खाय की परंपरा का निर्वाह किया जाता है. सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. नवमी तिथि यानी अगले दिन व्रत का परायण किया जाता है.
क्या है जितिया व्रत का इतिहास: महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य की मौत से बहुत नाराज था. बदले की भावना में वह पांडवों के शिविर में घुस और पांडव समझकर उसने द्रोपदी की पांच संतानों का वध कर दिया. इसके बाद वह महर्षि वेदव्यास के पास गया, जहां उसे पता चला कि उसने पांडवों का नहीं बल्कि द्रौपदी के पांच संतानों का वध किया है तो उसने पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. इसके बाद श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ा. महर्षि वेदव्यास ने दोनों ब्रह्मास्त्रों को रोक लिया और दोनों से ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा. अर्जुन ने तो ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा ने उसे अभिमन्यु की पत्नी की ओर मोड़ दिया.
इस घात से अभिमन्यु की पत्नी दर्द से तड़प उठीं. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण (Jai shree krishna) ने अपने प्रताप से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की अजन्मी संतान बचा लिया. भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया. उसके बाद से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए महिला हर साल जितिया व्रत रखती हैं.
Source : News Nation Bureau