दिल्ली से करीब 90 किलोमीटर दूर गढ़मुक्तेश्वर है, जहां के पांच मंदिरों में सबसे प्राचीन मंदिर है कल्याणेश्वर महादेव का मंदिर. जहां पौराणिक कथाओं में से एक कथा है. कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले एक राजा नहूस जोकि महाभारत काल का राजा था, उसने इस मंदिर में लाखों घड़े महादेव शिवलिंग पर जब जल अर्पित करने आया तो देखा कि अर्पित जल कहीं गायब हो गया. ऐसा देख वो राजा नहूस चौंक गया. उसने फिर कई बाल्टी पानी अर्पित किया वो भी गायब हो गया.
आखिरी में राजा नहूस ने परेशान होकर लाखों घड़ों को इस शिवलिंग पर अर्पित किया. कहा जाता है कि वो इस शिवलिंग की परीक्षा लेना चाहता था. ऐसे में उसे श्राप लगा जिससे उसका जीवन उजड़ गया. कहा जाता है कि गढ़मुक्तेश्वर में गंगा के तट पर तीन शिवलिंगों को भगवान परसुराम ने स्थापित किया था, जिनमें मुक्तेश्वर महादेव, झारखंडेश्वर महादेव और कल्याणेश्वर महादेव को स्थापित किया था.
कुछ की मान्यता ये भी है कि शिवजी महाराज ने इसे बनाया था. जब शिवजी महाराज ने इस जंगल में इस मंदिर को बनाया गया, इससे जुड़ा एक रहस्य ये भी है कि कल्याणपुर गांव पर कल्याणेश्वर महादेव का वरदान है, इसलिए यहां के लोगों को सांप नहीं काट सकता, यहां जिसको काटा उसको कुछ भी नहीं हुआ. यही नहीं इसके गर्भ गृह में एक सुरंग भी है जो इसके अंदर मौजूद है, लेकिन उस सुरंग को जिसने भी खोदने की कोशिश की वो यह तो गायब हो गया या तो अंधा हो गया. ये भी कहा जाता है कि मंदिर के अंदर खजाना है, जिसकी रखवाली दो बड़े नाग कर रहे हैं. यही नहीं यहां पर लोगों को तांबे और चांदी के सिक्के भी मिल चुके हैं.
न जाने जल कहां समा जाता है
दरअसल, कल्याणेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों द्वारा शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल और दूध भूमि में समा जाता है. न जाने वह जल कहां समा जाता है, इस रहस्य का पता आज तक नहीं चल पाया है. कई बार इस रहस्य को जानने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार असफलता ही हाथ लगी.
पौराणिक कथा के अनुसार
पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अपने समय के प्रसिद्ध राजा नल ने यहां शिवलिंग का जलाभिषेक किया था, किन्तु उनके देखते ही देखते शिव पर चढ़ाया जल भूमि में समां गया. यह चमत्कार देखकर राजा नल चौंक गए और उन्होंने इस रहस्य को जानने के लिए बैलगाड़ी से ढुलवा कर हजारों घड़े गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाया, पर वह सारा जल कहां समाता गया, राजा नल इस रहस्य का पता न लगा पाए. अंत में भगवान शिव से क्षमा मांग कर अपने देश को लौट गए. मराठा छत्रपति शिवाजी ने भी यहां तीन मास तक रुद्रयज्ञ किया था.
असल में गढ़ मुक्तेश्वर क्यों प्रसिद्ध है
इस चर्चित पौराणिक और ऐतिहासिक शिव मंदिर के अतिरिक्त गढ़ मुक्तेश्वर भी प्रसिद्ध हैं. शिवपुराण के अनुसार, यहां पर अभिशप्त शिवगणों की पिशाच योनि से मुक्ति हुई थी, इसलिए इस तीर्थ का नाम ‘गढ़ मुक्तेश्वर’ अर्थात् ‘गण मुक्तेश्वर (गणों को मुक्त करने वाले ईश्वर) नाम से प्रसिद्ध हुआ.
इसका पौराणिक महत्त्व भी है. कहा जाता है भागवत पुराण व महाभारत के अनुसार यह कुरु की राजधानी हस्तिनापुर का भाग था. आज पर्यटकों को यहां की ऐतिहासिकता और आध्यात्मिकता के साथ-साथ प्राकृतिक सुंदरता भी खूब लुभाती है.
आज तक इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया. कहा जाता है कि ये घटना आज से शुरू नहीं हुई, बल्कि इसके बारे में हजारों सालों से ऐसा ही होता आ रहा है, लेकिन आज तक इसके रहस्य को कोई सुलझा नहीं पाया.
Source : Sayyed Aamir Husain