ज्येष्ठ माह की कालाष्टमी 2 जून यानि कि बुधवार को पड़ रहा है. हिंदू पंचाग के मुताबिक, हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है. इस दिन भगवान भोलनाथ के रुद्र रूप काल भैरव की पूजा अर्चना की जाती है. इसके साथ ही व्रत भी रखा जाता है. मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की अराधना करने से व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है और उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती है. इसके अलावा भगवान भैरव की पूजा करने से रोगों से भी छुटकारा मिलता है. कुंडली में मौजूद राहु के दोष भी दूर होता है. काल भैरव भगवान के पूजा करने पर भूत, पिचाश, प्रेत और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं.
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पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कालाष्टमी के दिन ही भोलेनाथजी भैरव के रूप में प्रकट हुए थे. इस दिन को कालभैरव जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं. मान्यता है कि यदि सच्चे मन से भैरव बाबा की पूजा की जाए तो बिगड़ते कार्य बन जाते हैं. यही नहीं भैरव बाबा की कृपा से उनकी पूजा करने वाले जातकों को किसी भी तरह के भूत-पिशाच और ग्रह दोष नहीं सताते हैं. लेकिन ध्यान रखें कि भैरव बाबा की पूजा करते समय मन में किसी भी तरह की छल-कपट नहीं होना चाहिए.
कालाष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ - 02 जून रात्रि 12 बजकर 46 मिनट से
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त - 03 जून रात्रि 01 बजकर 12 मिनट पर
कालाष्टमी की पूजा विधि-
कालाष्टमी के दिन सबसे पहले प्रात:काल के दिन स्नान कर के साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें. इसके बाद मंदिर में भगवान भैरव की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. अब पूरे दिन व्रत रखें और रात के समय धूप, काले तिल, उड़द दीप चढ़ाएं. आखिर में काल भैरव की आरती के साथ पूजा का समापन करें. कालाष्टमी का व्रत खोलें तो अपने हाथ से बने पकवान का कुत्ते को सबसे पहले भोग लगाएं. कुत्ते को खाना खिलाने से काल भैरव कि विशेष कृपा प्राप्त होती है.
श्री भैरव चालीसा-
दोहा
श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ.
चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल.
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥
जय जय श्री काली के लाला. जयति जयति काशी- कुतवाला॥जयति बटुक- भैरव भय हारी. जयति काल- भैरव बलकारी॥
जयति नाथ- भैरव विख्याता. जयति सर्व- भैरव सुखदाता॥
भैरव रूप कियो शिव धारण. भव के भार उतारण कारण॥
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी. सब विधि होय कामना पूरी॥
शेष महेश आदि गुण गायो. काशी- कोतवाल कहलायो॥
जटा जूट शिर चंद्र विराजत. बाला मुकुट बिजायठ साजत॥कटि करधनी घुंघरू बाजत. दर्शन करत सकल भय भाजत॥
जीवन दान दास को दीन्ह्यो. कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो॥
वसि रसना बनि सारद- काली. दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली॥
धन्य धन्य भैरव भय भंजन. जय मनरंजन खल दल भंजन॥
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा. कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोडा॥
जो भैरव निर्भय गुण गावत. अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत॥रूप विशाल कठिन दुख मोचन. क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन॥
अगणित भूत प्रेत संग डोलत. बम बम बम शिव बम बम बोलत॥
रुद्रकाय काली के लाला. महा कालहू के हो काला॥
बटुक नाथ हो काल गंभीरा. श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
करत नीनहूं रूप प्रकाशा. भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन. व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं. विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय. जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय. वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥
महा भीम भीषण शरीर जय. रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय. स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय. गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय. क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय. कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर. चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत. चौंसठ योगिन संग नचावत॥
करत कृपा जन पर बहु ढंगा. काशी कोतवाल अड़बंगा॥
देयं काल भैरव जब सोटा. नसै पाप मोटा से मोटा॥जनकर निर्मल होय शरीरा. मिटै सकल संकट भव पीरा॥
श्री भैरव भूतों के राजा. बाधा हरत करत शुभ काजा॥
ऐलादी के दुख निवारयो. सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा. श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो. सकल कामना पूरण देख्यो॥
दोहा
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार.
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥
श्री काल भैरव की आरती
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।