Jivitputrika Vrat 2022 Katha: हिंदू धर्म में पति और संतान की लंबी आयु के लिए कई व्रत किए जाते हैं. इन्हीं में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत. इस व्रत का विशेष महत्व है. हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है. इस व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के अलावा जिउतपुत्रिका, जितिया, जिउतिया और ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा. माताएं ये व्रत पुत्र प्राप्ति, संतान के दीर्घायु होने एवं उनकी सुख-समृद्धि में वृद्धि के लिए करती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं जीवितपुत्रिका व्रत की संपूर्ण और पावन कथा के बारे में.
जीवित्पुत्रिका व्रत 2022 कथा 1 (Jivitputrika Vrat 2022 Katha 1)
जितिया व्रत कथा को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. पौराणिक मान्यता की मानें तो, इस पर्व का महत्व महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर में घुस गया था. जहां अश्वत्थामा ने शिविर में सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार दिया. लेकिन अश्वत्थामा ने गलती से द्रौपदी की पांच संतानों को मार दिया था.
ऐसे जघन्य अपराध के बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उसके माथे से उसकी दिव्य मणि निकाल ली. अश्वत्थामा ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने का प्रयास किया. जिसके लिए उसने ब्रह्मास्त्र का आवाहन कर उसकी दिशा को उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया. तब भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान और धनुर्धर अर्जुन के पौत्र की रक्षा की.
जिस दिन ये घटना घटी उस दिन आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी और तभी से इस दिन पर जितिया अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत रखे जाने का शुभारंभ हुआ. महाभारत काल से लेकर आजतक अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं जितिया का व्रत रखती आ रही हैं.
जीवित्पुत्रिका व्रत 2022 कथा 2 (Jivitputrika Vrat 2022 Katha 2)
जिउतिया व्रत की कथाओं में ये कहानी सबसे महत्वपूर्ण है. व्रत के दौरान महिलाएं यही कथा सुनाती भी हैं. इस कथा में एक नगर के किसी वीरान जगह पर पीपल का पेड़ था. इसी पेड़ पर एक चील और पेड़ के नीचे एक सियारिन रहती थी. एक बार दोनों ने कुछ महिलाओं को जिउतिया व्रत करते देख इस व्रत को रख लिया. जिस दिन ये व्रत सभी महिलाओं द्वारा रखा जा रहा था उसी दिन नगर में किसी की मृत्यु हो गई.
जिसकी मृत्यु हुई उस व्यक्ति का शव उसी वीरान स्थान पर लाया गया जहां सियारिन और चील दोनों मौजूद थीं. सियारिन शव को देखकर व्रत की बात भूल गई और उसने मांस खा लिया. वहीं चील ने पूरे मन से व्रत किया और अगले दिन पारण किया. व्रत के प्रभाव से दोनों ही अगले जन्म में कन्याओं के रूप में जन्मी. एक का नाम अहिरावती था तो दूसरी का कपूरावती.
पूर्ण निष्ठा से व्रत संपन्न करने वाली चील जो अगले जन्म में अहिरावती बनी उसे राज्य की रानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो वहीं, व्रत को बीच में ही खंडित कर देने वाली सियारिन जो अगले जन्म में कपूरावती बनी उसे राजा के छोटे भाई की पत्नी बनने का अवसर मिला.
अहिरावती (चील) ने सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कपूरावती (सियारिन) के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे. यह व्रत को मध्य में तोड़ देने का दुष्प्रभाव था जो अगले जन्म में कपूरावती भुगत रही थी. किन्तु इस बात का भान नहीं था. बहन कि फलती फूलती संतान देख कपूरावती जल-भुन गई और उसने सातों बच्चों के सिर कटवाकर घड़ों में बंद कर दिए और अपनी बहन के पास भिजवा दिए.
उस दिन बड़ी बहन जिऊतिया का व्रत कर रही थी. भगवान जीमूतवाहन को याद करके जब उसने सातों घड़ों पर जल छिड़का तो उसके बेटे जिंदा हो गए. उधर कपूरावती इस बात को लेकर परेशान थी कि उसकी बहन के घर से रोना-पीटना अब तक सुनाई क्यों नहीं दिया. ऐसे में असलियत जानने वो खुद ही बहन के घर चली गई, लेकिन उसके सातों बेटों को जिंदा देखकर वह सन्न रह गई.
इसी दौरान भगवान जीमूतवाहन भी वहां प्रकट हुए और उन्होंने दोनों बहनों को पूर्व जन्म की कथा सुनाई. कथा सुनने के बाद कपूरावती को बहुत पश्चाताप हुआ और दुख में अपनी जान गंवा बैठी. वहीं बड़ी बहन अहिरावती ने भगवान जीमूतवाहन से वरदान मांगा कि जो भी माता आज के दिन आपकी पूजा करे उसकी संतान को कोई कष्ट न पहुंचे. तबसे जिउतिया व्रत की परंपरा चली आ रही है.