Kakbhushundi: काकभुशुण्डि हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अत्यंत रोचक और रहस्यमयी पात्र हैं. इनका सिर कौवे जैसा है और शरीर मानव का है. उन्हें एक परम ज्ञानी और बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है. वे भगवान राम के अत्यंत भक्त थे और उनकी लीलाओं के साक्षी रहे. उनकी कहानी पाप के परिणाम और पुनर्जन्म के सिद्धांत को दर्शाती है. अंततः ज्ञान और भक्ति के माध्यम से मुक्ति प्राप्त करने का संदेश देती है. गुरु के प्रति सम्मान की महत्ता को रेखांकित करती है और काकभुशुण्डि की कहानी हिंदू धर्म के कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समाहित भी करती है.
काकभुशुण्डि की कहानी
रुद्राष्टकम के पीछे की कहानी काकभुशुण्डि से जुड़ी हैं. पहले कौवा नहीं थे और उनका जन्म अयोध्या में हुआ था. वह भगवान शिव के कट्टर भक्त थे परन्तु राम सहित भगवान के अन्य सभी रूपों से घृणा करते थे. एक बार जब अयोध्या में अकाल पड़ा तो वह उज्जैन चले गए, जहां उनकी मुलाकात एक गुरु से हुई जो शिव भक्त थे और साथ ही भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को भी मानते थे. उन्होंने को बहुत समझाया कि शिव जी की भक्ति तभी सफल होगी जब श्री राम के चरणों में प्रगाढ़ भक्ति हो. परन्तु ने गुरु की बात नहीं मानी और उनका निराधार करते रहे.
एक दिन काकभुशुण्डि (Kakbhushundi) भगवान शिव का जप कर रहे थे तभी उनके गुरु वहां आए. लेकिन उन्होने अपने गुरु की अवहेलना की और मंत्र जप जारी रखा. गुरु ने इस अशिष्ट व्यवहार को नज़रअंदाज़ कर दिया, लेकिन भगवान शिव ऐसा नहीं कर सके. तभी एक भविष्यवाणी हुई कि तू अपने गुरु का सम्मान नहीं करता और उनके आने पर अजगर की तरह बैठा रह,. इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तू अजगर बन जाए और 1000 जन्मों के चक्कर से गुजरे.
ये सुनकर गुरु ने भगवान शिव से दया की भीख मांगी और रुद्राष्टकम (Rudrastakam) में उनकी महिमा गायी. इस अद्भुत स्तुति को सुनकर भगवान प्रसन्न हो गए और आश्वासन दिया कि वह जन्म और मृत्यु के चक्र से गुजरेगा, लेकिन उसे पीड़ा नहीं होगी और समय के साथ उसे भगवान राम की भक्ति प्राप्त होगी.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)