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कैलाश मानसरोवर यात्रा 2017: जानें शिव-पार्वती के दर्शन का विशेष महत्व, पहुंचने का सुगम रास्ता

कैलाश बर्फ से 22,028 फुट ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा सोमवार शुरू हो गई है। यह 12 जून से आठ सितंबर तक चलेगी। आइए आपको बताते हैं कैलाश मानसरोवर क्या महत्व है।

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sunita mishra
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कैलाश मानसरोवर यात्रा 2017: जानें शिव-पार्वती के दर्शन का विशेष महत्व, पहुंचने का सुगम रास्ता

कैलाश मानसरोवर यात्रा 2017: शिव-पार्वती के दर्शन का विशेष महत्व

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कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभू का धाम है और शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

कैलाश बर्फ से 22,028 फुट ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को कैलाश मानसरोवर तीर्थ कहते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा सोमवार शुरू हो गई है। यह 12 जून से आठ सितंबर तक चलेगी। आइए आपको बताते हैं कैलाश मानसरोवर क्या महत्व है।

कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व 

पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव, ब्रह्मा, मरीच आदि ऋषि एवं रावण, भस्मासुर आदि ने यहां तप किया था। पांडवों के प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे।

इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहां निवास किया है। साथ ही कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।

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जैन धर्म में भी इस स्थान का महत्व है। वे कैलाश को अष्टापद कहते हैं। बौद्ध साहित्य में मानसरोवर को पृथ्वी स्थित स्वर्ग कहा गया है। 11वीं शती में सिद्ध मिलेरेपा इस प्रदेश में अनेक वर्ष तक रहे। विक्रमशिला के प्रमुख आचार्य दीपशंकर श्रीज्ञान (982-1054 ई०) तिब्बत नरेश के आमंत्रण पर बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ यहां आए थे।

कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है, जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है।

कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर कैसे जाएं

कैलाश-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं, किंतु उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थान से अस्ककोट, खेल, गर्विअंग, लिपूलेह, खिंड, तकलाकोट होकर जाने वाला मार्ग बेहद सुगम है। यह भाग 544 किमी (338 मील) लंबा है और इसमें अनेक उतार चढ़ाव हैं।

जाते समय सरलकोट तक 70 किमी (44 मील) की चढ़ाई है, उसके आगे 74 किमी (46 मील) उतराई है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम हैं, जहां यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के लिए याक, खच्चर, कुली आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम ह, जहां प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है।

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कैलाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। तकलाकोट से 40 किमी (25 मील) पर मंधाता पर्वत स्थित गुर्लला का दर्रा 4,938 मीटर (16,200 फुट) की ऊंचाई पर है।

यात्रा में लगने वाला समय

यात्रा में सामान्यत: दो मास लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पूर्व ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति होती है जिसे कैलाश धूप कहते हैं। लोग उसे प्रसाद स्वरूप लाते हैं।

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(विकिपीडिया)

Source : News Nation Bureau

Shiv Parvati kailash mansarovar yatra 2017
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